Wednesday, July 11, 2012

आज़ादी से पहले के दुर्लभ पोस्ट-------स्वराज्य के लिए संघर्ष वर्ष 1920 से कॉंग्रेस के प्रचार पोस्टरों में गांधी का संदेश नज़र आने लगा. स्वराज्य के लिए संघर्ष में भारत माता को जंजीरों में जकड़ा दिखाया गया. इसमें तीन रास्ते थे, सरकार के साथ सहयोग, हिंसा और अहिंसा का मार्ग. यह तीसरा ही स्वतंत्रता की देवी तक ले जाता है ..........
आज़ादी से पहले के दुर्लभ पोस्ट------असहयोग वृक्ष और महात्मा गांधी इस पोस्टर में एक सैनिक भारत रूपी वृक्ष को दमन-नीति की डोर से खींच रहा है. इसके सामने महात्मा गांधी अपनी पत्नी कस्तूरबा बाई के साथ बैठे नज़र आ रहे हैं जबकि एकता की देवी सबको एकजुट रखे हुए है. दोनों चित्रों में कॉंग्रेसी नेता और भगवान कृष्ण यह सारा दृश्य निहारते देखे जा सकते है ...........
आज़ादी से पहले के दुर्लभ पोस्ट-----स्वदेशी आंदोलन की रणनीति  इसमें   ब्रितानी उत्पादनों का बहिष्कार और स्वदेशी उत्पादनों और उत्पादन तकनीकों को पुनर्जीवित करते दिखाया गया है. स्वदेशी महात्मा गांधी की एक ऐसी नीति थी जिसे उन्होंने स्वराज की आत्मा ............
आज़ादी से पहले के दुर्लभ पोस्ट-----साइमन गो बैक.........यह पोस्टर 1928 में जारी हुआ. सर जॉन साइमन के नेतृत्व में गठित सात-सदस्यीय समिति को लेकर भारत में काफ़ी नाराज़गी थी. इस समिति के एक अन्य सदस्य थे क्लीमेंट ऐटली जो 1947 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने. इस समिति का उद्देश्य था भारत के भविष्य का फ़ैसला करना और इसमें एक भी भारतीय सदस्य नहीं था. दिसंबर 1927 में कॉंग्रेस और मुस्लिम लीग के कुछ सदस्यों ने साइमन कमीशन का बहिष्कार किया और जगह-जगह साइमन वापस जाओ के बैनर नज़र आने लगे.
आज़ादी से पहले के दुर्लभ पोस्ट---------लंदन के ब्रिटिश संग्रहालय में भारत की आज़ादी से पहले के कुछ दुर्लभ पोस्टरों की एक प्रदर्शनी जारी है. वहाँ से इन पोस्टरों के चित्र जुटाए हैं हमारी उर्दू सेवा के सहयोगी मुसद्दिक़ सनवाल ने.......ईएच शेपहार्ड के इस चित्र में कॉंग्रेस और मुस्लिम लीग को हाथी के रूप में चित्रित किया गया है. यह चित्र 22 मई 1946 को पंच पत्रिका में प्रकाशित हुआ था.
भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु के अग्नि संस्कार का दुर्लभ चित्र--------ये अत्यंत दुर्लभ तस्वीर है उस दाह संस्कार की जो हमारे देश का गौरव बन समस्त भारत के दिल में मातृभूमि की आजादी का जज्बा पैदा कर गये और इसी के बाद ऐसी अलख लगी ‘वन्दे मातरम्’ की कि अंग्रेजों को इस स्थान से ही नही समूचे भारत से भाग  जाने में ही अपनी भलाई दिखी इनका नाम है -
“भगतसिंह”
“सुखदेव”
“राजगुरू”
                                      फाँसी के बाद जनता में बढ़ते रोष को ध्यान में रखते हुए अंग्रेज़ अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों के शवों का अंतिम संस्कार फ़िरोज़पुर ज़िले के हुसैनीवाला में करने की तैयारी थी परन्तु यह बात आंधी की तरह फिरोजपुर से लाहौर तक शीघ्र पहुंच गई। अंग्रेजी फौजियों ने जब देखा की हजारों लोग मशालें लिए उनकी ओर आ रहे हैं तो वे वहां से भाग गए, तब देशभक्तों ने उनके शरीर का विधिवत दाह संस्कार किया गया।

इन शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
वतऩ पे मरने वालों का यही बाकी निशां होगा

( संध्या मेश्राम  से साभार)