Thursday, April 28, 2011

नानाजी देशमुख का जीवन


नानाजी का जन्म महाराष्ट्र के परभनी जिले के कदोली नामक छोटे से कस्बे में 11 अक्टूबर, 1911 में हुआ था। नानाजी का लंबा और घटनापूर्ण जीवन अभाव और संघर्षों में बीता. उन्होंने छोटी उम्र में ही अपने माता-पिता को खो दिया. मामा ने उनका लालन-पालन किया. बचपन अभावों में बीता। उनके पास शुल्क देने और पुस्तकें खरीदने के लिये पैसे नहीं थे किन्तु उनके अन्दर शिक्षा और ज्ञानप्राप्ति की उत्कट अभिलाषा थी। अत: इस कार्य के लिये उन्होने सब्जी बेचकर पढ़ाई के लिए पैसे जुटाते थे. वे मंदिरों में रहे और पिलानी के बिरला इंस्टीट्यूट में उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की. बाद में तीस के दशक में वे आरएसएस में शामिल हो गए. भले ही उनका जन्म महाराष्ट्र में हुआ, लेकिन उनका कार्यक्षेत्र राजस्थान और उत्तरप्रदेश में रहा. उनकी श्रद्धा देखकर आरएसएस सरसंघचालक श्री गुरू जी ने उन्हें प्रचारक के रूप में गोरखपुर भेजा. बाद में वे उत्तरप्रदेश के प्रांत प्रचारक बने.
आरएसएस कार्यकर्ता के रूप में नानाजी देशमुख लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित हुए. तिलक से प्रेरित होकर उन्होंने समाज सेवा और सामाजिक गतिविधियों में रूचि ली. आरएसएस के अदि सरसंघचालक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार से उनके पारिवारिक संबंध थे. हेडगेवार ने नानाजी में छिपी प्रतिभा को पहचान लिया और आरएसएस की शाखा में आने के लिए प्रेरित किया. 1940 में, डॉ केशव बलिराम हेडगेवार के निधन के बाद उन्हें कई युवकों को महाराष्ट्र की आरएसएस शाखा में शामिल होने के लिए प्रेरित किया. नानाजी ऐसे लोगों में से थे जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र की सेवा में अर्पित करने के लिए आरएसएस से जुड़े. वे प्रचारक के रूप में उत्तरप्रदेश भेजे गए. आगरा में वे पहलीबार डॉ दीनदयाल उपाध्याय से मिले. बाद में नानाजी गोरखपुर गए जहां उन्होंने लोगों को संघ की विचारधारा के बारे में बताया. ये कार्य बिल्कुल ही आसान नहीं था, संघ के पास दैनिक खर्च के लिए भी धन नहीं थे. उन्हें धर्मशालाओं में ठहरना पड़ता था. उन्हें लगातार धर्मशाला बदलना पड़ता था, क्योंकि एक धर्मशाला में लगातार तीन दिनों से ज्यादा समय तक ठहरने नहीं दिया जाता था. अंत में बाबा राघवदास ने उन्हें इस शर्त पर ठहरने दिया कि वे उनके लिए खाना बनाएंगे. तीन साल के अंदर उनकी मेहनत ने रंग लाई और गोरखपुर के आसपास करीब 250 संघ की शाखाएं खुल गई. नानाजी ने हमेशा शिक्षा पर बहुत जोर दिया. उन्होंने 1950 में गोरखपुर में पहले सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना की.
1947 में, आरएसएस ने राष्ट्रधर्म और पांचजन्य नामक दो पत्रिकाओं और स्वदेश नामक पत्र की शुरूआत करने का फैसला किया. श्री अटल बिहारी वाजपेयी को संपादन और दीनदयाल उपाध्याय को मार्गदर्शन, जबकि नानाजी को प्रबंध निदेशक की जिम्मेदारी सौंपी गई. पैसे के अभाव में पत्र और पत्रिकाओं का प्रकाशन संगठन के लिए मुश्किल कार्य था, लेकिन इससे उनके उत्साह में कमी नहीं आई और सुदृढ राष्ट्रवादी सामाग्री के कारण इन प्रकाशनों को लोकप्रियता और पहचान मिली. 1948 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया, जिससे इन प्रकाशन कार्यों पर असर पड़ा. उन दिनों भूमिगत होकर इनका प्रकाशन कार्य जारी रहा.
राजनीतिक जीवन
जब आरएसएस पर से प्रतिबंध हटा तो फैसला राजनीतिक संगठन भारतीय जनसंघ की स्थापना का फैसला हुआ. श्री गुरूजी ने नानाजी को उत्तरप्रदेश में भारतीय जन संघ के महासचिव का प्रभार लेने को कहा. नानाजी का जमीनी कार्य उत्तरप्रदेश में पार्टी को स्थापित करने में अहम भूमिका निभायी. 1957 तक भाजपा ने उत्तरप्रदेश के सभी जिलों में अपनी ईकाई बनाई. इस दौरान नानाजी ने पूरे उत्तरप्रदेश का दौरा किया. जल्द ही भारतीय जनसंघ उत्तरप्रदेश की प्रमुख शक्ति बन गई. 1967 में भारतीय जनसंघ संयुक्त विधायक दल का हिस्सा बन गया और चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में सरकार में शामिल हो गई. नानाजी के चौधरी चरण सिंह और डॉ राम मनोहर लोहिया से अच्छे संबंध थे, इसलिए गधबंधन में उन्होंने अहम भूमिका निभायी. उत्तरप्रदेश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार के गठन में विभिन्न राजनीतिक दलों को एकजुट करने में नानाजी जी ने अहम भूमिका निभायी.
उत्तरप्रदेश की बड़ी राजनीतिक हस्ती चंद्रभानु गुप्ता को नानाजी की वजह से तीन बार कड़ी चुनौती का सामाना करना पड़ा. एकबार, राज्यसभा चुनाव में कांग्रेसी नेता और चंद्रभानु के पसंदीदा उम्मीदवार को हराने के लिए उन्होंने रणनीति बनाई. 1957 में जब गुप्ता स्वयं लखनऊ से चुनाव लड़ रहे थे, तो नानाजी ने समाजवादियों से साथ गठबंधन बनाकर बाबू त्रिलोकी सिंह को बड़ी जीत दिलाई. 1957 में गुप्ता को दूसरी बार हार को मुंह देखना पड़ा.
उत्तरप्रदेश में भाजपा ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय की दृष्टि, अटल बिहारी वाजपेयी के वक्तृत्व और नानाजी के संगठनात्मक कार्यों के कारण भारतीय जनसंघ महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति बन गया. न सिर्फ पार्टी कार्यकर्ताओं से बल्कि विपक्षी दलों के साथ भी नानाजी के संबंध अच्छे थे. श्री चंद्रभानु गुप्ता, जिन्हें नानाजी के कारण कई बार चुनावों में हार का सामना करना पड़ा, नानाजी का खूब सम्मान करते थे और उन्हें प्यार से नाना फडऩवीस कहते थे. डॉ राम मनोहर लोहिया से उनके अच्छे संबंधों ने भारतीय राजनीति की दशा-दिशा बदल दी. एकबार नानाजी ने डॉ लोहिया को भारतीय जनसंघ कार्यकर्ता सम्मेलन में बुलाया, जहां लोहिया की मुलाकात दीन दयाल उपाध्याय से हुई. दोनों के जुड़ाव से भाजस समाजवादियों के करीब आया, दोनों ने कांग्रेस और उसके कुशासन का पर्दाफाश कर दिया. नानाजी, विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हुए. दो महीनों तक विनोबा के साथ रहे. वे आंदोलन से प्रभावित हुए. जेपी आंदोलन में जब जयप्रकाश पर पुलिस ने लाठियां बरसाई. उस समय नानाजी ने जयप्रकाश को सुरक्षित निकाल लिया. जिसमें नानाजी को चोटें आई और इनका एक हाथ टूट गया.
बाद में जयप्रकाश नारायण और पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने नानाजी के साहस की भूरि-भूरि प्रशंसा की. उन्हें पुरस्कार के तौर पर उन्हें मंत्रिमंडल में बतौर उद्योग मंत्री शामिल होने का न्यौता भी दिया, लेकिन नानाजी ने इनकार कर दिया. आपातकाल हटने के बाद चुनाव हुए, जिसमें बलरामपुर लोकसभा सीट से नानाजी सांसद चुने गए.
1980 में साठ साल की उम्र में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास लेकर आदर्श की स्थापना की. बाद में उन्होंने अपना पूरा जीवन सामाजिक और रचनात्मक कार्यों में लगा दिया. वे आश्रमों में रहे और कभी अपना प्रचार नहीं किया. जय प्रकाश नारायण के आह्वान पर उन्होंने संपूर्ण क्रांति को पूरा समर्थन दिया. जनता पार्टी से संस्थापकों में नानाजी प्रमुख थे. कांग्रेस को सत्ताच्युत कर जनता पार्टी सत्ता में आई. नानाजी ने दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की और उसमें सेवा दी. उन्होंने चित्रकूट में चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना की. यह भारत का पहला ग्रामीण विश्वविद्यालय है और वे इसके पहले कुलाधिपति थे. 1999 में एनडीए सरकार ने उन्हें राज्यसभा से सांसद बनाया.
पंडित दीनदयाल उपाध्याय की हत्या उनके लिए बहुत बड़ी क्षति थी. और उन्होंने दिल्ली में अकेले दम पर दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की और देश में रचनात्मक कार्य आंदोलन को समर्पित कर दिया. उन्होंने गरीबी निरोधक और न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम चलाया. उन्होंने कृषि, कुटीर उद्योग, ग्रामीण स्वास्थ्य और ग्रामीण शिक्षा पर बल दिया. राजनीति से हटने के बाद उन्होंने संस्थान का अध्यक्ष पद संभाला और संस्थान की बेहतरी में अपना सारा समय अर्पित कर दिया. उन्होंने मंथन पत्रिका प्रकाशित किया जिसका कई वर्षों तक के आर मलकानी ने संपादन किया.
नानाजी ने उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र के सबसे पिछड़े जिलों गोंडा और बीड में बहुत से सामाजिक कार्य किए. उनके द्वारा चलाई गई परियोजना का उद्देश्य था- हर हाथ को काम और हर खेत को पानी. 1969 में वे पहली बार चित्रकूट आए और अंतिम रूप से वे चित्रकूट में बस गए. उन्होंने भगवान श्रीराम की कर्मभूमि चित्रकूट की दुर्दशा देखी. वे मंदाकिनी के तट पर बैठ गए और अपने जीवन काल में चित्रकूट को बदलने का फैसला किया. अपने वनवास के काल में राम ने दलित जनों के उत्थान का कार्य किया. इससे प्रेरणा लेकर नानाजी ने चित्रकूट को अपने सामाजिक कार्यों का केंद्र बनाया. उन्होंने सबसे गरीब व्यक्ति की सेवा शुरू की. वे अक्सर कहा करते थे कि वे राजाराम से वनवासी राम की अधिक प्रशंसा करते हैं, इसलिए वे अपना बचा हुआ जीवन चित्रकूट में बिताएंगे. ये वही स्थान है जहां राम ने अपने वनवास के चौदह में से बारह वर्ष गरीबों की सेवा में बिताए. उन्होंने अपने अंतिम क्षण तक इस प्रण का पालन किया. उनका निधन चित्रकूट में 27 फरवरी 2010 को हो गया।

दीनदयाल शोध संस्थान
पंडित दीनदयाल उपाध्याय (1916-1968) प्रणीत एकात्म मानववाद को मूर्त रूप देने के लिए नानाजी देशमुख ने 1972 में नई दिल्ली में दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की. यह दर्शन समाज के प्रति मानव की समग्र दृष्टि पर आधारित है जो भारत को आत्मनिर्भर बना सकता है.
नानाजी देशमुख ने एकात्म मानववाद के आधार पर ग्रामीण भारत के विकास की रूपरेखा रखी. शुरुआती प्रयोगों के बाद उत्तरप्रदेश के गोंडा और महाराष्ट्र के बीड में नानाजी ने गांवों में स्वास्थ्य, सुरक्षा, शिक्षा, कृषि, आय अर्जन, संसाधनों के संरक्षण, सामाजिक विवेक के विकास के लिए एकात्म कार्यक्रम की शुरुआत की. पूर्ण परिवर्तन कार्यक्रम का आधार, लोक सहयोग और सहकार है. चित्रकूट परियोजना या आत्म-निर्भरता के लिए अभियान की शुरूआत 26 जनवरी 2005 में चित्रकूट के आस-पास हुई. जो उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित है. इस परियोजना का उद्देश्य 2005 तक इन गांवों में आत्म-निर्भरता हासिल करना था. परियोजना 2010 में पूरी हुई. परियोजना से उम्मीद जगी कि इसके आसपास के पांच सौ गांवों को आत्म-निर्भर बनाया जाए. यह भारत और दुनिया के लिए आदर्श बन सकता है.

प्रशंसा और सम्मान
1999 में नानाजी देशमुख को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया. पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने नानाजी देशमुख और उनके संगठन दीनदयाल शोध संस्थान की प्रशंसा की. इस संस्थान की मदद से सैकड़ों गांवों को मुकदमा मुक्त विवाद सुलझाने का आदर्श बनाया गया. अब्दुल कलाम ने कहा "चित्रकूट में मैंने नानाजी देशमुख और दीनदयाल उपाध्याय के उनके साथियों से मुलाकात की. दीन दयाल शोध संस्थान ग्रामीण विकास के प्रारूप को लागू करने वाला अनुपम संस्थान है यह प्रारूप भारत के लिए उपयुक्त है. विकास कार्यों से अलग दीनदयाल उपाध्याय संस्थान विवाद-मुक्त समाज की स्थापना में मदद करता है. मैं समझता हूं कि चित्रकूट के आसपास अस्सी गांव मुकदमा-मुक्त है. गांव के लोगों ने सर्वसम्मति से फैसला किया कि किसी विवाद का हल करने के लिए वे वे अदालत नहीं जाएंगे. तय हुआ कि विवाद आपसी सहमति से सुलझा लिए जाएंगे. नानाजी देशमुख के मुताबिक अगर लोग लड़ते झगड़ते रहेंगे तो विकास के लिए समय ही नहीं बचेगा." कलाम के मुताबिक, विकास के इस अनुपम प्रारूप को सामाजिक संगठनों, न्यायिक संगठनों और सरकार के माध्यम से देश के विभिन्न भागों में फैलाया जा सकता है. शोषितों और दलितों के उत्थान के लिए समर्पित नानाजी की प्रशंसा करते हुए कलाम ने कहा कि नानाजी चित्रकूट में जो कर रहे हैं वो अन्य लोगों के लिए आंखें खोलने वाला होना चाहिए.
निधन
नाना जी ने 95 साल की उम्र में देश के पहले ग्रामीण विश्वविद्यालय (जिसकी स्थापना उन्होंने खुद की) में अंतिम सांसे ली. वे पिछले कुछ समय से बीमार थे, लेकिन इलाज के लिए दिल्ली जाने से मना कर दिया. नाना साहब देश के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपना शरीर मेडिकल शोध के लिए दान करने की इच्छा जताई

देश में 20 प्रतिशत से ज्‍यादा मुसलमान तो अल्‍पसंख्‍यक कैसे - स्‍वामी चिन्‍मयानंद (भाग १)


श्री हनुमत शक्ति जागरण समिति, झारखंड के बैनर तले हनुमंत जागरण यज्ञ का जमशेदपुर के एग्रिको में आयोजित किया गया।
परम पूज्‍य स्‍वामी चिन्‍मयानंद जी महाराज का बौद्धिक उन्‍हीं के शब्‍दों में हूबहू
मैं 36 घंटे की यात्रा कर यहां आया हूं और आप मेरा इतना भी आदर नहीं करेंगे इतनी दूर बैठेंगे। आइये सभी लोग आगे आकर बैठे हां अब ठीक लगा की हिंदू समाज में भी संगठन की शक्ति है। अभी हम अपने एक बुजूर्ग की बात सून रहे थे 81 साल की उम्र में उनका दर्द समझा जा सकता है । वे बटवारें के पहले भारत के उस हिस्‍से में थे जिसे पाकिस्‍तान कहा जाता है। और वो किन परिस्थितियों में यहां पहुंचे वो दर्द आज भी उनके दिल में मौजूद है। हम उसी दर्द का शिकार आगे ना हो इसकी चिंता करने की आवश्‍यकता है। आज जब मैं आसनसोल से चला और झारखंड की सीमा में प्रवेश किया और तमाम अभयारंण्य रास्‍ते में मिले, और उन सभी जगहों में देखा लम्‍बी लम्‍बी कतारे लगी है कारों की मैने पूछा क्‍या हो रहा है भाई इतनी बड़ी संख्‍या में गाड़ियां, कारें क्‍यों ख‍ड़ी हैं। जवाब मिला लोग पिकनीक के लिए आये है, मौज मस्‍ती के लिए आये हैं।
हर रविवार हमारा मौज मस्‍ती में बितता है। लेकिन ये मौज मस्‍ती कितने दिन ? आप जानते हैं ? जब इस देश में एनडीए सरकार थी, और मैं केंद्र में गृह राज्‍यमंत्री था उस समय इस देश में 8 राज्‍यों के 55 जिलों में नक्‍सली गतिविधियां थी। लेकिन आज मौज मस्‍ती का नतीजा है कि वो 23 राज्‍यों के 229 जिलों में पहुंच चुका है। आज नेपाल से लेकर कर्नाटक तक रेड कॉरिडोर बन गया है। अंदर बाहर दो ओर से असुरक्षित होता जा रहा है। और आतंक की हर आंधी आतंक का हर तुफान अगर किसी को नुकसान पहुंचाता है तो हिंदु को पहुंचाता है हिंदु गरीबों को नुकसान पहुंचाता है हिंदु साधारण मजदूरों को नुकसान पहुंचाता है। ऐसी स्थिति में हम अगर बिखरे हुए रहेंगे अगर हमारी ताकत संगठित होकर नहीं उभरेगी । आप को याद होना चाहिए वर्षों अगर हम गुलाम रहे तो उसके पीछे भी बिखराव ही कारण था अगर वर्षों तक इस देश में अंग्रेजों का शासन था वर्षों तक इस देश में मुस्लिम शासन करते रहे मुगल शासन करते रहे तो उसका कारण भी आपसी बिखराव था। आजादी के पहले हम संगठित हुए हम एक हुए और पूरा देश आजादी के लिए खड़ा हुआ। जब पूरा देश खड़ा हुआ तो वह अंग्रेज जो विश्‍व के दो तिहाई हिस्‍से पर शासन करते थे यह देश छोडकर चले गये।
“हिंदुओं को साम्‍प्रदायिक कहा जाता है” मैं आज ि‍फर निवेदन करना चाहता हूं कि परिस्थितियां दिन बा दिन बड़ी जटिल होती जा रही है। रामजन्‍मभूमि की बात जब हम करते हैं तब हमको साम्‍प्रदायिक कहा जाता है। आतंकवादी कहा जाता है। अगर हम अविरल प्रवाह की बात करते है तो हमें विपथगामी कहा जाता है। अगर हम गौरक्षा की बात करते हैं दकियानोज कहा जाता है, अगर हम देश में मंदिरों तीर्थों की रक्षा बात करते हैं तो हमे अंधविश्‍वासी कहा जाता है। बंधुओं ये एक ऐसी बिमारी शुरु हुई है जिसका निदान हमें ही खोजना होगा। हम ही इस बिमारी का इलाज कर सकते हैं दूसरा कोई नहीं कर सकता। इसलिए इस हिंदुस्‍तान का इस भारत का भला यदि हो सकता है तो हिंदुओं के द्वारा ही हो सकता है। हिंदू ताकत ही संगठित होकर इस देश को संगठित कर सकता है।
“मुसलमान अल्‍पसंख्‍यक नहीं हैं” मैं एक उदाहरण देना चा‍हता हूं 2001 में जनगणना हो रही थी जनगणना जब शुरु हुई तो जनगणना का काम जो मंत्रालय देख रहा था, वो मेरे पास था मैने प्रधानमंत्री से कहा हमें जानने की जरुरत है कि इस देश में कितने हिंदू रहते हैं, कितने मु‍सलमान रहते हैं कितने ईसाई रहते है। हमें पता चलना चाहिए देश के लोगों को पता चाहिए और जब मैंने ये बात प्रधानमंत्री से कही तो प्रधानमंत्री ने जनगणना में इन तीनों चीजों को शामिल करने का मन बनाया तो संसद में व्‍यापक विरोध हुआ। मैं समझ नहीं सका की क्‍यों विरोध हो रहा है। बाद में ये पता की इसके पीछे कारण ये है कि जो लोग इस देश में अल्‍पसंख्‍यक नहीं रह गये हैं। जिनकी संख्‍या इतनी बढ़ गयी है कि वो लोग अल्‍पसंख्‍यक नहीं हो सकते उनको भी अल्‍पसंख्‍यक की सुविधा दी जा रही है। अगर इमानदारी से जनगणना की जाये तो इस देश में मुसलमान अल्‍पसंख्‍यक नहीं है। यूएनओ के चार्ट में 10 प्रतिशत से जिनकी आबादी कम रहती है उनको अल्‍पसंख्‍यक कहा जाता है और इस देश में मुस्लिमों की आबादी 20 प्रतिशत से ज्‍यादा हो गयी है। 20 प्रतिशत से ज्‍यादा होने के बावजूद भी उनको अल्‍पसंख्‍यक की सुविधा भी नहीं दी जा रही है, ब्‍लकि अल्‍पसंख्‍यक के नाम पर आरक्षण देने की बात भी कही जा रही है। मैं ये बात जानबुझ्‍ कर कह रहा हूं के हिंदुओं को तो लगातार बांटा जा रहा है, जातियों, भा‍षाओं, प्रांतों, बैकवर्ड-फारवर्ड, अनुसूचित और दलित में, पिछड़ों और अगड़ों में, उत्‍तर और दक्षिण में बांटा जा रहा है। हिंदू समाज बंट रहा है और उसको बांटने का काम इस देश की सरकार कर रही है। और जो दूसरे धर्मावलंबी है अपनी ताकत का लाभ सरकारी और गैरसरकारी स्‍तर पर उसका लाभ लेने की कोशिश कर रहे हैं।
“राम नाम से ये देश आजाद हुआ”
अगर रामजन्‍मभूमि या रामसेतू का विरोध होता है तो समझ्‍ में आता है, क्‍योंकि इसके पीछे कारण राम ही वो राम है जिसके द्वारा इस देश को एक सूत्र बांधने में कामयाबी मिलती है आजादी के 1857 की क्रांति विफल हो गयी थी। देश की आजादी का सपना चूर चूर हो गया था। लोग सोच रहे थे इस देश को आजाद कैसे करें तो उस समय कोई और आधार समझ्‍ में नहीं आया उस समय महात्‍मा गांधी को एक नाम समझ्‍ में आया वो नाम था राम का उन्‍होंने रघुपति राघव राजा राम पतीत पावन सीता राम का एक नारा दिया पूरा देश जैसे आज हनुमन्‍त जागरण गुणगुण रहा है वैसे ही पूरे देश में रघुपति राघव राजा राम पतीत पावन सीता राम का एक नारा का स्‍वर गुंजने लगा। ये टूटा हुआ देश जुड़ने लगा इक्‍टठा होने लगा। क्‍योंकि यह देश राम का है इस देश की हर सांस में राम बसे हुए हैं। अगर आज देश के किसी आदमी के पांव में कांटा चुभता है तो वो उस दर्द को हाय राम कहकर पी जाता है। अगर एक मित्र कोई दूसरे मित्र से मिलता है तो जयरामजी की कहकर गले लगा लेता है। कारखाने से दुकान से खेत से मेहनत कर के आकर चारपाई पर बैठता है तो हे राम कहकर सारे थकान को दूर कर लेता है। इसी तरह जब जिंदगी के आखरी मोड़ पर जब जिंदगी का संबंध इस संसार से खत्‍म हो जाते हैं। जब यहां से महाप्राण खत्‍म होता है तब चार कंधे पर जो यात्रा शुरु होती है तो उसके साथ एक ही नारा चलता हैं राम नाम सत्‍य है तब कोई सत्‍य नहीं दिखाई पड़ा हैं कि कांग्रेस सत्‍य है ना सोनिया सत्‍य है नाम मनमोहन सत्‍य है ना ही धनधान्‍य, घर मकान सत्‍य है । केवल एक सत्‍य होता है राम नाम सत्‍य है। महात्‍मा गांधी ने यह महसुस किया कि अगर इस देश को जोड़ना है तो राम के नाम पर ही जोड़ा जा सकता है, और देश जुड़ा गांधी ने देश को सपना दिया कि जब यह देश आजाद होगा तो इस देश में रामराज्‍य होगा। कांग्रेस का शासन नहीं होगा। रामराज्‍य का सपना देकर रघुपति राघव राजा राम का मंत्र देकर आजादी की लड़ाई लड़ी गई और देश मजबूती से गांधी के पीछे खड़ा हुआ। यहां भ्रम नहीं होना चाहिए। लोग गांधी के पीछे नहीं खड़े हुए थे गांधी राम के पीछे खड़े थे, इसलिए लोग गांधी के पीछे खड़े थे। देश को आजादी मिली। आजादी के बाद पहला काम होना चाहिए था। जिस राम का नाम लेकर इस देश को आजादी मिली उसके बाद लाल किले पर तिरंगा झंडा फहरता उसके पहले रामजन्‍मभूमि पर मंदिर का निर्माण शुरु होता लेकिन रामजन्‍मभूमि पर मंदिर निर्माण्‍ नहीं शुरु हुआ।
“आक्रांताओं ने सिर्फ मंदिरों को तोड़ा है”
धन्‍यवाद देना चाहिए सरदार वल्‍लभ भाई पटेल को कि गुलामी जिस रास्‍ते से आई थी मंदिरों को तोड़ते हुए मंदिरों को रौंदते हुए। आज तक मेरे समझ्‍ में नहीं आया कि आखिर आक्रांताओं और हमलावरों की दुश्‍मनी इन मंदिरों से क्‍या थी। क्‍यों मंदिरों को तोड़ रहे थे। क्‍यों सोमनाथ का मंदिर तोड़ा गया। क्‍यों अयोध्‍या का मंदिर तोड़ा गया। क्‍यों काशी का विश्‍वनाथ मंदिर तोड़ा गया। क्‍यों मथुरा का श्रीकृष्‍ण मंदिर तोड़ा गया। आखिर मंदिरों से क्‍या दुश्‍मनी थी इनकी, आज समझने की जरुरत है मंदिरों से दुश्‍मनी थी उनकी किंतु वे जानते थे कि भारत एक धार्मिक देश है यहां धर्म सबसे ज्‍यादा ताकतवर है, यहां के रिस्‍ते तय होते हैं धर्म से, यहां संबंध तय होते हैं धर्म से, यहां पति-पत्‍नी के बीच रिस्‍ता है तो वह धर्म का है। भाई बहन के बीच रिस्‍ता है तो धर्म का, पिता – पुत्र के बीच रिस्‍ता है तो धर्म का, इसलिए हिंदुस्‍तान ही ऐसा देश है जहां धर्म पत्‍नी होती है और विश्‍व के किसी भी देश में संस्‍कृति में पत्‍नी को धर्म पत्‍नी नहीं कही जाती, धर्म पत्‍नी यहीं कही जाती है लगता है संबंध के बीच में धर्म होता है। इसलिए वहां वाइफ कहा जाता है। क्‍योंकि धरती से हमारा रिस्‍ता धर्म का है इसलिए भारत का बालक सबेरे उठ कर माता-पिता को बाद में प्रणाम करता है सबसे पहले धरती को प्रणाम करता है विश्‍व का कोई देश अपनी धरती को माता नहीं कहता चाहे वह अमरिका हो या चीन। चीन की धरती चीन की माता नहीं कही जाती। अमेरिका की धरती भी अमेरिका की माता नहीं कही जाती लेकिन भारत मैं पैदा होने वाला पढ़ा लिखा, गैर पढ़ा लिखा, गाय-भैंस चरना वाला, जंगलों में लकड़ी काटने वाला भी इस धरती को माता कहकर प्रणाम करता है। एक जर्मनी पत्रकार ने मुझसे पूछा स्‍वामी जी ये भगवान बार-बार भारत में ही क्‍यों पैदा होता है। भगवान का अवतार या जन्‍म भारत में ही क्‍यों होता है। अमेरिका, चीन या जापान में क्‍यों नहीं होता, मैने कहा ये तो भगवान से संबंधित प्रश्‍न है इसका उत्‍तर मैं कैसे दे सकता हूं। उनलोगों ने कहा आप तो भगवान के प्रवक्‍ता है बताएं क्‍यों भारत का जन्‍म भारत की धरती पर होता है। मैने कहा पिछली बात मैं नहीं जानता लेकिन आगे भी भगवान जन्‍म लेगा तो भारत की धरती पर लेगा किसी और धरती पर नहीं लेगा। उन्‍होंने कहा कैसे तो मैने कहा कोई भी जन्‍म लेना चाहे तो उसे मां की जरुरत होती है बिना मां के कोई जन्‍म नहीं ले सकता, क्‍योंकि पूरे विश्‍व में भारत की धरती ही माता है इसलिए जब कभी भी जन्‍म लेना तो भारत में जन्‍म लेगा। उन्‍होंने सम्‍मान दिया।
इस धरती की माटी को चंदन की तरह माथे पर लगाया है। इस धरती के जब गलत होता है तो बर्दास्‍त नहीं होता। यह वही देश है जिसकी स्‍वाधिनता के लिए 20 से 25 के नवजवानों ने फांसी के फंदे को चुम लिया। अंग्रेजों की गोलियों के आगे छाती खोलकर खड़े हो गये। व़ो बलिदान था इस धरती की स्‍वाधिनता के लिए। जन्‍मभूमि का महत्‍व केवल हम जानते हैं। हमारी ये जन्‍मभूमि राम की जन्‍मभूमि कितनी महत्‍वपूर्ण्‍ है ये राम से पूछो जब राम लंका पर विजय प्राप्‍त करते हैं और जब लौटने को होते हैं तो विभिषण उनसे आग्रह करता है, हे प्रभु एक बार लंका तो जाकर देख ले लंका कितना सुंदर बनी है सोने की बनी हुई है। लंका को कुबेर और विश्‍वकर्मा ने अपने हाथों से बनाया है। भगवान श्रीराम ने कहा लक्ष्‍मण विभिषण जो कुछ कह रहे हैं, उस पर विचार किया जा सकता है लेकन मैं क्‍या करु मुझे अयोध्‍या का सरयू तट याद आ रहा है।

“सामेनाथ मंदिर का जीर्णोंधार डॉ राजेंद्र प्रसाद ने किया था”
अपनी जन्‍मभूमि के लिए बलिदान देने वालों का इतिहास बहुत लंबा है। राम के नाम पर ये देश आजाद हुआ। इस पर कोई विवाद नहीं है देश का हर इतिहासकार कहता है के रघुपति राघव राजा राम के मंत्र ने ही इस देश को स्‍वाधिन बनाया । इस देश के पहले प्रधानमंत्री की जिम्‍मेदारी थी कि पहले वो श्रीराम जनमभूमि को मु‍क्‍त कराते, लेकिन रामजन्‍मभूमि मुक्‍त नहीं हुई, मंदिरों को तोड़ने वालों को जवाब देने के लिए सरदार वल्‍लभ भाई पटेल ने सोमनाथ को तो मुक्‍त करा लिया, और सोमनाथ को मुक्‍त किसी न्‍यायालय के फैसले नहीं कराया गया। किसी सुप्रीम कोर्ट में जाने की जरुरत नहीं पड़ी थी। सरदार वल्‍लभ भाई पटेल ने संसद में एक प्रस्‍ताव पारित करा एक कानून बनाया जिसमें कहा गया कि विदेशी आक्रांताओं का एक भी नामों निशान इस देश में नहीं बचना चाहिए। प्रस्‍ताव पारित कर सोमनाथ का मंदिर मुक्‍त कराया गया, और उस मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ तो मैं नमन करता हूं चाहुंगा इस झारखंड की धरती को बिहार की धरती को जो कभी बिहार ही हुआ करता था देश के पहले राष्‍ट्रपति डॉ राजेंद्र बाबू ने जाकर भूमिभूजन किया और जीर्णोद्धार किया।
“12 सालों तक मुसलमानों को बाबरी मसिजद की याद नहीं आयी”
पं नेहरु यह कभी नही चाहते थे। जब 1947 में देश आजाद हुआ 1949 तक जब राम मंदिर की ओर किसी की दृष्टि नहीं गयी, तो मैं धन्‍यवाद देता हूं अयोध्‍या के संतों को जिन्‍होंने 22 दिसंबर 1949 की रात को रामलला को प्रकट किया। उस रामजन्‍मभूमि पर रामलला प्रकट हुए, और जब रामलला प्रकट हुए तो उसका विरोध देश में कहीं नहीं हुआ। किसी मुसलमान ने इसका विरोध नहीं किया यहां तक की मौके पर मौजूद जो पुलिस था वो भी मुस्लिम था उसने कोर्ट में गवाही दिया कि मैने तो सिर्फ प्रकाश प्रकाश देखा कैसे प्रकट हुए मुझे पता नहीं। उसने भी ये स्‍वीकार किया कि रामलला प्रकट हुए। देश के किसी मुस्लिम ने इसका विरोध नहीं किया । लेकिन देश के तत्‍कालिन प्रधानमंत्री ने उत्‍तर प्रदेश के तब के मुख्‍यमंत्री गोविंद वल्‍लभ पंत को फोन करके कहा कि 24 घंटे के अंदर ये मूर्तियां यहां से हटाई जाये और ये मस्जिद है मस्जिद ही बनी रहनी चाहिए। मैं धन्‍यवाद देना चाहता हूं उस समय के तत्‍कालिन जिला मजिस्‍ट्रेट, आईपीएस अधिकारी के के नायर का। केके नायर उस समय फैजाबाद जिला के जिलाधिकारी थे। उन्‍हें जब उत्‍तरप्रदेश्‍ के सीएम का निर्देश मिला की ये मूर्तियां यहां से हटा दी जाये, तो उस बहादूर जिलाधिकारी ने सीएम को सीधे जवाब दिया कि मैं अपने पद से हट सकता हूं लेकिन मेरी ये हिम्‍मत नहीं की रामलला को वहां से हटा दूं। उस आईपीएस अधिकारी ने अपने पद से इस्‍तीफा दे दिया। उनके साथ पांच आईपीएस अधिकारियों ने इ‍स्‍तीफा दिया, और उस जगह पर तला लगा दिया कि ये मूर्तियां यहां से कोई नहीं हटा सकता। पं जवाहर लाल नेहरु ने देखा के पांच पांच आईपीएस अधिकारियों ने अपने पद से इस्‍तीफा दे दिया। तो उनकी भी हिम्‍मत नहीं पड़ी। 12 साल तक किसी को रामजनमभूमि की याद नहीं आयी। उस समय की कांग्रेस सरकार चाहती तो उस समय की गोविंद बल्‍लभ पंत की सरकार चाहती तो मंदिर का निर्माण उसी समय शुरु हो जाता क्‍यों उस समय मुस्लिमानों में कोई विरोध नहीं था। किसी ने विरोध नहीं किया। पहला मुकदमा दायर हुआ सन् 1961 में, मूर्ति स्‍थापित हुई 22 दिसंबर सन् 1949 को, 12 साल बाद पहला मुकदमा दायर हुआ।
बंधुओं दूसरी बात मैं कहना चाहता हूं राम सेतू का निर्माण भगवान राम के वानर सेना ने किया था। जब भगवान श्रीराम लंका पर विजय प्राप्‍त करने लंका जाना चाहते थे। सभी जानते हैं रामेश्‍वरम् और रामसेतू का निर्माण एक साथ हुआ था। जो आज ज्‍योर्तिलिंग है उसकी स्‍थापना भगवान श्रीराम ने की थी। श्रीराम के सानिध्‍य में ही जामवंत आर नल-नील ने प्रभु की उपस्थित में रामसेतू का निर्माण किया था। आज उस रामसेतू को तोड़ने की बात कही गयी थी भारत की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हल्‍फनामा दायर किया कि राम का तो जन्‍म ही नहीं हुआ है । जब राम का जन्‍म ही नहीं हुआ है तो रामसेतू का निर्माण कैसे हो सकता है। इस यूपीए की सरकार, सोनिया-मनमोहन की सरकार के लिए राम और रामायण झूठी है राम और रामायण उपन्‍यास और कहानी है। राम और रामायण फ्ल्मिी कहानी है राम का कोई वजूद ही नहीं है। मैं याद दिलाना चाहता हूं कि मदनमोहन मालवीय ने पं जवाहर लाल नेहरु का हाथ पकड़कर प्रयाग के कुंभ में कहा था इस देश में वही शासन कर सकता है जो करोड़ की संख्‍या में हिंदुओं की भावनाओं को समझेगा। ये करोड़ों हिंदू गंगा के तट पर इक्‍टठे हुए हैं ये किसी सरकार खर्चे पर यहां नहीं आया है कोई सत्‍तू लेकर आया है कोई पैदल चलकर आया है। इस ठिठूरती सर्दी में ये यहां आये हैं इनकी आस्‍था है जो इन्‍हें यहां लायी हैं । जब तक इस देश में आस्‍था रहगी तब तक इस देश का कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता है।
बंधुओं देश की आजादी राम का नाम लेकर मिली है, राम राज्‍य के नाम पर आजादी मिली हैं और आज हमें कोर्ट में ये साबित करना पड़ा की राम की जन्मभूमि यही है। क्‍या मोहम्‍मद साहब की जनमभूमि मक्‍का में है ये साबित करने के लिए किसी मु‍सलमान को कोर्ट में जाना पड़ा। क्‍या नानक की जन्‍मभूमि ननकाना साहब में है ये साबित करने के लिए किसी सिख समुदाय को कोर्ट में जाना पड़ा। क्‍या र्इसा मसीह का जन्‍मस्‍थल येरुशलम में है ये साबित करने के लिए कोर्ट में जाना पड़ा। लेकिन राम की जन्‍मभूमि अयोध्‍या में है ये साबित करने के लिए 60 साल तक, एक साल नहीं दो साल नहीं पूरे 60 साल तक हिंदू समाज कोर्ट में लड़ता रहा।