Monday, August 15, 2011

क्या हम आजाद है ?

क्या हम आजाद है ? क्या हमे सच कहने -बोलने का अधिकार है ? मै समझता हू आज हमारी स्तिथि १९४७ के पहले से भी बेकार और बद्दतर हो चूकी है , भारत की आज़ादी केवल कहने मात्र को है , जिस देश में सच कह सकने तक का अधिकार नहीं हो , आम आदमी को सच कहने से तक रोका जा सकता है तब बाकि आज़ादी के बारे में क्या कहा जा सकता है .....१९४७ से पहले हम गोरे अंग्रेजो के गुलाम थे ,और हम १९४७ के बाद अपने ही देश में देश के काले अंग्रेजो की गुलामी झेल रहें है .....आज अन्ना की गिरफ्तारी ने ये बता दिया है की हम कहने मात्र को ही आजाद है .......भारत माता की जय ....

तो उठो और अन्ना हजारे के साथ चल पड़ो......जय हिंद ......जय भारत .........


आख़िरकार इस देश के काले अंग्रेजो ने अन्ना हजारे को आन्दोलन से पहले हिरासत में ले ही लिया , आख़िरकार कब तक होता रहेगा ये दमन ......? क्या आज की जरुरत नहीं है की इस सरकार को जड़ से उखाड़ फेके .......? तो उठो और अन्ना हजारे के साथ चल पड़ो......जय हिंद ......जय भारत .........   

बोलने की आजादी पर सरकारी ताला डालने की कोशिश---


बोलने की आजादी पर सरकारी ताला डालने की कोशिश---
भ्रष्टाचार पर नकेल डालने के लिए मजबूत जन लोकपाल की वकालत करने वाले समाजसेवी अन्ना के अनशन को फेल करने में पूरा सरकारी तंत्र जुटा है। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने जिन तल्ख तेवरों और तीखी शब्दावली का प्रयोग अन्ना के खिलाफ किया है वो किसी स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था का लक्षण नहीं है। सरकार जिस तरह अन्ना के अनशन को जाति तौर पर लेकर जिस प्रकार हमालवर रूख अपना रही है उससे ये अहसास नहीं होता है कि हम लोकतांत्रिक देश के नागरिक हैं। अनशन, आंदोलन, धरना और प्रदर्षन तो स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी होते हैं। लेकिन लोकतंत्र का ढिंढोरा पीटने वाली सरकार अपने खिलाफ उठने वाली आवाज से इतनी घबराई और बौखलाई हुई है कि वो अन्ना के अनशन को फेल करने के लिए हर हथकंडा अपना रही है।
21 जून को लोकपाल बिल के संयुक्त समिति की अंतिम बैठक के असफल रहने पर अन्ना ने 16 अगस्त से अनशन करने का ऐलान किया था। सरकार ने सिविल सोसायटी की मांगों और सुझावों पर कोई आम सहमति बनाने की बजाय आनन-फानन में बिल के सरकारी ड्राफ्ट को संसद में पेश कर दिया। सरकारी बिल से असहमत और नाराज अन्ना को सरकार ने जंतर मंतर पर अनशन करने की अनुमति नहीं दी। स्थिति बिगड़ती देख दिल्ली पुलिस ने अन्ना को जेपी पार्क में तीन दिन के अनशन की सशर्त इजाजत अन्ना को दी है। जिस सिविल सोसायटी का समर्थन आज देश का बड़ा तबका कर रहा है सरकार उस सोसायटी की बात पर तवज्जो देने की बजाय अन्ना ओर उनकी टीम को बदनाम करने और कीचड़ उछाला रही है। लोकशाही में अपनी बात रखने और बोलने की आजादी हर नागरिक को है। लेकिन सरकार अपनी विरूद्व उठने वाली अन्ना की आवाज को दबाने में एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। अन्ना के अनशन में रोड़े अटकाना लोकतंत्र का गला घोंटने की बेशर्म और बेहूदा कार्यवाही है। बोलने का अधिकार हमें हमारा संविधान प्रदान करता है ऐसे में अन्ना की आवाज को दबाना संविधान का अपमान और अवहेलना भी है।
भ्रष्टाचार, जन लोकपाल बिल और विदेशों में जमा काला धन वापिस लाने की मुहिम को धार देने वाले अन्ना हजारे और बाबा रामदेव की आवाज दबाने के लिए सरकारी अमला हर हथकंडा अपना रहा है। 4-5 जून की रात को दिल्ली के रामलीला मैदान में बाबा रामदेव और हजारों अन्य अहिंसक प्रदर्षनकारियों पर पुलिस ने लाठी-डंडे बरसाकर इमरजंेसी की याद ताजा करा दी। रामदेव और उनके निकट सहयोगी बालकृष्ण को घेरने और बदनाम करने के लिए सरकारी तंत्र पूरी गंभीरता से लगा है। सरकार ने अपने कर्मों का हिसाब किसी को नहीं दिया उलटे उसकी पोल खोलने वाले रामदेव की जन्म कंुडली उसने जरूर खोल दी। रामदेव और अन्ना के आंदोलन से घबराई और बौखलाई सरकार अपने खिलाफ उठने वाली आवाज को दबाने के लिए अन्ना और रामदेव पर कीचड़ उछालकर ये साबित करने में जुटी है कि केवल हम ही नहीं बल्कि हम पर उंगुली उठाने वाले भी भ्रष्ट और दागी हैं। सरकार ने अन्ना पर कीचड़ उछालकर एक तरह से खुद ये मान लिया है कि उसका चरित्र दागदार है।
पिछले एक दशक में भ्रष्टाचार के जिन्न ने पूरे देश का जीना दुश्वार कर रखा है। हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि छोटे से छोटा काम भी बिना लिये दिये बिना नहीं हो पाता है। सरकारी बाबू से अफसर तक रिश्वत लेना अपना जन्मसिद्व अधिकार समझते हैं। जनता के चुने हुये प्रतिनिधि कानों में तेल डाले बैठे हैं। जनता जीये या मरे उनकी बला से। अगले चुनाव तक उन्हें चिन्ता और फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है। आम आदमी के हक और विकास का पैसा भ्रष्टाचार के कुंभकर्णी पेट में समा रहा है। तेजी से पांव पसारते भ्रष्टाचार के कारण देश की अर्थव्यस्था तो गड़बड़ा ही रही है वहीं मंहगाई, बेरोजगारी और विकास को भी उसका दंश झेलना पड़ रहा है। विदेशी बैंकों में अकूत कालाधान भरा पड़ा है लेकिन उसे वापिस लाने के लिए सरकार पूरी तरह से अगंभीर रवैया अपनाए है। मंहगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, विकास के झूठे वायदों से परेशान जनता आखिरकर किस तरीके से अपनी आवाज दिल्ली दरबार तक पहुंचाए। बरसों से सो रही सरकार को जगाने के लिए जब कोई अन्ना या रामदेव अलख जगाते हैं तो सरकार अपनी कमियों, दोषों और गुनाहों का हिसाब देने की बजाय अलख जगाने वाले के पीछे हाथ धोकर पड़ जाती है कि आखिरकर एक अदने से आदमी की क्या मजाल जो वो सरकार से सवाल-जवाब करे।
आजादी के बाद कुछ सालों तक राजनीति का स्वस्थ रूप देखने का मिलता था। लेकिन 70 के दशक तक आते-आते राजनीतिक माहौल और आचरण में गंदगी घुलने लगी थी। पिछले दो तीन दशकों में देश में जात-पात और क्षेत्रीय राजनीति ने अपने पांव देशभर में पसार लिये हैं। अपराधी और गुण्डे तत्वों के राजनीति में प्रवेश करने से राजनीति का पूरा तालाब ही गंदा हुआ है। विधायिका के भ्रष्ट रूप और आचरण के फलस्वरूप लोकतंत्र की स्वस्थ, सशक्त और सुंदर परंपराओं को ग्रहण लग गया है। हर कांड, घोटालों और अपराध के पीछे कहीं न कहीं राजनीति और नेता खड़े दिखाई देते हैं। देश की कमान उन तथाकथित नेताओं के हाथ में है जिन्हें लोकतंत्र के सहीं मायने पता ही नहीं है। वो डंडे के दम पर हकूमत चलाना चाहते हैं। आम आदमी की आवाज और सवाल-जवाब उन्हें तीर की भांति चुभते हैं। और वो अपने खिलाफ उठने वाली हर आवाज को डंडे और कानून के दम पर चुप कराने की ओछी राजनीति पर उतर आते हैं। यूपी की मुख्यमंत्री मायावती ने सूबे में धरने और प्रदर्शन के लिए कानून बना डाला है। ताकि सूबे का आम आदमी और विपक्षी दल उनके खिलाफ मुंह खोल ही न पाये। यूपी सरकार कानून की आड़ में लोकतंत्र का गला घोंटने का घिनौना कृत्य कर रही है। इसी कड़ी में केन्द्र सरकार अन्ना के अनशन को दबाने के लिए कानून की आड़ लेकर असल में आम आदमी की आवाज को दबा रही है। सच्चाई यह है कि सरकार में अपनी आलोचना सुनने का माद्दा ही नहीं है तभी तो वो अपने खिलाफ उठने वाली आवाज को सुनने की बजाय बंद कराने पर उतारू है। आज अन्ना को देश और विदेश में बसे लाखों भारतीयों का समर्थन प्राप्त है ऐसे में अन्ना को अनशन के लिए रोकना अप्रत्यक्ष तौर पर आम आदमी को धरने, प्रदर्शन और अनशन से रोकना है।
लोकशाही में लोक की आवाज दबाने की प्रवृत्ति धीरे धीरे चारों ओर फैल रही है। यूपी की तर्ज पर दूसरे राज्य भी धरना, प्रदर्शन नियमावली बनाकर कानून की आड़ में आम आदमी की आवाज को दबाने की साजिश को रच सकते हैं। आज कांग्रेस नीत संप्रग सरकार अन्ना के अनशन को असफल बनाने के लिए जो हथकंडे अपना रही है उसे सारा देश देख रहा है। कांग्रेस के साथ लगभग सभीे विपक्षी दल प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर खड़े दिखाई दे रहे हैं। जो जनता आज अन्ना पर जुल्म और जबरदस्ती होते देख रही है उसी जनता को कल वोट की पावर से सरकार भी चुननी है। आज बब्बर शेर नेता चुनाव के समय मेमने की तरह जब आम आदमी के सामने हाथ जोड़े खड़े होंगे तब जनता उनसे हिसाब बराबर करेगी। लोकतंत्र में बोलने की आजादी पर तालाबंदी की बढ़ती कुप्रवृति की जितनी निंदा और आलोचना की जाए वो कम है।