Monday, September 26, 2011

दुनिया के बड़े भूकंप--

दुनिया भर में पिछले पच्चीस सालों में कई बड़े भूकंप आए हैं और इनमें से कई तो दक्षिण एशिया में रहे हैं.--
30 सितंबर 1993- महाराष्ट्र के लातूर में 6.4 की तीव्रता के भूकंप में कम से कम दस हज़ार लोगों की मौत हुई.
17 जनवरी 1995- जापान में आए सबसे भंयकर भूकंपों में एक जो रिक्टर पैमाने पर 7.2 मापा गया. जापान का आधा हिस्सा हिल गया और छह हज़ार से अधिक लोग मारे गए.
                                              
4 फरवरी 1998- अफ़गानिस्तान के तखार प्रांत में आए भूंकप में साढ़े हज़ार मौतें हुई जबकि दो महीने बाद मई में फिर आए भूकंप में चार हज़ार लोग मारे गए.
17 अगस्त 1999- तुर्की में7.4 की तीव्रता का भूकंप जिसमें मरने वाले लोगों की संख्या थी 17 हज़ार 800 से अधिक.
26 जनवरी 2001 - भारत के गुज़रात राज्य में इस भीषण भूकंप में क़रीब 20 हज़ार लोग मारे गए और इसका असर पाकिस्तान तक महसूस किया गया.
26 दिसंबर 2003 - ईरान के ऐतिहासिक बाम शहर में 6.8 की तीव्रता के झटके महसूस किए गए जिसमें 31 हज़ार से अधिक लोग मारे गए.
26 दिसंबर 2004 - पूरे एशियाई महाद्वीप में सूनामी के बाद आए इस भूकंप में मरने वालों की संख्या दो लाख से ऊपर मानी जाती है. इस भूंकप ने भारत, श्रीलंका, इंडोनेशिया, थाईलैंड और मालदीव को प्रभावित किया था.
8 अक्तूबर 2005 - पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर—तीव्रता 7.6 जिसमें मारे गए कम से कम 75 हज़ार लोग. इसी घटना में भारत प्रशासित कश्मीर में 1200 मौतें हुईं
12 मई 2008 - चीन का सिचुआन प्रांत जहां 7.8 की तीव्रता का भूकंप जिसमें 70 हज़ार लोगों की मौत हुई

क्या संभव है भूकंप की भविष्यवाणी-

            हर भूकंप की तरह इस बार भी लोग सोच रहे हैं कि क्या कोई ऐसा तरीका नहीं है जिससे भूकंप को आने से रोका जा सके? और यदि इस प्राकृतिक आपदा को रोका नहीं जा सकता है, तो साइंटिस्टों के पास क्या कोई ऐसा तरीका नहीं है जिससे इसके आने की भविष्यवाणी की जा सके, ताकि विनाश को कम किया जा सके? हालांकि साइंटिस्ट भूकंप को पहले से जान लेने की कोशिशें करते रहे हैं। पर दो साल पहले इटली में वैज्ञानिकों ने जिस रोज ला-अकिला के नागरिकों को आश्वस्त किया था कि फिलहाल वहां भूकंप का कोई ऐसा खतरा नहीं है कि पूरे इलाके को खाली कराया जाए, वहां उसके अगले ही दिन 6.3 की ताकत वाला बड़ा भूकंप आ गया, जिसमें 300 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। इससे वहां की सरकार इतनी खफा हुई कि उसने सही भविष्यवाणी करने में नाकाम रहने पर छह साइंटिस्टों और एक सरकारी अधिकारी के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया।
                                                  

          भूकंप का पहले से अनुमान लगाने के मकसद से वैज्ञानिक पृथ्वी की भीतरी और बाहरी संरचना को समझने का प्रयास करते रहे हैं। अनुमान है कि सदियों पहले धरती पर भूकंप नहीं आते होंगे क्योंकि इसके सभी महाद्वीप आपस में जुड़े हुए थे। पर करीब साढे़ 22 करोड़ साल पहले धरती में ऐसी टूटफूट शुरू हुई जिससे पैन्जया (जुड़ी हुई धरती के इकलौते टुकड़े) के तीन हिस्से हो गए। पहला हिस्सा लौरेशिया था जिसमें उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया बने। दूसरा हिस्सा गोंडवाना कहलाया। इसमें से दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका व भारत का निर्माण हुआ। अंटार्कटिका और आस्ट्रेलिया आदि का जन्म तीसरे बचे हिस्से में हुआ। करोड़ों साल के अंतराल में भारतीय खंड दक्षिण अमेरिका व अफ्रीका से अलग होकर एशियाई खंड से आ टकराया, जिससे हिमालय पर्वतश्रृंखला बनी। इसके बाद भी चूंकि धरती के अंदर प्लेटों का खिसकना जारी है, इसलिए जमीनी हलचलों के कारण पैदा होने वाले भूकंपों, सूनामी लहरों, ज्वालामुखी विस्फोटों का सिलसिला भी नहीं रुका है।धरती के भीतर की भारी-भरकम प्लेटें हर साल कुछ सेंटीमीटर खिसकती रहती हैं, पर साथ ही इन प्लेटों के जुड़ने, जमीन से अलग होने और टूटने-चटकने के कारण भूमिगत ताप, दाब और रासायनिक क्रियाओं का जन्म होता है, जिससे किसी एक स्थान पर ऊर्जा का बड़ा भंडार जमा हो जाता है। यही जमी हुई ऊर्जा जिस स्थान से धरती फोड़कर बाहर निकलती है, वही स्थान भूकंप का केंद अथवा एपीसेंटर कहलाता है। प्राय: एपीसेंटर से जो ऊर्जा निकलती है, वह किसी परमाणु बम से अधिक शक्तिशाली होती है। अगर यह ऊर्जा ज्वालामुखी विस्फोटों आदि से बाहर नहीं निकल पाती है, तो वह धरती की परतें फाड़ती है और इसी से भूकंप पैदा होता है।
प्रश्न उठता है कि जब साइंटिस्ट यह जानते हैं कि धरती के अंदर क्या चल रहा है तो वे ऐसे प्रबंध क्यों नहीं करते जिनसे भूकंप का सटीक अंदाजा लगाया जा सके? वैसे इस मामले में वैज्ञानिक हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे हैं। सच तो यह है कि अनेक साइंटिस्ट कई विधियों से धरती के अंदर चल रही हलचलों की टोह लेने की कोशिश कर रहे हैं। सीस्मोलॉजिस्ट धरती की भीतरी चट्टानी प्लेटों की चाल, अंदरूनी फॉल्ट लाइनों और ज्वालामुखियों से निकल रही गैसों के दबाव पर नजर रख कर भूकंप की चाल का अंदाजा लेने की कोशिश करते हैं। जापान और कैलिफोनिर्या में जमीन के अंदर चट्टानों में ऐसे संेसर लगाए गए हैं, जो बड़ा भूकंप आने से ठीक 30 सेकेंड पहले इसकी चेतावनी जारी कर देते हैं। ऐसे आंकड़ों का विश्लेषण कर भूकंप की भविष्यवाणी करने के मकसद से 2005 में अमेरिका के जूलॉजिकल सर्वे विभाग ने एक वेबसाइट भी बनाई। इसमें स्थान विशेष के धरातल में हो रहे बदलावों पर नजर रखकर हर घंटे भूकंप की आशंका वाले क्षेत्रों का अनुमान लगाकर वे स्थान नक्शे में चिह्नित किए जाते हैं। इस विभाग ने इन जानकारियों और गणनाओं के लिए एक बड़ा नेटवर्क बना रखा है।
बीबीसी के अनुसार, इस साल के अंत तक अमेरिका एक सैटेलाइट भी छोड़ने वाला है जिसका मकसद भूकंप का पता लगाना ही है। असल में कुछ साइंटिस्ट मानते हैं कि वायुमंडल के सुदूर हिस्सों में होने वाली विद्युतीय प्रक्रियाओं और जमीन के नीचे होने वाली हलचलों में कोई रिश्ता है। यह सैटेलाइट इन्हीं हलचलों को पढ़ने में साइंटिस्टों की मदद करेगा। वैसे दुनिया में भूकंप का पहले से अंदाजा लगाने के कुछ अपारंपरिक तौर-तरीके भी प्रचलित हैं। जैसे, माना जाता है कि कई जीव-जंतु अपनी छठी इंदिय से जान जाते हैं कि जलजला आने वाला है। ब्रिटेन के जर्नल ऑफ जूलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार 2009 को इटली के ला-अकिला में आए भूकंप से तीन दिन पहले टोड अपने प्रजनन स्थल छोड़कर दूर चले गए थे।
                कुछ ज्योतिषी भी अपनी गणनाओं से सटीक भविष्यवाणी का दावा करते रहे हैं। उन्नीसवीं सदी में हुए इटली के राफेले बेनदांदी को इस मामले में काफी प्रतिष्ठा हासिल है। उन्होंने नवंबर, 1923 को घोषणा की थी कि दो जनवरी,1924 को इटली के प्रांत ले-माचेर् में भूकंप आ सकता है। घोषित तारीख के ठीक दो दिन बाद वहां ताकतवर भूकंप आया था। बेनदांदी की गणनाओं के आधार पर इस साल 11 मई को रोम में भूकंप आने की आशंका के मद्देनजर अनेक लोग रोम से बाहर चले गए थे, हालांकि इस तारीख को वहां भूकंप नहीं आया। न्यू जीलैंड में एक जादूगर केन रिंग को भी ऐसी ख्याति हासिल रही है। साइंटिस्ट कहते हैं कि धरती के भीतर चल रही भूगर्भीय प्रक्रियाओं की वजह से हर साल दस करोड़ छोटे-मोटे भूकंप दुनिया में आते हैं। हर सेकेंड लगभग तीन भूकंप ग्लोब के किसी न किसी कोने पर सीस्मोग्रॉफ के जरिए अनुभव किए जाते हैं। पर शुक्र है कि इनमें से 98 फीसदी सागर तलों में आते हैं। और जो दो प्रतिशत जलजले सतह पर महसूस होते हैं, उनमें से भी करीब सौ भूकंप ही हर साल रिक्टर पैमाने पर दर्ज किए जाते हैं। इन्हीं कुछ दर्जन भूकंपों में बड़ा भारी विनाश छिपा रहता है।
जापान और इंडोनेशिया जैसे भूकंप की सर्वाधिक आशंका वाले क्षेत्रों में भूकंप की भविष्यवाणी करना थोड़ा आसान है लेकिन बाकी स्थानों पर ऐसा कोई दावा करने का मतलब अंधेरे में तीर चलाने जैसा है। यह विडंबना ही है कि इन तमाम प्रयासों के बावजूद कोई भी यह पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि कब, किस जगह पर कितना बड़ा भूकंप आएगा। शायद कुछ चीजें अभी भी प्रकृति ने अपने हाथ में ही रखी हुई हैं।

भूकंप----

भूकंप----
भूकंप आज भी ऐसा प्रलय माना जाता है जिसे रोकने या काफी समय पहले सूचना देने की कोई प्रणाली वैग्यानिकों के पास नहीं है। प्रकृति के इस तांडव के आगे सभी बेबश हो जाते हैं। सामने होता है तो बस तबाही का ऐसा मंजर जिससे उबरना आसान नहीं होता है।
कारण तो पता है मगर रोकना नामुमकिन------------
वैज्ञानिकों ने धरती की सतह के काफ़ी भीतर आने वाले भूंकपों की ही तरह नकली भूकंप प्रयोगशाला में पैदा करने में सफलता पाई है.ऐसे भूकंप आमतौर पर धरती की सतह से सैंकड़ों किलोमीटर अंदर होते हैं, और वैज्ञानिकों की तो यह राय है कि ऐसे भूकंप वास्तव में होते नहीं हैं.वैज्ञानिकों ने इन कथित भूकंपों को प्रयोगशाला में इसलिए पैदा किया कि इसके ज़रिए धरती की अबूझ पहेलियों को समझा जा सके.ताज़ा प्रयोगों से धरती पर आए भीषणतम भूकंपो में से कुछ के बारे में विस्तृत जानकारी मिल सकेगी.अधिकांश भूकंपों की उत्पत्ति धरती की सतह से 30 से 100 किलोमीटर अंदर होती है.i सतह के नीचे धरती की परत ठंडी होने और कम दबाव के कारण भंगुर होती है. ऐसी स्थिति में जब अचानक चट्टानें गिरती हैं तो भूकंप आता है.एक अन्य प्रकार के भूकंप सतह से 100 से 650 किलोमीटर नीचे होते हैं.इतनी गहराई में धरती इतनी गर्म होती है कि सिद्धांतत: चट्टानें द्रव रूप में होनी चाहिए, यानि किसी झटके या टक्कर की कोई संभावना नहीं होनी चाहिए.लेकिन ये चट्टानें भारी दबाव के माहौल में होती हैं.इसलिए यदि इतनी गहराई में भूकंप आए तो निश्चय ही भारी ऊर्जा बाहर निकलेगी। धरती की सतह से काफ़ी गहराई में उत्पन्न अब तक का सबसे बड़ा भूकंप 1994 में बोलीविया में रिकॉर्ड किया गया. सतह से 600 किलोमीटर दर्ज इस भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 8.3 मापी गई थी.हालाँकि वैज्ञानिक समुदाय का अब भी मानना है कि इतनी गहराई में भूकंप नहीं आने चाहिए क्योंकि चट्टान द्रव रूप में होते हैं.वैज्ञानिकों का मानना है कि विभिन्न रासायनिकों क्रियाओं के कारण ये भूकंप आते होंगे.अत्यंत गहराई में आने वाले भूकंपों के बारे में ताज़ा अध्ययन यूनवर्सिटी कॉलेज, लंदन के मिनरल आइस एंड रॉक फिज़िक्स लैबोरेटरी में किया गया है.
                                                                 
जानवरों को मालूम हो जाता है भूकंप-------------------------
बचपन में बड़े बुजुर्गों से सुना था कि जब भूकंप आने को होता है तो पशु-पक्षी कुछ अजीब हरकतें करने लगते हैं। चूहे अपनी बिलों से बाहर आ जाते हैं। अगर यह सही है तो वैग्यानिक पशु-पक्षियों की इस अद्भुत क्षमता को भूकंप की पूर्व सूचना प्रणाली में क्यों नहीं बदल सकते। अगर ऐसा संभव हो जाए तो प्रकृति की इस तबाही पर विजय पा सकेगा मानव। हालांकि प्रयोगशालाओं में इस पर शोध कर रहे हैं वैग्यानिक। चूहे भूकंप आने का संकेत दे सकते हैं। जापान के शोधकर्ताओं का कुछ यही मानना है। उन्होंने पाया है कि भूकंप आने से पहले जिस तरह के विद्युत और चुंबकीय क्षेत्र बनते है अगर चूहों को उन क्षेत्रों में रखा जाए तो वे अजीबोगरीब हरकते करते हैं। ओसाका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ताकेशी यागी का कहना है कि चूहों का अजीब व्यवाहर उन्होंने आठ साल पहले कोबे में आए भूकंप से एक दिन पहले अपनी प्रयोगशाला में देखा था.इस तरह के व्यवाहर से भूकंप के आने का कुछ अंदेशा लगाया जा सकता है. हालाँकि जीववैज्ञानिकों का मानना है कि इस तरह की हरकतें एक समान नहीं रहती इसलिए पक्की भविष्यवाणी करना कठिन हो जाता है.
अगल-अगल कहानियाँ----------------
दुनिया भर में ऐसी कई कहानियाँ हैं कि जानवर भूकंप से पहले अदभुत तरह से बर्ताव करने लगते हैं. जैसे चीन में कैट नाम की मछली पानी से बाहर कूदने लगती है, मैक्सिको में साँप अपने बिलों से बाहर आ जाते हैं. अमरीका में भूगर्भ सर्वेक्षण के एक कार्यकर्ता मानते है कि भूकंप से पहले अख़बारों में गुम हुए पालतू जानवरों के इश्तिहार भी ज़्यादा हो जाते है. प्रोफेसर यागी के परीक्षण में चूहों को दो हफ़्तो के लिए एक स्थिर पर्यावरण में रखा गया और उनकी हरकतों पर नज़र रखी गई. फिर उन्हें 30 मिनट के लिए विद्युत और चुंबकीय क्षेत्र में रखा गया. प्रोफेसर का कहना है कि ऐसा करने से उनका चूहा बेचैन होने लगा था. हालाँकि वे मानते हैं कि इन नतीजों को पक्का करने के लिए कुछ और परीक्षण करने होंगे।
तीन फ़रवरी, 2008 == कॉंगो और रवांडा में ज़बरदस्त भूकंप आया. इसमें 45 लोग मारे गए.
छह मार्च, 2007 == इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप में 6.3 तीव्रता का भूकंप, 70 लोगों की मौत
27 मई, 2006 == इंडोनेशिया के योगजकार्ता में आए भूकंप में छह हज़ार लोग मारे गए और 15 लाख बेघर हो गए.
आठ अक्तूबर, 2005 == पाकिस्तान में 7.6 तीव्रता वाला भीषण भूकंप आया जिसमें करीब 75 हज़ार लोग मारे गए. करीब 35 लाख लोग बेघर हुए.
28 मार्च, 2005: == इंडोनेशिया में आए भूकंप में लगभग 1300 लोग मारे गए. रिक्टर स्केल में यह 8.7 मापा गया था.
22 फ़रवरी, 2005: == ईरान के केरमान प्रांत में लगभग 6.4 तीव्रता के आए भूकंप में लगभग 100 लोग मारे गए थे.
26 दिसंबर,2004: == भूकंप के कारण उत्पन्न सूनामी लहरों ने एशिया में हज़ारों लोगों की जान ले ली थी. इस भूकंप की तीव्रता 8.9 मापी गई थी.
24 फ़रवरी, 2004: == मोरक्को के तटीय इलाक़े में आए भूकंप ने 500 लोगों की जान ले ली थी.
26 दिसंबर, 2003: == दक्षिणी ईरान में आए भूकंप में 26 हज़ार से अधिक लोगों की मौत हो गई थी.
21 मई 2003: == अल्जीरिया में बड़ा भूकंप आया. इसमें दो हज़ार लोगों की मौत हो गई थी और आठ हज़ार से अधिक लोग घायल हुए थे.
1 मई 2003: == तुर्की के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में आए भूकंप में 160 से अधिक लोगों की मौत हो गई जिसमें 83 स्कूली बच्चे शामिल थे.
24 फरवरी 2003: == पश्चिमी चीन में आए भूकंप में 260 लोग मारे गए और 10 हज़ार से अधिक लोग बेघर हो गए.
21 नवंबर 2002: == पाकिस्तान के उत्तरी दियामीर ज़िले में भूकंप में 20 लोगों की मौत.
31 अक्टूबर, 2002: == इटली में आए भूकंप से एक स्कूल की इमारत गिर गई जिससे एक क्लास के सभी बच्चे मारे गए.
12 अप्रैल 2002: == उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में दो महीनों में ये तीसरा भूकंप का झटका था. इसमें अनेक लोग मारे गए.
25 मार्च 2002: == अफ़ग़ानिस्तान के उत्तरी इलाक़े में भूकंप मे 800 से ज़्यादा लोग मरे. भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 6 थी.
3 मार्च 2002: == अफ़ग़ानिस्तान में एक अन्य भूकंप ने 150 को मौत की नींद सुलाया. इस भूकंप की तीव्रता 7.2 मापी गई थी.
3 फ़रवरी 2002: == -पश्चिमी तुर्की में भूकंप में 43 मरे. हज़ारों लोग बेघर.
24 जून 2001: == दक्षिणी पेरू में भूकंप में 47 लोग मरे. भूकंप के 7.9 तीव्रता वाले झटके एक मिनट तक महसूस किए जाते रहे.
13 फ़रवरी 2001: == अल साल्वाडोर में दूसरे बड़े भूकंप की वजह से कम से कम 300 लोग मारे गए. इस भूकंप को रिक्टर स्केल पर 6.6 मापा गया.
26 जनवरी 2001: == भारत के गुजरात राज्य में रिक्टर स्केल पर 7.9 तीव्रता का एक शक्तिशाली भूकंप आया. इसमें कम से कम तीस हज़ार लोग मारे गए और क़रीब 10 लाख लोग बेघर हो गए. भुज और अहमदाबाद पर भूकंप का सबसे अधिक असर पड़ा.
13 जनवरी 2001: == अल साल्वाडोर में 7.6 तीव्रता का भूकंप आया. 700 से भी अधिक लोग मारे गए.
6 अक्टूबर 2000: == जापान में रिक्टर स्केल पर 7.1 तीव्रता का एक भूकंप आया. इसमें 30 लोग घायल हुए और क़रीब 200 मकानों को नुकसान पहुंचा.
21 सितंबर 1999: == ताईवान में 7.6 तीव्रता का एक भूकंप आया. इसमें ढाई हज़ार लोग मारे गए और इस द्वीप के हर मकान को नुकसान पहुंचा.
17 अगस्त 1999: == तुर्की के इमिट और इंस्ताबूल शहरों में रिक्टर स्केल पर 7.4 तीव्रता का भूकंप आया. इस भूकंप की वजह से सतरह हज़ार से अधिक लोग मारे गए और हज़ारों अन्य घायल हुए.
29 मार्च 1999: == भारत के उत्तरप्रदेश राज्य के उत्तरकाशी और चमोली में दो भूकंप आए और इनमें 100 से अधिक लोग मारे गए.
25 जनवरी 1999: == कोलंबिया के आर्मेनिया शहर में 6.0 तीव्रता का भूकंप आया. इसमें क़रीब एक हज़ार लोग मारे गए.
17 जुलाई 1998: == -न्यू पापुआ गिनी के उत्तरी-पश्चिमी तट पर समुद्र के अंदर आए भूकंप से बनी लहरों ने तबाही मचा दी. इसमें एक हज़ार से भी अधिक लोग मारे गए.
26 जून 1998: == -तुर्की के दक्षिण-पश्चिम में अदना में 6.3 तीव्रता का भूकंप आया जिसमें 144 लोग मारे गए. एक हफ़्ते बाद इसी इलाक़े में दो शक्तिशाली भूकंप आए जिनमें एक हज़ार से अधिक लोग घायल हो गए.
30 मई 1998: == उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में एक बड़ा भूकंप आया. इसमें चार हज़ार लोग मारे गए.
फ़रवरी 1997: == -उत्तर-पश्चिमी ईरान में रिक्टर स्केल पर 5.5 तीव्रता का एक भूकंप आया जिसकी वजह से एक हज़ार लोग मारे गए. तीन महीने बाद 7.1 तीव्रता का भूकंप आया जिसकी वजह से पश्चिमी ईरान में डेढ़ हज़ार से अधिक लोग मारे गए.
27 मई 1995: == रूस के सुदूर पूर्वी द्वीप सखालीन में 7.5 तीव्रता का एक शक्तिशाली भूकंप आया जिसकी वजह से क़रीब दो हज़ार लोगों की मृत्यु हो गई.
17 जनवरी 1995: == जापान के कोबे शहर में शक्तिशाली भूकंप में छह हज़ार चार सौ तीस लोग मारे गए.
6 जून 1994: == -कोलंबिया में आए भूकंप में क़रीब एक हज़ार लोग मारे गए.
30 सितंबर 1993: == -भारत के पश्चिमी और दक्षिणी हिस्सों में आए भूकंपों में क़रीब दस हज़ार ग्रामीणों की मृत्यु हो गई.
21 जून 1990: == ईरान के उत्तरी राज्य गिलान में आए एक भूकंप ने चालीस हज़ार से भी अधिक लोगों की जान ले ली.
17 अक्टूबर 1989: == -कैलिफ़ोर्निया में आए भूकंप में 68 लोग मारे गए.
7 दिसंबर 1988: == -उत्तर-पश्चिमी आर्मेनिया में रिक्टर स्केल पर 6.9 तीव्रता के एक भूकंप ने पच्चीस हज़ार लोगों की जान ले ली.
19 सितंबर 1985: == -मैक्सिको शहर एक शक्तिशाली भूकंप से बुरी तरह से हिल गया. इसमें बड़ी इमारतें तबाह हो गईं और दस हज़ार से अधिक लोग मारे गए.
23 नवंबर 1980: == -इटली के दक्षिणी हिस्से में आए भूकंप की वजह से सैंकड़ों लोग मारे गए.
28 जुलाई 1976: == -चीन का तांगशान शहर भूकंप की वजह से मिट्टी में मिल गया. इसमें पांच लाख से अधिक लोग मारे गए.
27 मार्च 1964 == -रिक्टर स्केल पर 9.2 तीव्रता के एक भूकंप ने अलास्का में 25 लोगों की जान ले ली और बाद के झटकों की वजह से 110 और लोग मारे गए.
22 मार्च 1960: == -दुनिया में अब तक का सबसे शक्तिशाली भूकंप चिली में आया. इसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 9.5 दर्ज की गई. कई गांव के गांव तबाह हो गए और सैंकड़ों मील दूर हवाई में 61 लोग मारे गए.
28 जून 1948: == -पश्चिमी जापान में पूर्वी चीनी समुद्र को केंद्र बनाकर भूकंप आया जिसमें तीन हज़ार से ज़्यादा लोग मारे गए.
31 मई, 1935 == -क्वेटा और उसके आसपास के इलाक़ों में आए ज़बरदस्त भूकंप में लगभग 35 हज़ार लोगों की जानें गईं.
1935: == -ताईवान में रिक्टर स्केल पर 7.4 तीव्रता का एक भूकंप आया जिसकी वजह से तीन हज़ार दो सौ लोग मारे गए.
1 सितंबर 1923: == -जापान की राजधानी टोक्यो में आया ग्रेट कांटो भूकंप. इसकी वजह से 142,800 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.
18 अप्रैल 1906: == -सैन फ़्रांसिस्को में कई मिनट तक भूकंप के झटके आते रहे. इमारतें गिरने और उनमें आग लगने की वजह से सात सौ से तीन हज़ार के बीच लोग मारे गए.

महागौरी - माँ दुर्गाजी-----

महागौरी - माँ दुर्गाजी-----
हिन्दू धर्म में शक्ति की देवीदुर्गा के नौ रूप बताये गए हैं।
1- देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं। दुर्गाजी पहले स्वरूप में 'शैलपुत्री' के नाम से जानी जाती हैं।ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है।
2-ब्रह्मचारिणी----नवरात्र पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली।
                                             
3--चंद्रघंटा----माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन 'मणिपूर' चक्र में प्रविष्ट होता है।
4---कूष्माण्डा----नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन 'अदाहत' चक्र में अवस्थित होता है।
5----स्कंदमाता----नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।
6----कात्यायनी-----माँ दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। उस दिन साधक का मन 'आज्ञा' चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।
7---कालरात्रि----माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गापूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है।
8----महागौरी------माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों को सभी कल्मष धुल जाते हैं, पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं।
9---सिद्धिदात्री-----माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है।
इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है।

पीएम की सहमति से हुआ फैसला और राजा कर सके 1.76 लाख करोड़ का घोटाला------

पीएम की सहमति से हुआ फैसला और राजा कर सके 1.76 लाख करोड़ का घोटाला------
2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंत्रियों के समूह (जीओएम) के टर्म्स ऑफ रिफरेंस (टीओआर अथवा कार्यवाही के बिंदु) को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी सहमति से ही स्पेक्ट्रम की कीमतें तय करने का हक जीओएम से लेकर टेलीकॉम मंत्री को दे दिया गया। इसी वजह से तत्कालीन टेलीकॉम मंत्री ए राजा जनवरी 2007 में घोटाला कर पाए, जिससे देश को 1.76 लाख करोड़ का नुकसान हुआ। सामाजिक कार्यकर्ता विवेक गर्ग ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत गोपनीय दस्तावेज हासिल किए हैं, जिनसे यह खुलासा हुआ। इस बीच, वॉशिंगटन में भारतीय पत्रकारों से बातचीत में प्रणब मुखर्जी ने 2 जी स्पेक्ट्रम विवाद पर पूछे गए सवाल का जवाब देने से इनकार करते हुए कहा है कि वह इस मुद्दे पर भारत लौटने के बाद ही बोलेंगे। वहीं, बीजेपी ने अब प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा है कि डॉ. मनमोहन सिंह को इस मुद्दे पर देश को जवाब देना चाहिए। पार्टी के प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने शनिवार की सुबह कहा, ‘यह मामला सिर्फ चुपचाप दर्शक बने रहने का नहीं बल्कि मिलीभगत का है।’
2जी घोटाले में पहले पी चिदंबरम, फिर प्रणब मुखर्जी और अब खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की भूमिका को लेकर हो रहे खुलासे के बीच प्रणब मुखर्जी अमेरिका में प्रधानमंत्री से आपात बैठक करने वाले हैं।
                                                                   
मनमोहन से मिले मारन: जनवरी 2006 में प्रधानमंत्री ने दूरसंचार कंपनियों के लिए रक्षा मंत्रालय से अतिरिक्त स्पेक्ट्रम खाली करवाने के मामले में जीओएम के गठन को मंजूरी दी थी। जीओएम के सामने सिफारिशों पर विचार करने के विषय विस्तृत थे। इसमें दुर्लभ 2जी स्पेक्ट्रम की कीमतों के निर्धारण पर भी चर्चा होनी थी। एक फरवरी 2006 को तत्कालीन दूरसंचार मंत्री दयानिधि मारन ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की। इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा।
मेरी इच्छा के हों टीओआर : 28 फरवरी 2006 को तत्कालीन दूरसंचार मंत्री और द्रमुक नेता दयानिधि मारन ने प्रधानमंत्री को अर्धशासकीय पत्र (डीओ नंबर एल-14047/01/06-एनटीजी) लिखा। मारन ने ‘गोपनीय’ पत्र में लिखा, ‘आपको याद ही होगा कि एक फरवरी 2006 की मुलाकात में हमने रक्षा मंत्रालय द्वारा स्पेक्ट्रम खाली करने के मुद्दे पर गठित जीओएम पर चर्चा की थी। आपने मुझे आश्वस्त किया था कि जीओएम के टीओआर हमारी इच्छानुसार तैयार होंगे। यह जानकर आश्चर्य हुआ कि जीओएम के सामने जो विषय रखे गए हैं, वे बहुत व्यापक हैं। ऐसे मामलों का परीक्षण किया जा रहा है, जो मेरे अनुसार मंत्रालय स्तर पर किए जाने वाले कार्यो में अतिक्रमण है। विचार के इन बिंदुओं में हमारी सिफारिशों के आधार पर बदलाव किया जाए।’मारन ने बनाए जीओएम की कार्यवाही के बिंदु: मारन ने पत्र के साथ जीओएम के लिए कार्यवाही के बिंदुओं का नया प्रस्ताव भी भेजा। पहले जीओएम को छह बिंदुओं पर चर्चा के लिए कहा गया था। इनमें स्पेक्ट्रम का मूल्य निर्धारण शामिल था। मारन ने प्रस्तावित एजेंडे में से उसे हटा दिया। सिर्फ चार विषयों को ही प्रस्तावित कार्यवाही के बिंदुओं में शामिल किया। यह सभी रक्षा मंत्रालय से अतिरिक्त स्पेक्ट्रम खाली कराने से जुड़े थे। प्रधानमंत्री ने जवाबी पत्र में मारन का पत्र मिलने की पुष्टि की।
चार बड़ी वजहें जो उन्हें संदेह के घेरे में लाती हैं
१ - कार्यवाही के बिंदु कैसे बदले
कार्यवाही के बिंदुओं (टर्म्स ऑफ रिफरेंस) की जानकारी केवल तीन किरदारों के पास थी। खुद टेलीकॉम मंत्री दयानिधि मारन, दूसरे प्रणब की अध्यक्षता वाले मंत्रियों का समूह और तीसरे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह। या तो दयानिधि मारन ने बिंदु बदले (लेकिन यह इनके अधिकार क्षेत्र से बाहर था। यह उनके लिए असंभव था।) या मंत्रियों का समूह ने ऐसा किया (अपनी ही कार्यवाही के बिंदु वे बदलकर हलके क्यों करेंगे।) फिर मारन प्रधानमंत्री से मिले। इसके बाद ही कार्यवाही के बिंदु बदल गए।
२ - नोटिफिकेशन पर आपत्ति क्यों नहीं उठाई गई
चूंकि केबिनेट सचिवालय न तो संचार मंत्री को रिपोर्ट करता है और न मंत्रियों के समूह को। वह सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता है।
प्रधानमंत्री की सहमति के बाद ही केबिनेट सचिवालय से नोटिफिकेशन जारी हो सकता है।
३ - मंत्रियों का समूह चुप क्यों रहा
आठ प्रभावशाली मंत्रियों वाले इस समूह ने कार्यवाही के बिंदु बदले जाने पर आपत्ति क्यों नहीं उठाई? तीन ही बातें हो सकती हैं
1. या तो बिंदु बदलने से उनका कुछ लेना देना नहीं था
2. या उन्हें जानकारी नहीं थी। ये दोनों बातें असंभव है।
3. या यह प्रधानमंत्री का आदेश था, जिसकी वे अवहेलना नहीं कर सकते थे।
4 - वित्तमंत्री को क्यों किया नजरअंदाज
सरकारी कामकाज के नियम-1961 के मुताबिक ऐसे किसी भी फैसले को लेने से पहले जिसमें पैसों का मामला हो, वित्तमंत्रालय से सलाह मशविरा जरूरी है। लेकिन इस मामले में तत्कालीन वित्तमंत्री की पूरी तरह अनदेखी की गई। यह तभी संभव था
जब प्रधानमंत्री ने खुद आदेश दिए हों। मारन के इस पत्र से स्पष्ट हुआ कि मंत्री समूह के कार्यवाही के बिंदु बदलने में प्रधानमंत्री की सहमति थी।
राजा भी यही कहते थे
राजा ने 25 जुलाई 2011 को सीबीआई की विशेष अदालत में दलील दी थी कि मैंने जो भी किया उसके पीछे मनमोहन और चिदंबरम की मंजूरी थी।
जनलोकपाल होता तो ये सब जेल में होते
देश में आज जन लोकपाल कानून होता तो चिदंबरम और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले बाकी नेता भी जेल में होते। चिदंबरम ने मुझे जेल भेजा था। देखिए, आज वे खुद जेल जाने की कगार पर हैं। -अन्ना

तय हुई नई परिभाषाः जेब में 32 रु. हैं तो अब आप गरीब नहीं-----

तय हुई नई परिभाषाः जेब में 32 रु. हैं तो अब आप गरीब नहीं-----
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योजना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि खानपान पर शहरों में 965 रुपए और गावों में 781 रुपए प्रति महीना खर्च करने वाले शख्स को गरीब नहीं माना जा सकता है। गरीबी रेखा की नई परिभाषा तय करते हुए योजना आयोग ने कहा कि इस तरह शहर में 32 रुपए और गांव में हर रोज 26 रुपए खर्च करने वला शख्स बीपीएल परिवारों को मिलने वाली सुविधा को पाने का हकदार नहीं है। अपनी यह रिपोर्ट योजना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को हलफनामे के तौर पर दी है। इस रिपोर्ट पर खुद प्रधानमंत्री ने हस्ताक्षर किए हैं। इस हास्यास्पद परिभाषा पर हो-हल्ला मचना शुरू हो चुका है।
योजना आयोग की मानें तो हेल्थ सर्विसेस पर 39.70 रुपए/महीना खर्च करके आप स्वस्थ रह सकते हैं। शिक्षा पर 99 पैसे प्रतिदिन खर्च करते हैं तो आपको शिक्षा के संबंध में कतई गरीब नहीं माना जा सकता है। यदि आप 61.30 रुपए महीनेवार, 9.6 रुपए चप्पल और 28.80 रुपए बाकी पर्सनल सामान पर खर्च कर सकते हैं तो आप आयोग की नजर में बिल्कुल भी गरीब नहीं कहे जा सकते। आयोग ने यह डाटा बनाते समय 2010-11 के इंडस्टियल वर्कर्स के कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स और तेंडुलकर कमेटी की 2004-05 की कीमतों के आधार पर खर्च का हिसाब-किताब दिखाने वाली रिपोर्ट पर गौर किया है। हालांकि, रिपोर्ट में अंत में कहा गया है कि गरीबी रेखा पर अंतिम रिपोर्ट एनएसएसओ सर्वेक्षण 2011-12 के बाद पेश की जाएगी।
                                                
सरकार के अनुसार गरीब नहीं होने की डाइट
खाद्य पदार्थ - लागत ----- बाजार भाव --------- मात्रा
अनाज ------- 5.5 रु -- 15 रु. किलो (आटा)- 266 ग्राम
दाल -------- 1.02 रु -- 58 रु किलो (तुअर) - 18 ग्राम
दूध -------- 2.33 रुपए - 30 रु/लीटर ----- 78 मिली
तेल ------- 1.55 रुपए -- 70 रु/लीटर ---- 22.14 मिली
सब्जी ------ 1.95 रुपए - 30 रु किलो ----- 65 ग्राम
फल ------ 44 पैसे ----- 30 रु दर्जन (केला) - एक केला भी नहीं
शकर ------ 70 पैसे ----- 30 रुपए किलो -- 23 ग्राम
ईंधन ------ 3.75 रुपए -- 452 रुपए/सिलेंडर -- 4 महीने/सिलेंडर
(सरकार के अनुसार हर महीने पढाई-लिखाई के लिए 99 पैसे, कपड़े-लत्ते के लिए 61.30 रुपए, जूते-चप्पल के लिए 9.60 रुपए, साज-सिंगार के लिए 28.80 रुपए काफी हैं।)
और विशेषज्ञ के अनुसार एक स्वस्थ व्यक्ति की डाइट
खाद्य पदार्थ - मात्रा ---- बाजार भाव ------- लागत
अनाज ----- 200 ग्राम -- 15 रु. किलो (आटा) - 3.00 रुपए
दाल ------ 40 ग्राम --- 58 रु किलो (तुअर) -- 2.30 रुपए
दूध ------ 300 मिली -- 30 रु/लीटर ------- 9 रुपए
तेल ------ 20 मिली -- 70 रु/लीटर ------- 1.40 रुपए
सब्जी ---- 300 ग्राम -- 30 रु किलो -------- 9 रुपए
फल ----- 400 ग्राम -- 30 रु दर्जन (केला) -- दो केले
शकर ---- 7-100 ग्राम - 30 रुपए किलो ----- 30 पैसे
ईंधन ---- ---- ---- 452 रुपए/सिलेंडर --------

गरीब की नई परिभाषा---

गरीब की नई परिभाषा---
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गरीबी: सभ्य समाज के इस सबसे बड़े अभिशाप को राष्ट्रपिता गांधी जी ने हिंसा का सबसे खराब रूप कहा। करेला उस पर नीम चढ़ा कि स्थिति यह कि गरीबों को 'गरीब' न मानना। हमारे हुक्मरानों ने गरीबों की नई परिभाषा गढ़ी है। अगर आप शहर में रहकर 32 रुपये और गांव में रहकर 26 रुपये प्रतिदिन से अधिक खर्च कर रहे हैं तो आप गरीब नहीं है। खुद को गरीब मानते रहिए। कोई सुनने वाला नहीं है। गरीबों के कल्याण के लिए चलाई जाने वाली सरकारी योजनाओं के लाभ के दायरे से बाहर हो चुके हैं आप।
गुजारा: इस मसले पर चौतरफा दबाव झेल रही अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह की सरकार भले ही गरीबी निर्धारण की सीमारेखा में अब सुधार की बात कह रही हो, लेकिन गरीबों के प्रति उसकी संवेदनहीनता उजागर हो चुकी है। 'सरकार का हाथ गरीबों के साथ' की कलई खुल चुकी है।
कुछ विश्लेषक सरकार के इस कदम को गरीबों की संख्या कम दिखाकर उनके कल्याण के लिए चलाई जा रही योजनाओं पर खर्च में कटौती करना बता रहे हैं। सरकार की मंशा कुछ भी हो, लेकिन आसमान छूती महंगाई के इस दौर में 965 रुपये और 781 रुपये मासिक खर्च में अपना गुजर-बसर शायद ही कोई गरीब कर पाए। सरकार द्वारा 'गरीब' को गरीब न मानना बड़ा मुद्दा है।
आयोग की साख का सवाल------ योजना आयोग द्वारा दी गई गरीबी की नई परिभाषा न केवल गैरजिम्मेदाराना सोच का उदाहरण है बल्कि योजना भवन में जनकल्याण के लिए बैठे लोगों की अफसरशाही और टेक्नोक्रेटिक दिमाग का भी यह परिचायक है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली यह संस्था गरीबी और भुखमरी से पीड़ित लोगों की बढ़ती संख्या के बावजूद आंकड़ों में उनकी संख्या कम दिखाने पर आमादा है। दरअसल योजना आयोग जनता से कटा हुआ एक ऐसा कार्यालय बन चुका है जहां रिटायर नौकरशाह और विशेषज्ञों का जमावड़ा है। महलनवीस की समाजवादी वैश्विक दृष्टि के बजाय योजना आयोग वैश्विक मध्यवर्ग संस्कृति को प्रतिबिंबित कर रहा है। योजना और विकास की इस कारपोरेट विश्व दृष्टि में गरीब वास्तव में जीवन की बुनियादी चीजों से 'असहाय' और 'वंचित' हो गया है। योजना आयोग ने अपने हलफनामे में शर्मनाक तरीके से यह तर्क भी पेश किया कि यदि सही तरीके से गरीबों की पहचान कर विशेष कल्याणकारी योजनाएं उन तक पहुंचाई जा सके तो वह गुजारा कर सकते हैं। योजना आयोग के रणनीतिकार यह समझने में नाकामयाब रहे हैं कि गरीबी का आशय कम आय नहीं हैं, बल्कि 'कई चीजों को न कर पाने की बाध्यता' है। सतही तौर पर भी यदि देखा जाए तो करोड़ों गरीब लोगों की पहचान करना कोई मुश्किल काम नहीं है। इन गरीबों के बारे में महात्मा गांधी का कहना था कि 'उनकी आंखों में कोई रोशनी नहीं हैं। इनका एकमात्र देवता रोटी है।' इसके उलट योजना आयोग के अधिकारी और विशेषज्ञ गरीबों की पहचान के लिए नई किस्म की परिभाषा गढ़ रहे हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि योजना आयोग ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती भुखमरी, घटती कृषि आय, कृषि क्षेत्र में घटता निवेश और गांवों से शहरों की ओर पलायन से शायद चिंतित न होता हो। इससे भी बदतर यह कि जो आदिवासी, दलित और अल्पसंख्यक इसके विरोध में आवाज उठाते हैं, उनको 'विद्रोही' और 'राष्ट्रविरोधी' घोषित कर दिया जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो गरीब भौतिक वंचना का शिकार होने के साथ-साथ शासन के 'सैद्धांतिक पूर्वाग्रह' का भी शिकार हैं। तभी तो गरीबों की संख्या का आकलन करने के लिए बनाई गई कमेटियों के अलग-अलग नतीजे हैं। मसलन योजना आयोग के अनुसार 27 प्रतिशत, एनसी सक्सेना कमेटी के अनुसार 50 प्रतिशत, तेंदुलकर कमेटी के अनुसार 37 प्रतिशत और अर्जुन सेन गुप्ता कमेटी के अनुसार 77 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं। 1990 के दशक से शुरू उदार अर्थनीति के सकारात्मक नतीजे और नेशनल सैंपल सर्वे की नई पद्धति को आधार बनाकर योजना आयोग देश में गरीबी घटने की बात कहता है। इसलिए गरीबों की स्थिति सुधरने के संबंध में इसका सुप्रीम कोर्ट में पेश हलफनामा जानबूझकर किया गया प्रयास लगता है। योजना आयोग की जनता के प्रति कोई प्रतिबद्धता नहीं हैं और न ही संसद में इसकी कार्यप्रणाली की समीक्षा की जाती है। 1952 में इसकी स्थापना के बाद से ही यह ऐसा संविधानेत्तर निकाय बना हुआ है, जिसके विशेषज्ञों ने लोकतांत्रिक राजनीति के बुनियादी सिद्धांतों से जानबूझकर खुद को अलग कर रखा है। यह दरअसल औपनिवेशिक युग के बाद विकास योजनाओं के नेहरू-महलनवीस मॉडल की असफलता का परिणाम है।
राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की बढ़ती विश्वसनीयता और वैधता ने योजना आयोग के अस्तित्व पर सवाल खड़े किए हैं। आरटीआइ, मनरेगा की सफलता और एनएसी द्वारा प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा बिल स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि योजना आयोग ने न सिर्फ 'भारत के विचार' को धोखा दिया है बल्कि यह तेजी से अप्रासंगिक भी होता जा रहा है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो योजना आयोग के अंत का वास्तविक समय आ गया है। मुझे दृढ़ विश्वास है कि गरीब इसकी विदाई की शिकायत नहीं करेगा।
रहिमन आह गरीब की कभी न खाली जाए-----------
जब से मनमोहन सरकार के गरीबी को परिभाषित करने वाले आंकड़े सामने आए हैं, तब से कम से कम हमें यह महसूस होने लगा है कि इस सरकार का हाल फिलहाल 'विनाशकाले विपरीत बुद्धि' वाला हो गया है। बिना अनावश्यक विस्तार के यह बात साफ की जा सकती है कि हाल में कोई भी फैसला हमारे शासकों ने ऐसा नहीं लिया जिसे जनहितकारी कहा जा सकता हो। सत्ता मद में बौराए और जनता से कटे हुए मोटे बिलौटे नेता इस तरह बयान देते हैं जैसे भारत नामक बपौती पर अनंत काल तक राज करने वाले हैं। आज आटे-दाल का भाव आसमान छू रहा है। छटांक-दो छटांक दाल उबाल पानी जैसी पतली परोस पूरा परिवार जैसे-तैसे दो रोटी हलक के नीचे उतार रहा है। इसी भोजन की कीमत उसे 30 रुपये प्रति व्यक्ति से कहीं अधिक चुकानी पड़ रही है, तो कैसे कोई इस बात को स्वीकार कर सकता है कि 32 रुपये प्रतिदिन से अधिक खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं समझा जा सकता। घोर अचरज की बात तो यह है कि यह सरकार न केवल दरिद्रतम भारतीय को सिर्फ अमानवीय जानवरों जैसा जीवन जीने लायक समझती है बल्कि तथाकथित निम्न मध्यवर्ग और मध्यवर्ग के उन पढ़े-लिखे असंतुष्ट नागरिकों को भी बज्र मूर्ख समझती है जो महंगाई के लिए शासकों के भ्रष्टाचार को जिम्मेदार समझते हैं।
इस बात को रेखांकित करना जरूरी है कि प्रतिदिन प्रति व्यक्ति शहर के लिए 32 रुपये और गांव के लिए 26 रुपये वाला आंकड़ा सिर्फ खाद्यान्न के लिए नहीं है। ईंधन, यात्रा व्यय, मकान किराया तथा तन ढकने को जरूरी न्यूनतम कपड़े आदि का खर्च भी इसमें शामिल है। शहरों में झुग्गी का जो किराया दिहाड़ी मजदूर भी अदा करते हैं, वह हजार रुपये तक पहुंच चुका है। यह रकम प्रति परिवार तीस रूपये प्रतिदिन के ऊपर है। यदि इसे चार व्यक्तियों के परिवार में बांटा जाए तब भी प्रति व्यक्ति हिस्सा साढ़े सात रुपये से ज्यादा बैठता है। अब यह बात दीगर है कि हमारी सरकार शायद यह सोचती है कि गरीब आदमी को सपरिवार जिंदगी फुटपाथ पर ही बितानी चाहिए।
इन आंकड़ों को लेकर किसी भी बहस को शुरू करना अपने उन जख्मों को कुरेदना है जिन पर योजना आयोग ने तबियत से नींबू-नमक छिड़का है। गांधी जी का प्रिय भजन तो सभी ने सुना होगा। 'वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीर पराई जाणी रे!' जो लोग आज सरकार में मंत्री है या योजना आयोग में बैठे हैं, वह वास्तव में धर्मनिरपेक्ष हैं। ये वैष्णव शब्द को देशद्रोही गाली समझने वाले लगते हैं। जिन खाए-पिए लोगों के पैरों में कभी बिवाई पड़ी ही न हो वह दूसरे का दुख-दर्द समझ भी कैसे सकते हैं। गरीबी का नया पैमाना यही झलकाता है कि उदीयमान भारत में नारायण मूर्ति की जगह हो सकती है दरिद्र नारायण की नहीं। उसके प्रति कर्तव्य पालन की जवाबदेही से बचने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि गरीबों को गिनने का ऐसा तरीका ईजाद कर लिया जाए कि कोई गरीब ही न बचे! हम बड़ी विनम्रता से अपने हुक्मरानों को याद दिलाना चाहेंगे कि एक और देसी दोहा है जिससे अनजान रहना उनके लिए निकट भविष्य में ही बेहद खतरनाक साबित हो सकता है- 'रहिमन आह गरीब की कभी न खाली जाए'!
महंगाई की मार
खाद्य वस्तु औसत मूल्य औसत मूल्य
जून 2010 सितंबर 2011
चना दाल/किग्रा 34 37 9'
दूध/लीटर 23 29 26'
सरसों तेल/लीटर 66 81 23'
चाय/किग्रा 149 152 2'
प्याज/किग्रा 11 22 100'
योजना आयोग द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामे के अनुसार शहरी क्षेत्र में प्रतिदिन 32 रुपये से अधिक और ग्रामीण इलाके में रोजाना 26 रुपये से अधिक खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है। वह न केवल स्वस्थ है बल्कि खुशहाल भी है। आइए, जानते हैं कि रोजाना की इस तय खर्च राशि में से क्या-क्या खरीदा जा सकता है-
32 रुपये रोजाना खर्च
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49.10 रुपये- मकान किराया* [व्यावहारिक नहीं]
29.60 रुपये- शिक्षा* [2 कापी और 2 पेन]
112 रुपये- कुकिंग गैस व अन्य ईधन* [1.6 किग्रा एलपीजी]
5.50 रुपये- अनाज [200 ग्राम चावल या 300 ग्राम आटा]
1.02 रुपये- दाल [10 ग्राम]
2.33 रुपये- दूध [80 ग्राम]
1.55 रुपये- खाद्य तेल [20 ग्राम]
0.44 रुपये- फल [सबे 5.5 ग्राम]
1.95 रुपये- सब्जियां [90 ग्राम]
0.70 रुपये- चीनी [20 ग्राम]
8.88 रुपये- अन्य [कपड़े, बेल्ट, महिला सौंदर्य समान, पर्स आदि]
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* मासिक
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सरकार ग्रामीण क्षेत्र में किसी व्यक्ति द्वारा अपने जीवनयापन पर 26 रुपये से अधिक खर्च करने वाले को गरीब मानती है। कानपुर के रामा डेंटल कॉलेज के प्रधानाचार्य डा एनपी श्रोत्रिय के अनुसार अगर उक्त पैसे को केवल एक दिन के भोजन के मद में खर्च किया जाए, तो भी आदमी संतुलित खुराक नहीं ग्रहण कर सकता-
एक दिन की संतुलित खुराक कुल लागत 27.47 रुपये
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2.80 रुपये- तेल व वसा [40 ग्राम]
1.40 रुपये- चीनी [50 ग्राम]
3.99 रुपये- गेहूं [285 ग्राम]
7.13 रुपये- चावल [285 ग्राम]
1.25 रुपये- दाल [50 ग्राम]
1.00 रुपये- पत्तेदार सब्जियां [50 ग्राम]
2.00 रुपये- अन्य सब्जियां [100 ग्राम]
0.90 रुपये- कंद एवं मूल [60 ग्राम]
7.00 रुपये- दूध [200 ग्राम]