Sunday, September 18, 2011

कान्हा राष्ट्रीय उद्यान-------

यह भारत का एक प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान हैं। मध्य प्रदेश अपने राष्ट्रीय पार्को और जंगलों के लिए प्रसिद्ध है। यहां की प्राकृतिक सुन्दरता और वास्तुकला के लिए विख्यात कान्हा पर्यटकों के बीच हमेशा ही आकर्षण का केन्द्र रहा है। कान्हा शब्द कनहार से बना है जिसका स्थानीय भाषा में अर्थ चिकनी मिट्टी है। यहां पाई जाने वाली मिट्टी के नाम से ही इस स्थान का नाम कान्हा पड़ा। इसके अलावा एक स्थानीय मान्यता यह रही है कि जंगल के समीप गांव में एक सिद्ध पुरुष रहते थे। जिनका नाम कान्वा था। कहा जाता है कि उन्‍हीं के नाम पर कान्हा नाम पड़ा।कान्हा जीव जन्तुओं के संरक्षण के लिए विख्यात है। यह अलग-अलग प्रजातियों के पशुओं का घर है। जीव जन्तुओं का यह पार्क 1945 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। रूडयार्ड किपलिंग की प्रसिद्ध किताब और धारावाहिक जंगल बुक की भी प्रेरणा इसी स्‍थान से ली गई थी। पुस्तक में वर्णित यह स्थान मोगली, बगीरा, शेरखान आदि पात्रों का निवास स्थल है।
स्थिति ------ यह राष्ट्रीय पार्क 1945 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यह क्षेत्र घोड़े के पैरों के आकार का है और यह हरित क्षेत्र सतपुड़ा की पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इन पहाड़ियों की ऊंचाई 450 से 900 मीटर तक है। इसके अन्तर्गत बंजर और हेलन की घाटियां आती हैं जिन्हें पहले मध्य भारत का प्रिन्सेस क्षेत्र कहा जाता था। 1879-1910 ईसवी तक यह क्षेत्र अंग्रजों के शिकार का स्थल था। कान्हा को 1933 में अभ्यारण्य के तौर पर स्थापित कर दिया गया और इसे 1955 में राष्ट्रीय पार्क घोषित कर दिया गया। यहां अनेक पशु पक्षियों को संरक्षित किया गया है। लगभग विलुप्‍त हो चुकी बारहसिंहा की प्रजातियां यहां के वातावरण में देखने को मिल जाती है।कान्हा एशिया के सबसे सुरम्य और खूबसूरत वन्यजीव रिजर्वो में एक है। टाइगरों का यह देश परभक्षी और शिकार दोनों के लिए आदर्श जगह है। यहां की सबसे बड़ी विशेषता खुले घास का मैदान हैं जहां काला हिरन, बारहसिंहा, सांभर और चीतल को एक साथ देखा जा सकता है। बांस और टीक के वृक्ष इसकी सुन्दरता को और बढा देते हैं।
आकर्षण------बारहसिंहा----- यह प्रजाति कान्हा का प्रतिनिधित्व करती है और यहां बहुत प्रसिद्ध है। कठिन जमीनी परिस्थितियों में रहने वाला यह अद्वितीय जानवर टीक और बांसों से घिरे हुए विशाल घास के मैदानों के बीच बसे हुए हैं। बीस साल पहल से बारहसिंहा विलुप्त होने की कगार पर थे। लेकिन कुछ उपायों को अपनाकर उन्हें विलुप्त होने से बचा लिया गया। दिसम्बर माह के अंत से जनवरी के मध्य तक बारहसिंहों का प्रजनन काल रहता है। इस अवधि में इन्हें बेहतर और नजदीक से देखा जा सकता है। बारहसिंहा पाए जाने वाला यह भारत का एकमात्र स्थान है।
जीप सफारी-----जीप सफारी सुबह और दोपहर को प्रदान की जाती है। जीप मध्य प्रदेश पर्यटन विकास कार्यालय से किराए पर ली जा सकती है। कैम्प में रूकने वालों को अपना वाहन और गाइड ले जाने की अनुमति है। सफारी का समय सुबह 6 से दोपहर 12 बजे और 3 बजे से 5:30 तक निर्धारित किया गया है।
बाघ दृश्य----                                                
                                                                 
                                               
बाघों को नजदीक से देखने के लिए पर्यटकों को हाथी की सवारी की सुविधा दी गई है। इसके लिए सीट की बुकिंग करनी होती है। इनकी सेवाएं सुबह के समय प्राप्त की जा सकती हैं। इसके लिए भारतीयों से 100 रूपये और विदेशियों से 600 रूपये का शुल्क लिया जाता है।
पक्षी------यहां पर पक्षि‍यों के मिलन स्‍थल का विहंगम दुश्‍य भी देख सकते है। यहां लगभग 300 पक्षियों की प्रजातियां हैं। पक्षियों की इन प्रजातियों में स्थानीय पक्षियों के अतिरिक्त सर्दियों में आने प्रवासी पक्षी भी शामिल हैं। यहां पाए जाने वाले प्रमुख पक्षियों में सारस, छोटी बत्तख, पिन्टेल, तालाबी बगुला, मोर-मोरनी, मुर्गा-मुर्गी, तीतर, बटेर, हर कबूतर, पहाड़ी कबूतर, पपीहा, उल्लू, पीलक, किंगफिशर, कठफोडवा, धब्बेदार पेराकीट्स आदि हैं।
कान्हा संग्रहालय-------इस संग्रहालय में कान्हा का प्राकृतिक इतिहास संचित है। यह संग्रहालय यहां के शानदार टाइगर रिजर्व का दृश्य प्रस्तुत करता है। इसके अलावा यह संग्रहालय कान्हा की रूपरेखा, क्षेत्र का वर्णन और यहां के वन्यजीवों में पाई जाने वाली विविधताओं के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
बामनी दादर------यह पार्क का सबसे खूबसूरत स्थान है। यहां का मनमोहक सूर्यास्त पर्यटकों को बरबस अपनी ओर खींच लेता है। घने और चारों तरफ फैले कान्हा के जंगल का विहंगम नजारा यहां से देखा जा सकता है। इस स्थान के चारों ओर हिरण, गौर, सांभर और चौसिंहा को देखा जा सकता है।
दुर्लभ जन्तु------कान्हा में ऐसे अनेक जीव जन्तु मिल जाएंगे जो दुर्लभ हैं। पार्क के पूर्व कोने में पाए जाने वाला भेड़िया, चिन्कारा, भारतीय पेंगोलिन, समतल मैदानों में रहने वाला भारतीय ऊदबिलाव और भारत में पाई जाने वाली लघु बिल्ली जैसी दुर्लभ पशुओं की प्रजातियों को यहां देखा जा सकता है।
राजा और रानी------आगन्तुकों के केन्द्र के नजदीक साल के पेड़ों के दो विशाल ठूठों को देखा जा सकता है। इन ठूठों की प्रतिदिन जंगल में पूजा की जाती है। इन्हें राजा-रानी नाम से जाना जाता है। राजा रानी नाम का यह पेड़ 2000 के बाद ठूठ में तब्दील हो गया था।
मौसम------पार्क 1 अक्टूबर से 30 जून तक खुला रहता है। मॉनसून के दौरान यह पार्क बन्द रहता है। यहां का अधिकतम तापमान लगभग 39 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम 2 डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है। सर्दियों में यह इलाका बेहद ठंडा रहता है। सर्दियों में गर्म और ऊनी कपड़ों की आवश्यकता होगी। नवम्बर से मार्च की अवधि सबसे सुविधाजनक मानी जाती है। दिसम्बर और जनवरी में बारहसिंहा को नजदीक से देखा जा सकता है।
आवागमन------कान्हा राष्ट्रीय पार्क वायु, रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। अपनी सुविधा के अनुसार आप कान्हा पहुंचने के लिए इन मार्गो का प्रयोग कर सकते है।
वायु मार्ग-------कान्हा से 266 किलोमीटर दूर स्थित नागपुर में निकटतम एयरपोर्ट है। यह इंडियन एयरलाइन्स की नियमित उड़ानों से जुड़ा हुआ है। यहां से बस या टैक्सी के माध्यम से कान्हा पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग-------जबलपुर रेलवे स्टेशन कान्हा पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी स्‍टेशन है। जबलपुर कान्हा से 175 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां से राज्य परिवहन निगम की बसों या टैक्सी से कान्हा पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग-------कान्हा राष्ट्रीय पार्क जबलपुर, खजुराहो, नागपुर, मुक्की और रायपुर से सड़क के माध्यम से सीधा जुड़ा हुआ है। दिल्ली से राष्ट्रीय राजमार्ग 2 से आगरा, राष्ट्रीय राजमार्ग 3 से बियवरा, राष्ट्रीय राजमार्ग 12 से भोपाल के रास्ते जबलपुर पहुंचा जा सकता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 12अ से मांडला जिला रोड़ से कान्हा पहुंचा जा सकता है।

मध्‍य प्रदेश परिचय-------

          मध्‍य प्रदेश संभवतया उप महाद्वीप का संभतया सबसे पुराना स्‍थान है जिसे गोंडवाना कहते हैं अर्थात गोंड समुदाय का घर। भोपाल के पास भीमबेटका की पूर्व ऐतिहासिक गुफाएं हैं, जहां पेलियोलि‍थिक युग से बनी हुई कुछ मनमोहक तस्‍वीरें संरक्षित की गई है। मध्‍य प्रदेश चित्रित गुफा आवासों के संदर्भ में देश का सबसे अधिक समृद्ध राज्‍य है, जिनमें से अधिकांश गुफाएं सीहोर, भोपाल, रायसेन, होशंगा बाद और सागर जिलों में पाई गई हैं।  सुसंरक्षित मध्‍य कालीन शहरों, तरोताजा कर देने वाले वन्‍य जीवन अभयारण्‍यों और कुछ पवित्र और श्रद्धापूर्ण धार्मिक केन्‍द्रों के साथ यह प्रदेश पर्यटन का आनंदायक अनुभव प्रदान करता है। पचमणि की मनमोहक सुंदरता, भेड़ाघाट में धोंधार जनप्रपात की गरजती आवाज और संगमरमर की चट्टानों की भव्‍यता, कान्‍हा नेशनल पार्क अपने अनोखे बारसिंघा के साथ बांधव गढ़ के नेशनल पार्क में पूर्व ऐतिहासिक समय की गुफाएं एवं वन्‍य जीवन इस राज्‍य के कुछ प्रमुख आकर्षण है। ग्‍वालियर, मांडु, दतिया, चंदेरी, जबलपुर, ओरछा, रायसेन, सांची, विदिशा, उदयगिरी, भीमबेटका, इंदौर और भोपाल अपने ऐतिहासिक स्‍मारकों के लिए कुछ जाने माने स्‍थान है। महेश्‍वर, ओमकारेश्‍वर, उज्‍जैन, चित्रकूट और अमरकंटक कुछ प्रमुख धार्मिक केन्‍द्र हैं। यहां स्थित खजुराहो के अनोखे मंदिर दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। ओरछा, भोजपुर और उदय पुर के मंदिर भी पर्यटकों के साथ बड़ी संख्‍या में श्रद्धालुओं को भी आकर्षित करते हैं।
                  सतना, सांची, विदिशा, ग्‍वालियर, इंदौर, मंदसौर, उज्‍जैन, राजगढ़, भोपाल, जबलपुर, रीवा में स्थित संग्रहालयों में पुरातात्‍विक खजाने संरक्षित किए गए हैं। ओमकारेश्‍वर, महेश्‍वर और अमरकंटक को समेकित विकास के लिए उनके धार्मिक महत्‍व को बनाए रखने के‍ लिए पवित्र शहर घोषित किया गया है। बुरहान पुर को एक नए पर्यटक गंतव्‍य के रूप में विकसित किया जा रहा है।पर्वतीय स्‍थल पचमढ़ी-----------पचमढ़ी भारत के मध्‍य राज्‍य का मनमोहक पर्वतीय स्‍थल है। पचमढ़ी शहर की भीड़ भाड़ से दूरदराज स्थित स्‍थान है। प्रकृति की गोद में छुट्टियां बिताने के‍ लिए यह एक आदर्श स्‍थान है। इस पर्वतीय स्‍थल का नाम पांच पांडवों द्वारा बनाई गई गुफाओं के आधार पर रखा गया है। पचमढ़ी पर्वतीय स्‍थल 1100 मीटर की ऊंचाई पर सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला पर बसा हुआ है। पचमढ़ी में घने जंगलों के साथ गहरे तालाब और लावे से बनी पहाडियां है। लाल सेंड स्टोन से बनी घाटियां, रेवाइन और पचमढ़ी की गलियां यहां का आकर्षण हैं।
वन्‍य जीवन अभयारण्‍य-बांधवगढ़ नेशनल पार्क-------- यह एक नेशनल छोटा पार्क है जो सुगठित होने के साथ खेलों से भरा हुआ है। बांधव गढ़ में बाघों की संख्‍या भारत में सबसे अधिक है। इस नेशनल पार्क के महत्‍व और संभाव्‍यता को देखते हुए इसे 1993 में प्रोजेक्‍ट टाइगर नेटवर्क में जोड़ा गया था। इस आरक्षित वन का नाम इसके मध्‍य में स्थित बांधवगढ़ पहाड़ी (807) मीटर के नाम पर रखा गया है जो विंध्‍य पर्वत श्रृंखला और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला के पूर्वी सिरे के बीच स्थित है और यह मध्‍य प्रदेश के शहडोल और जबलपुर जिलों में है। यहां 22 से स्‍तनधारियों की प्रजातियां तथा 250 पक्षी प्रजातियां पाई जाती है। यहां सामान्‍य लंगूर और रिसस बंदर प्राइमेट समूह का प्रति‍निधित्‍व करते हैं। यहां पाए जाने वाले मांसभक्षियों में एशियाई भेडियां, बंगली लोमड़ी, स्‍लॉथ बीयर, रेटल, भूरे मंगूस, पट्टी दार हाइना, जंगली बिल्‍ली, चीते और बाघ, यहां पाए जाने वाले अन्‍य जंतु है जंगली सुअर, चित्तीदार हिरण, सांभर, चौसिंघा, नील गाय, चिंकारा और गौर। यहां पाए जाने वाले स्‍तनधारी है डोल, छोटी भारतीय सीवेट, पाम गिलहरी और छोटे बेंडीकूट चूहे कभी कभार देखे जा सकते हैं। शाकाहारियों में केवल गौर नामक जंतु पाया जाता है जो चारा खाता है। नदियों और दलदली स्‍थानों की वनस्‍ति के साथ अनेक प्रकार के पक्षी पाए जाते हैं। इनमें से कुछ सामान्‍य है ग्रेब, अगरेट, लेसर एडजुटेंट, सारस, क्रेन, ब्‍लैक आइबिस, लैसर विसलिंग टीज, सफेद आंखों वाले बजार्ड, ब्‍लैक काइट, क्रेस्‍टेड सर्पेंट इंगल, काला गीध, इजिप्‍शन गीध, सामान्‍य पी फाउल, लाल जंगली फाउल, डव, पाराकिट, किंगफिशर और इंडियन रोलर। यहां पाए जाने वाले सरीसृप हैं कोबरा, क्रेट, वाइपर, रेट स्‍नैक, पाइथन, कछुएं और वारानस सहित कई प्रकार की छिपकलियां।
कान्‍हा नेशनल पार्क-------------------
                  कान्‍हा टाइगर रिजर्व के मध्‍य प्रदेश में भाग मध्‍य प्रदेश के मंडला और बालाघाट जिलों में है और ये सतपुड़ा की मयकल पहाडियों में स्थित है। यह स्‍थान अपनी समृद्ध वनस्‍पति और जीव जंतु के कारण अंतरराष्‍ट्रीय ख्‍याति प्राप्‍त कर चुका है। कान्‍हा के साल वृक्ष और बांस के जंगल, लंबे लंबे घास के मैदानऔरलहराती नदियां लगभग 940 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैली हैं जो प्रोजेक्‍ट टाइगर के तहत 1974 में बनाए गए कान्‍हा टाइगर रिजर्व का केन्‍द्र बनाती है और यह एक मनमोहक प्राकृतिक दृश्‍य है। यह पार्क दुर्लभ बारा सींघा (सर्वस डूआसेली ब्रेंडेरी) का एक मात्र अधिवास है। कान्‍हा में स्‍तनधारियों की लगभग 22 प्रजातियां पाई जाती है। इन्‍हें बड़ी आसानी से देखा जा सकता है और ये हैं पट्टीदार पाम गिलहरी, आम लंगूर, भेडिए, जंगली सुअर, चीतल या चित्तीदार हिरण, बारासिंघा या स्‍वाम्‍प बीयर, सांभर और ब्‍लैक बक। यहां कुछ कम सामान्‍य प्रजातियां हैं बाघ,

भारतीय खरगोश, ढोल, या भारतीय जंगली कुत्ता, बार्किंग डीयर, भारतीय भैंसा या गौर। यहां आने वाले दर्शक धैर्य रख कर इन जंतुओं का नजारा भी ले सकते हैं : भारतीय लोमड़ी, स्‍लॉथ बीयर, पट्टीदार हाइना, जंगली बिल्‍ली, चीता, माउस डीयर, चौसिंघा या चार सींग वाला एंटीलॉप, नील गाय, रेटल और साही। यह आरक्षित वन गोंडवाना वाले भाग पर बनाया गया है जहां पारम्‍परिक रूप से और मुख्‍यत: गोंड तथा बैगा जनजातियां निवास करती हैं। बैगा जनजातियां आम तौर पर ऊपरी घाटी में सीमित रहती हैं और मुख्‍य माइकल श्रृंखला के पास दादर पाए जाते हैं।
माधव नेशनल पार्क-------- माधव (शिवपुरी) नेशनल पार्क 156 वर्ग किलो मीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ एक पार्क है जो पूरे वर्ष खुला रहता है। इस पार्क में संरक्षण पर बल दिया जाता है जो एक समय ऐसा क्षेत्र था जिसे ग्‍वालियर के महाराजा का निजी क्षेत्र माना जाता था और यहां वे शूटिंग किया करते थे। शिवपुरी नेशनल पार्क की स्‍थापना 1958 में मध्‍य प्रदेश राज्‍य बनने के साथ ही की गई थी। इसे 1972 के वन्‍य जीवन संरक्षण अधिनियम के तहत और भी अधिक सुरक्षित बनाया गया है। यहां की ऊंचाई 360-480 मीटर के आस पास है। यहां कई प्रकार की पहाडियां, सूखे, मिश्रित और पतझड़ी वन और घास के बड़े मैदान झील के आस पास हैं जो अनेक प्रकार के वन्‍य जीवों का दृश्‍य उपलब्‍ध कराते हैं। इस पार्क में पाई जाने वाली प्रमुख प्रजातियां हिरण की हैं, जिसमें से अधिकांश जानवरों को बड़े आराम से घूमते देखा जा सकता है जैसे छोटे चिंकारा, भारतीय गेजल और चीतल। इस पार्क में पाई जाने वाली अन्‍य प्रजातियां हैं नील गाय, सांभर, चौंसिंघा या चार सींग वाला एंटीलॉप, ब्‍लैक बक, स्‍लॉथ बीयर, चीते और सभी जगह पाए जाने वाले लंगूर। यहां कभी कभार पेंथेरा ट्राइग्रिस, चीतें, पेंथेरा पारडस, पट्टीदार हाइना, भेडिए (केनिस ओरियस) जंगली बिल्‍ली (फेलिस चौस) चीतल (एक्‍सिस एक्सिस), सांभर (सर्वस यूनिकलर), नील गाय, बोसेलेफस, ट्रेगोकेमेलस, चार सींग वाला एंटीलॉप, टेट्रासेरस क्‍वाड्रीकोर्निस, जंगली सुअर, सुस स्‍क्रोफा, चिंकारा (पर्वतीय गजेल), गजेला, घडियाल और अन्‍य।
पन्‍ना नेशनल पार्क------------------- यह मध्‍य प्रदेश राज्‍य के लगभग मध्‍य में खजुराहो से 57 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। यह क्षेत्र हीरों के लिए विख्‍यात है और यहां भारत की कुछ सर्वोत्तम वन्‍य जीवन प्रजातियां पाई जाती हैं और यह देश का एक बेहतरीन टाइगर रिजर्व है। इस पार्क में जंगली बिल्लियों के अलावा बाघ और हिरण तथा एंटीलॉप भी पाए जाते हैं। भारत के एक जाने माने पर्यटन आकर्षण केन्‍द्र, खजुराहो के समीप होने के कारण इस पार्क में एक बड़ा पर्यटन आकर्षण बनने की संभाव्‍यता निहित है। टाइगर (पेंथेरा टाइग्रिस) जो जंगल का राजा माना जाता है, यहां इस सुरक्षित वन में मुक्‍त भाव से घूमता है, जबकि इसके साथ ही भी यहां पाए जाते हैं - चीता (पेंथेरा पारडस), जंगली कुत्ते (क्‍यूऑन एल्‍पीनस), भूरा भेडिया (केनिस ल्‍यूपस), हाइना (फेलस केरा केल) और छोटी बिल्लियां यहां आप बड़ी आसानी से नील गाय और चिंकारा को घास के खुले मैदानों में घूमते हुए देख सकते हैं, विशेष रूप से किनारे की ओर। यहा कई प्रकार के सांपों के साथ अजगर और अन्‍य सरीसृप जंतु पाए जाते हैं। यहां 200 से अधिक पक्षियों की प्रजातियां पाई जाती है जिसमें अनेक प्रवासी पक्षी शमिल है। यहां सफेद गर्दन वाले स्‍टॉर्क, बार हेडिड बोज़, हनी बजार्ड, गिध, ब्‍लास्‍म हेडिड पाराकिट, पैराडाइज़ फ्लाइकेचर, स्‍नेटी हेडिड सिमीटार बैबलर आदि कुछ नाम हैं जो पाए जाते है।
करेरा पक्षी अभयारण्‍य-------------------- करेरा पक्षी अभयारण्‍य भारत के मध्‍य में स्थित मध्‍य प्रदेश राज्‍य में है। यहां की वनस्‍पति मिश्रित पतझड़ी वनों के साथ नमी युक्‍त है। यहां बेर की झाडियां और अन्‍य वन्‍य पादपों की संख्‍या काफी अधिक है। इस पूरे वन में बबूल के अलावा कोई अन्‍य वृक्ष नहीं पाए जाते। करेरा अभयारण्‍य के कांटे दार खुले वनों में विशाल आकार के ग्रेट इंडियन बर्स्‍टड पाए जाते हैं और साथ ही मनमोहक ब्‍लैक बक भी यहां देखे जा सकते हैं। यहां कई प्रकार के पक्षियों और जंतुओं में अपना अधिवास बनाया है। ब्‍लैक बक और भारतीय गजेल यहां पाई जाने वाली कुछ प्रमुख प्रजातियां हैं। मौसम के दौरान अनेक प्रवासी पक्षी यहां अपना घर बनाते हैं। ये हैं पिनटेल्‍स, टील्‍स और गेडवॉल्‍स जो सूर्य की धूप से बच कर या कीचड़ में बैठ कर समय बिताते हैं। यहां ऐसे अनेक जलीय पक्षी भी हैं जो नदी में तैरते हुए पाए जाते हैं जैसे अग्रे और स्‍पॉनबिल्‍स। यहां पाए जाने वाले अन्‍य पक्षी हैं हेरॉन्‍स, इंडियन रॉबिन्‍स और साथ ही ड्रेगन फ्लाई, डेम्‍स फ्लाई तथा तितलियां भी पाई जाती है।
बोरी वन्‍य जीवन अभयारण्‍य---------------------बोरी वन्‍य जीवन अभयारण्‍यों मध्‍य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में स्थित है। यह 518 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैले सबसे पुराने आरक्षित वनों में से एक है। यह वन्‍य जीवन अभयारण्‍य सतपुड़ा रेज के उत्तरी सिरे पर स्थित है। इस अभयारण्‍य में अधिकाशंत: सूखे पतझड़ी वन पाए जाते हैं, जिसमें टीक, धाओरा, बांस, तेंदु मुख्‍य रूप से पाए जाते हैं यहां ऐसी अनेक झाडियां और लताएं हैं जिन्‍होंने इस आरक्षित वन की सुंदरता को बढ़ा दिया है। इस अभयारण्‍य के विभिन्‍न पेड़ पौधे अनेक जीव जंतुओं का आश्रय है जैसे बाघ, चीता, हाइना, भेडिए, जंगली कुत्ते और भारतीय लोमड़ी, चीतल एक्सिस, सांभर, नील गाय, चिंकारा, गेज़ल, जंगली बिल्‍ली और चार सींग वाले एंटीलॉप, इन सभी को प्राकृतिक अधिवास में घूमते हुए देखा जा सकता है।

कान्हा राष्ट्रीय उद्यान

   मै मुकेश वाहने मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले से हू, मै ऑरकुट और फेसबुक के सभी दोस्तों को बालाघाट में आमंत्रित करता हू कान्हा नेशनल पार्क बालाघाट जिले से ही लगा बहुत ही सुन्दर पार्क है , कान्हा राष्ट्रीय पार्क वायु, रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। 
                                           कान्हा राष्ट्रीय उद्यान
                                  IUCN श्रेणी २(राष्ट्रीय उद्यान)
                                  स्थिति-    मध्य प्रदेश, भारत
                                 निकटतम शहर-    मांडला
                   निर्देशांक    22°20′0″N 80°38′0″Eनिर्देशांक: 22°20′0″N 80°38′0″E
                                 क्षेत्रफ़ल -   940 km²
                                 स्थापित  -  1955
                                 पर्यटक -   1,000 (in 1989)
                                 प्रशासन-    वन विभाग, मध्य प्रदेश सरकार
                                                             
                     मध्यप्रदेश के दक्षिण-पूर्व में स्थित आदिवासी बाहुल्य प्रकृति के वन एवं खनिज सम्पदा का अपार भण्डार अपने सीने में छुपाने वाला बालाघाट जिले के दक्षिण क्षेत्र में स्थित विश्व विख्यात एवं अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर जिले को पहुंचाने वाले प्रदेश के विभिन्न चर्चित पार्क में से एक कान्हा नेशनल पार्क पर्यटकों के लिए ऐसा केन्द्र है, जहां जाकर पर्यटन का आनंद लेने की इच्छा हर किसी की होती है। रायपुर से 330 किलोमीटर, नागपुर से 270, जबलपुर से 169 किलोमीटर और मंउला जिले से 65 किलोमीटर दूरी पर स्थित अंतर्राष्ट्रीय कान्हा नेशनल पार्क का क्षेत्रफल 940 वर्ग किलोमीटर है।सन 1999-2000 में पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा इस उद्यान को देश का बेस्ट मेन्टनेन्ड टूरिस्ट केण्डली नेशनल पार्क घोषित किया गया। इसका इतिहास भी बहुत ही रोचक है: 1972 में सरकार द्वारा प्रोजेक्ट टाईगर के अंतर्गत के शामिल किये गये। यहां के अधिकांश वन दक्षिण उष्ण कटिबंधीय, नम मिश्रित पर्णपाती वन हैं। पार्क के 24 प्रतिशत भाग में साल वन, 66 प्रतिशत भाग में मिश्रित वन तथा 9 प्रतिशत भाग में घास के मैदान है। कान्हा पार्क में वन्य प्राणी संरक्षण का रोचक इतिहास है। यहां अनेक दुर्लभ प्रजाति के वन्य जीव पाये जाते हैं। उद्यान में बंजर एवं हालोन नामक दो घाटियां है। वर्ष 1933 में बंजर एवं 1935 में हालोन को वन्य जीव अभ्यारण्य सरकार द्वारा घोषित किया गया। सन 1955 में बंजर अभ्यारण्य राष्ट्रीय उद्यान घोषित हुआ।
            अधिसूचना के समय इसका क्षेत्रफल 253 वर्ग किलोमीटर जो 1964 एवं 1970 में बढ़कर 446 वर्ग किलोमीटर हो गया। 1976 में हालोन अभ्यारण्य को इसमें शामिल करने से इसका क्षेत्रफल 940 वर्ग किलोमीटर किलोमीटर पहुंच गया। उद्यान के चारों तरफ फैले 1005 वर्ग किलोमीटर को बफर जोन कहा जाता है। यदि इसे भी शामिल कर लिया जाये तो इसका क्षेत्रफल 1045 वर्ग किलोमीटर हो जायेगा। सन 1982 में उद्यान के मुख्य भाग के पूर्वी क्षेत्र को 1011 वर्ग किलोमीटर के सेटेलाईट कोर एरिया को फेन अभ्यारण्य के रूप में स्थापित किया।कान्हा पार्क तक पहुंचने के लिए सीधे रेल सेवा तो नही है, पर सड़क मार्ग की अनेक सुविधाएं यंहा पर उपलब्ध है। यहंा पाये जाने वाले वन्य जीव समृद्ध है। यहां 43 प्रजातियों के स्तनपायी 18 प्रजातियों के सरीसृप और 300 प्रजाति के पक्षी पाये जाते हैं। पार्क का मुख्य आर्कषण वन्य जीव बारहसिंगा है, जिसे मध्यप्रदेश सरकार ने राज्य प्राणी घोषित किया है। परन्तु वर्तमान समय एक संकटग्रस्त प्रजाति यह माना जाता है। पार्क में 130 के आसपास बाघों की संख्या बतायी जाती है। स्पष्ट आकंड़े उपलब्ध नही है। पहाड़ों पर स्थित चारागाहों का विशिष्ट स्थान है। इन्हे स्थानीय भाषा में दादर कहा जाता है। कुछ दादर तो 12 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए हैं।इसके अतिरिक्त यहां पर बाघ, गुलबाघ, जंगली कुत्ता, भेड़िया, सियार, लोमड़ी, बाईसन, सांभर, नीलगाय, चीतल, भेड़की, जंगली सुअर, भालू जैसे वन्य प्राणी भी देखे जा सकते हैं। कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में अनेक दर्शनीय स्थल हैं, जहां से प्रकृति दर्शन का आनंद लिया जा सकता है। उद्यान में किसली मैदान डिगडोला राक कान्हा मैदान, कान्हा एनीकट, चुहरी, श्रवणताल, माचादादर, बम्हनी दादर, बिसनपुर, सोंडर और सोंडर तालाब, घोरेला, लक्सीकबर, शंकरघाटी, पोंगापानी, जानमाड़ा, गुफा, रौंदा, भिलवानी, सूपखार, बम्हनी, मटटा और दरबारी पत्थर प्रमुख दर्शनीय स्थल है। प्रतिवर्ष 1 अक्टूबर से 30 जून तक पर्यटकों के दर्शनार्थ और भ्रमण हेतु खुलने वाले इस पार्क में अनुमानित तौर पर 50 से 60 हजार देशी विदेशी पर्यटक हर साल यहां आकर पर्यटन का आनंद उठाते हैं। पार्क के आसपास मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग, वन विभाग के विश्राम गृह के साथ प्राईवेट होटलों की भरमार हैं, जहां पर सभी प्रकार की आधुनिकतम सुख सुविधा उपलब्ध है।
हालांकि इस क्षेत्र के महत्व को देखते हुए पार्क से 35 किलोमीटर दूर बैहर में नवीन हवाई पटटे का निर्माण किया गया है। यहां जैसे विमानों का आवागमन विधिवत रूप से प्रारंभ होगा, इससे पार्क भ्रमण करने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होगी। सतपुड़ा पर्वत के मैकल श्रेणियों की उत्तरी ढ़ आने से वन्य जीव के बहने के साथ नक्सलियों के द्वारा पार्क में आग लगाकर क्षति पहुंचाने की घटना जो घटित हो चुकी है। इन विषमताओं के पश्चात भी कान्हा पार्क अपनी लोकप्रियता को बनाये रखने एवं पर्यटकों को आकर्षित करने में कहीं भी पीछे नही है।

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