भारतीय ह्रदय की सबसे जीवंत स्मृतियों में से हैं. आज उनका बलिदान दिवस है. उनकी शहादत के बाद भारत की लगभग सभी भाषाओँ में उन पर लिखा गया, वह जन-ज्वार का प्रकटीकरण था. यहाँ 'माधुरी' के पन्नों से भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की तस्वीर दी जा रही है. ये तस्वीरें माधुरी के अप्रैल अंक में प्रकाशित हुई थीं. २५ मार्च को गणेश शंकर विद्यार्थी ने भी अपने प्राणों की आहुति दे दी थी, उस पृष्ठ पर उनकी भी तस्वीर थी. विद्यार्थी जी की तस्वीर के साथ यह शीर्षक था 'भारत के एक अमूल्य रत्न'. भगत सिंह और उनके साथियों के साथ शीर्षक था 'स्वतंत्रता के तीन दीवाने'. तस्वीरों के नीचे यह नोट भी जुड़ा था " यदि ये तीनों त्यागी वीर अहिंसा के पुजारी होते तो भारत को बहुत लाभ पहुंचा सकते. क्योंकि अहिंसा और शांति ही हमारा उद्धार कर सकती है. " पत्रिका के संपादक रामसेवक त्रिपाठी थे. पवित्र जन रुचि उनके शब्दों से पूरी तरह शायद ही सहमत थी.
भगत सिंह के पत्रों में गहरी, कोमल और हरी संवेदना मिलती है. यहाँ उनके दो पत्र प्रस्तुत हैं, पढ़िए और उस चिर युवा की संजीदगी से जुड़िये.
कुलतार सिंह के नाम अंतिम पत्र.
सेंट्रल जेल, लाहौर.
३ मार्च १९३१
अजीज कुलतार,
आज तुम्हारी आँखों में आंसू देखकर बहुत दुःख हुआ. आह तुम्हारी बातों में बहुत दर्द था, तुम्हारे आंसू मुझसे सहन नहीं होते.
बरखुरदार, हिम्मत से शिक्षा प्राप्त करना और सेहत का ख्याल रखना. हौसला रखना और क्या कहूँ !
उसे यह फिक्र है हरदम नया तर्ज़े-ज़फा क्या है,
हमें यह शौक़ है देखें सितम की इन्तहा क्या है.
दहर से क्यों खफा रहें, चर्ख का क्यों गिला करें,
सारा जहाँ अदू सही, आओ मुकाबला करें.
कोई दम का मेहमान हूँ ऐ अहले-महफ़िल
चरागे-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ.
हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली,
ये मुश्ते-खाक है फानी, रहे रहे न रहे.
अच्छा रुखसत. खुश रहो अहले-वतन, हम तो सफ़र करते हैं. हिम्मत से रहना.
नमस्ते.
तुम्हारा भाई भगत सिंह
कुलबीर के नाम पत्र.
लाहौर सेंट्रल जेल,
३ मार्च १९३१
प्रिय कुलबीर सिंह,
तुमने मेरे लिए बहुत कुछ किया. मुलाक़ात के वक़्त ख़त के जवाब में कुछ लिख देने के लिए कहा.कुछ अल्फाज़ लिख दूँ, बस-देखो, मैंने किसी के लिए कुछ न किया, तुम्हारे लिए भी कुछ नहीं. आजकल बिलकुल मुसीबत में छोड़कर जा रहा हूँ. तुम्हारी जिन्दगी का क्या होगा ? गुज़ारा कैसे करोगे ? यही सब सोचकर कांप जाता हूँ, मगर भाई हौसला रखना, मुसीबत में भी कभी मत घबराना. इसके सिवा और क्या कह सकता हूँ. अमेरिका जा सकते तो बहुत अच्छा होता, मगर अब तो यह भी नामुमकिन मालूम होता है. आहिस्ता-आहिस्ता मेहनत से पढ़ते जाना. अगर कोई सिख सको तो बेहतर होगा, मगर सब कुछ पिताजी की सलाह से करना. जहाँ तक हो सके, मुहब्बत से सब लोग गुज़ारा करना. इसके सिवाए क्या कहूँ ?
जानता हूँ कि आज तुम्हारे दिल के अन्दर गम का सुमद्र ठाठें मार रहा है. भाई तुम्हारी बात सोचकर मेरी आँखों में आंसू आ रहे हैं, मगर क्या किया जाये, हौसला करना, मेरे अजीज, मेरे बहुत-बहुत प्यारे भाई, जिन्दगी बड़ी सख्त है और दुनिया बड़ी बे-मुरव्वत. सब लोग बड़े बेरहम हैं. सिर्फ मुहब्बत और हौसले से ही गुज़ारा हो सकेगा. कुलतार की तालीम की फिक्र भी तुम ही करना. बड़ी शर्म आती है और अफ़सोस के सिवाए मैं कर ही क्या सकता हूँ. साथ वाला ख़त हिंदी में लिखा हुआ है. ख़त 'के' की बहन को दे देना. अच्छा नमस्कार, अजीज भाई अलविदा....रुखसत.
तुम्हारा खैर-अंदेश
भगत सिंह
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