जिस काम को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नहीं कर सका, जिसे करने की आस लिए विश्व हिंदू परिषद बू़ढी होने लगी है और भाजपा भावी प्रधानमंत्री का नाम घोषित करने के बाद भी इस सपने की ओर एक क़दम नहीं बढ़ पाई, उस काम को अब एक बाबा पूरा करना चाहता है. इस बाबा ने इंग्लैंड में एक पूरा आइलैंड ख़रीद लिया है, इसने अमेरिका के ह्यूस्टन में लगभग तीन सौ एकड़ ज़मीन ख़रीद ली है. आज इस साधु के पास एक मोटे अंदाज़े के अनुसार, साठ से सत्तर हज़ार करोड़ का साम्राज्य है. पिछले दस सालों में इस साधु बाबा की सफलता की ऐसी अप्रतिम कहानी निर्मित हुई है, जिसका कोई जोड़ भूतकाल में नहीं मिलता. आज यह बाबा देश की सभी 542 संसदीय सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़ा करने की योजना बना कर उस पर अमल कर रहा है. भाजपा और कांग्रेस इसकी रणनीति से परेशानी महसूस कर रही हैं. चुनाव लड़ने के लिए राजनैतिक दलों या ईमानदार राजनेताओं को भले पैसे की कमी हो, लेकिन बाबा के पास पैसे की कोई कमी नहीं है. चुनाव जीतने के लिए अधिकतम जितने धन की ज़रूरत होगी, उसके इंतज़ाम का नक्शा बाबा के दिमाग़ में तैयार है. आइए, आपको विस्तार से बाबा रामदेव के बारे में बताते हैं.
बाबा रामदेव भारत की राजनीति बदल देना चाहते हैं. वह सभी संसदीय सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं. पिछले बीस सालों में यह काम भाजपा भी नहीं कर पाई. उसके पास सभी संसदीय सीटों पर लड़ने वाले उम्मीदवार ही नहीं उपलब्ध हो पाए. बाबा रामदेव की पतंजलि योग पीठ में एक भी मंदिर नहीं है और न ही वह आज हिंदू धर्म को अपना ध्वज वाहक बना रहे हैं. उनका कहना है कि वह इंसानियत को मज़हब मानते हैं.
अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव हर चार साल में होता है और वहां की प्रचार एजेंसियां और रणनीति बनाने वाली एजेंसियां एक चुनाव ख़त्म होते ही अगले चार साल बाद होने वाले चुनाव की तैयारियों में जुट जाती हैं. अब तक भारत में ऐसा नहीं हुआ, पर लगता है कि दिमाग़ रखने वाले कई समूहों ने मिलकर बाबा रामदेव की रणनीति बनाई है तथा 2014 में होने वाले आम चुनावों में उन्हें प्रधानमंत्री बनाने की आख़िरी बाज़ी चल दी है. ये समूह हो सकता है देसी हों, लेकिन हो सकता है विदेशी भी हों. लंदन के पास का आइलैंड और ह्यूस्टन की ज़मीन कुछ तो इशारे कर ही रही है.
बाबा ने देश में योग सिखाने की शुरुआत की. बाबा से पहले योग देश में कम, विदेश में योगा के नाम से ज़्यादा जाना जाता था. हमारे यहां से योग जानने वाले विदेशों में बड़े धनवान स्वामी बन गए, वहां संपत्तियां भी ख़रीद लीं. बाबा ने देश में योगा को योग के रूप में पुन:स्थापित किया तथा योग को लेकर एक नई चेतना पैदा की. नरसिंहराव की उदारीकरण की नीति के बाद देश में पैसे का तीव्र आगमन हुआ, जिसने मध्यम वर्ग व उच्च वर्ग की जीवनशैली पर ख़ासा असर डाला. शरीर बेडौल हुआ, बीमारियां बढ़ीं. मधुमेह और हृदय रोग ने तो सर्दी-जुकाम की जगह ले ली. बाबा के योग की मार्केटिंग ने लोगों को आकर्षित किया.
इन्हीं दिनों टेलीविज़न आया, सहारा ग्रुप के मालिक सुब्रत राय ने संभवतः सबसे पहले बाबा को अपने टेलीविज़न पर उतारा. बड़े मैदान में योग के सार्वजनिक प्रदर्शन को टेलीविज़न के ज़रिए दिखाया. इसमें सबसे बड़ा योगदान बाबा के पेट खींचने की यौगिक मुद्रा ने किया. पेट निकलने के कॉम्प्लेक्स के शिकार लोगों ने इसे एक स्वर्णिम अवसर के रूप में लिया. पैसे वालों में यह बीमारी आम है, ख़ासकर उनकी पत्नियों को लगा कि बाबा का योग उन्हें छरहरा और आकर्षक बना देगा. उनका सोचना ग़लत नहीं था. लगातार योग करने से यह संभव हो सकता था. कई लोगों को इसका फायदा भी हुआ. सुब्रत राय के सबसे विश्वस्त साथी ओ पी श्रीवास्तव और उनकी पत्नी को भी इसका लाभ मिला. उनकी पत्नी ने बाबा रामदेव को अपना भाई बना लिया. सुब्रत राय का साम्राज्य ओ पी श्रीवास्तव ही चलाते हैं. बाबा रामदेव के देशव्यापी भ्रमण और उनके व्यक्तित्व को विराट बनाने की योजना कार्यरूप में परिणित होने लगी.
बाबा रामदेव की यौगिक क्रियाओं की सीडी तैयार की गई और उन्हें लगभग हर टेलीविज़न चैनल पर सुबह और शाम चलवाया जाने लगा. देश की जनता हतप्रभ थी तथा उसने बाबा रामदेव के बारे में जानना और पूछना शुरू कर दिया. बाबा के बड़े मैदानों में योग शिविर की सीडी और वीडियो कैसेट बनाकर बेचे जाने लगे. जिन बीमारियों से पैसे वाले पीड़ित हैं, उन्हीं से राजनेता भी पीड़ित हैं. मंत्रियों, सांसदों, मुख्यमंत्रियों ने भी बाबा से संपर्क करना शुरू कर दिया. और, यहीं से बाबा रामदेव सत्ता प्रतिष्ठान के ड्राइंगरूम, किचन रूम और बेडरूम में घुस गए.
बाबा ने योग सिखाने का मूलमंत्र बनाया. आप ख़ैरियत से हैं तो सारा देश ख़ैरियत से है. बाबा ने हिंदुस्तान के हर हिस्से में घूमने का कार्यक्रम बनाया तथा लोगों से संपर्क का प्रमुख ज़रिया योग को बनाया. बाबा विदेशों में भी गए, क्योंकि उनकी योजना बनाने वालों को मालूम था कि बिना विदेश में पैठ बनाए हिंदुस्तान में सर्वशक्तिशाली नहीं बना जा सकता, क्योंकि दुनिया ग्लोबल हो गई है. इसी क्रम में बाबा रामदेव ने योग के लिए पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट बनाया तथा भारत स्वाभिमान के नाम से आंदोलन का सूत्रपात किया.
बाबा रामदेव हरिद्वार में गुरु शंकर देव के शिष्य थे तथा साइकिल पर चलते थे. उन्हें साइकिल पर चलते देखने वालों की बड़ी संख्या है. अब गुरु शंकर देव का कुछ पता नहीं है कि वह कहां हैं. न देखे जाने से पहले वह बहुत दुखी थे, ऐसा हरिद्वार में बहुत से लोगों का कहना है. कहां हैं गुरुशंकर देव, इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है और बाबा रामदेव तो इस पर बिल्कुल ख़ामोश हैं. गुरुकी पूजा भगवान से पहले की जाती है, गुरु-गोविंद दोउ खड़े, काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपने, जिन्ह गोविंद दियो बताय. पर बाबा रामदेव ने कभी अपने गुरुका नाम कहीं, किसी भी परिस्थिति में नहीं लिया.
बाबा रामदेव के सबसे विश्वस्त साथी बालकिशन महाराज हैं. बाबा जिन्हें भी लाते हैं या जिन्हें खींचते या आकर्षित करते हैं, उन्हें कंसोलिडेट करने का काम बालकिशन महाराज करते हैं. बाबा के पीछे रहने वाले बालकिशन महाराज ने बाबा के आयुर्वेद का साम्राज्य खड़ा किया है. पहले आयुर्वेद को भारत में ग्लैमर मेडिसिन के रूप में नहीं देखा जाता था. जड़ी-बूटियों को इज़्ज़त दिलाने में, ग्लैमरस बनाने में बालकिशन महाराज का बड़ा योगदान है. आज बाबा रामदेव को एक ब्रांड बनाने में सबसे बड़ा योगदान बालकिशन महाराज का है. आज बाबा सब कुछ बेचना चाहते हैं. आटा, आंवला, फलों का रस, दवाएं, यहां तक कि अब वह पानी भी बेचने जा रहे हैं. और, सबके पीछे हैं बाबा के परम विश्वस्त बालकिशन महाराज.
अब तक बाबा रामदेव को भाजपा के लोग हिंदुत्व का अलमबरदार मान रहे थे और कांग्रेस उन्हें आरएसएस का ख़ु़फिया एजेंट मान रही थी. मुसलमानों के एक हिस्से को उनमें धर्मनिरपेक्षता दिखाई दे रही थी. सबसे पहले बाबा के मुस्लिम नेताओं से रिश्तों के बारे में जानें. बाबा ने एक मर्म समझ लिया कि यदि हिंदुस्तान में सियासी तौर पर कुछ करना है तो बिना मुसलमानों के संभव नहीं है, क्योंकि उनकी आबादी अट्ठारह प्रतिशत के आसपास है. इस तथ्य को जानते हुए भी भाजपा इस ओर क़दम आज तक नहीं उठा पाई. बाबा ने सबसे पहले मुस्लिम उलेमाओं से संपर्क साधा. काफी परखने के बाद उन्होंने धर्मगुरु कल्बे रुशैद रिज़वी से संपर्क किया.
महीनों की बातचीत के बाद बाबा ने उन्हें अपने कार्यक्रमों में आने का न्यौता दिया. मौलाना कल्बे रुशैद रिज़वी के भाषणों से प्रभावित हो, बाबा उन्हें अपने पास बैठाने लगे और उनके द्वारा मुस्लिम समाज से संपर्क साधना शुरू किया. बाबा की इस कोशिश का नतीजा जल्दी ही सामने आ गया, जब जमैतुल उलेमा ए हिंद के मौलाना महमूद मदनी ने एक बड़े जलसे में उन्हें देवबंद आने की दावत दी.
देवबंद मुसलमानों में काफी इ़ज़्ज़त की नज़र से देखा जाता है, बल्कि यहां से जारी की गई सलाहें फतवे का असर रखती हैं. बाबा रामदेव देवबंद गए और उन्होंने लाखों मुसलमानों की भीड़ को संबोधित किया. संबोधन उन्होंने कुरान शरीफ की आयत से शुरू किया. इस बीच देवबंद से कहा जा चुका था कि वंदे मातरम गाना ग़ैर इस्लामी है. बाबा ने वहां जमा लाखों की भीड़ के साथ प्रमुख मौलानाओं से कहा कि जब मैं कुरान की आयत पढ़कर मुसलमान नहीं बन सकता, तब आप वंदे मातरम पढ़कर हिंदू कैसे बन सकते हैं? उन्होंने वहां उपस्थित उलेमाओं से योग करने के लिए कहा, क्योंकि सभी के पेट निकल गए हैं. मुस्लिम समाज को बाबा रामदेव में ऐसा साधु नज़र आया, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या विश्व हिंदू परिषद से बिल्कुल अलग क़िस्म का साधु है. मौलाना मदनी ने बाबा की देश को बनाने की कोशिश में साथ देने का वायदा किया. बाबा का बड़ा मक़सद पूरा हो गया और उन्हें मुस्लिम समाज एक अलग नज़र से देखने लगा.
विश्व हिंदू परिषद या भाजपा से अलग बाबा रामदेव ने धर्म की जगह संस्कृति का सहारा लिया. बाबा को पता है कि गुजरात में नवरात्रि में मुसलमान डांडिया खेलते हैं और सत्ताइसवां रोज़ा शबे कदर का हिंदू औरतें रखती हैं. बाबा इस बात को कहते भी हैं और समझाते भी हैं. इसलिए उनकी स्वीकार्यता हिंदू धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं से बहुत ज़्यादा है. एक मुस्लिम धर्मगुरु ने कहा कि पता नहीं चोली के पीछे क्या है, पर दिखने में चोली अच्छी दिखाई देती है.
मौलाबा कल्बे रुशैद रिज़वी का ज़िक्र एक बार फिर करना चाहेंगे. बाबा के साथ सभाओं के अलावा बाबा उन्हें अपने टीवी चैनल पर भी लाते हैं. हरिद्वार में पतंजलि दो के उद्घाटन के अवसर पर उन्होंने मौलाना से कहा, आपसे दिल मिलता है, बाक़ी से आंखें मिलती हैं. उन्होंने इस अवसर पर आयोजित सभा में कहा कि वह अट्ठारह करोड़ मुसलमानों में से हीरा चुनकर लाए हैं. मज़हब वालों का तो मकान रहता है, पर सेक्युलरिज़्म का पूरा मुल्क रहता है. कहना चाहिए कि बाबा ने अपने साथ मुसलमानों, सिखों, जैनियों और ईसाइयों के ऐसे धर्मगुरुओं को लिया है, जिनकी गुणवत्ता और छाप अच्छी है. बाबा ने 2009 से 2010 अप्रैल तक हर राज्य से लोगों को हरिद्वार में बुलाया तथा पतंजलि योगपीठ में बड़े-बड़े शिविर लगाए. अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वालों जैसे डॉक्टर, बुद्धिजीवी, चार्टर्ड एकाउंटेंट, शिक्षक, सीनियर प्रोफेसर तथा उनके अनुसार देश से प्यार करने वाले ईमानदार लोगों के आठ-आठ दिनों के शिविर लगाए गए. इन शिविरों के अंत में सभी को सेहत की ह़िफाज़त, योग की तालीम तथा देश में शरी़फों को जीने का हक़ दिलाने के लिए लड़ने का संकल्प दिलाया जाता है.
बाबा ने अपना आख़िरी विदेशी दौरा अभी-अभी समाप्त किया है. वह नेपाल गए थे और वहां उन्होंने माओवादी नेता प्रचंड से राजनैतिक बात की और उन्हें भी अपने अभियान में शामिल करने के लिए तैयार कर लिया. अब बाबा विदेश नहीं जाएंगे, बल्कि देश के हर हिस्से में घूमेंगे. अप्रैल के बाद यानी इसी महीने के बाद बाबा एक देशव्यापी आंदोलन की योजना बना रहे हैं. उन्होंने भारत स्वाभिमान ट्रस्ट बनाया है और उसकी राजनैतिक शाखा भारत स्वाभिमान जवान बनाई है. यह भारत स्वाभिमान जवान ही इस वर्ष राजनैतिक दल के रूप में बदल जाएगी, जो लोकसभा का चुनाव लड़ेगी. बिना जाति को आधार बनाए राष्ट्र के बारे में सोचने वाले जीतें, ऐसा बाबा का कहना है. बाबा ने एक और बात कही है कि हिंदू मुसलमान को जिताएं और मुसलमान हिंदू को. बाबा की योजना है कि 2014 तक भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के सदस्यों की संख्या पचास करोड़ हो जाए.
बाबा रामदेव चुनावी घोषणापत्र का पूर्वाभ्यास अभी से कर रहे हैं, जिसे वह अग्निपत्र कहते हैं. अग्निपत्र कहता है कि सत्ता आने पर स्वदेशी चिकित्सा व्यवस्था 2. स्वदेशी शिक्षा व्यवस्था 3. स्वदेशी अर्थव्यवस्था 4. स्वदेशी क़ानून व कर व्यवस्था 5. भारतीय संस्कृति की रक्षा 6. भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, ग़रीबी, महंगाई व भूख मुक्त वैभवशाली भारत का निर्माण 7. ग्रामीण स्वावलंबन 8. पर्यावरण की रक्षा 9. नियंत्रित जनसंख्या लक्ष्य हासिल किए जाएंगे. बाबा ने अपने लोगों से कहा है कि वे देश की व्यवस्था चलाने वालों से सवाल पूछें. इसके लिए उन्होंने एक प्रश्नावली भी तैयार कर अपने समर्थकों को दी है.
बाबा ने नौ सवाल पूछने के लिए कहा है और स्वयं नौ सूत्री घोषणापत्र बनाने की योजना बना ली है. उन्होंने देशभक्त पत्रकारों, लेखकों एवं बुद्धिजीवियों का भी आह्वान किया है कि वे आएं और उनके साथ जुड़ें. बाबा ने स्विस बैंकों से कालाधन वापस लाने की मुहिम पिछले लोकसभा चुनाव में चलाई थी. यही मांग भाजपा के मनोनीत प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने भी उठाई थी. 14 अप्रैल 2009 को बाबा से एक पत्रकार ने पूछा कि आप स्विस बैंक का मुद्दा, बीजेपी का मुद्दा उठा रहे हैं तो क्या आप भारतीय जनता पार्टी के एजेंट हैं? बाबा रामदेव ने जवाब दिया था कि मैं भारतीय जनता का एजेंट हूं, पार्टी का नहीं.
-------------बाबा रामदेव भारत की राजनीति बदल देना चाहते हैं. वह सभी संसदीय सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं. पिछले बीस सालों में यह काम भाजपा भी नहीं कर पाई. उसके पास सभी संसदीय सीटों पर लड़ने वाले उम्मीदवार ही नहीं उपलब्ध हो पाए. बाबा रामदेव की पतंजलि योग पीठ में एक भी मंदिर नहीं है और न ही वह आज हिंदू धर्म को अपना ध्वज वाहक बना रहे हैं. उनका कहना है कि वह इंसानियत को मज़हब मानते हैं.-----------
ओशो रजनीश के पास धर्म और धन का बड़ा साम्राज्य था, उन्होंने अपने को भगवान कहलवाना प्रारंभ कर दिया था. महर्षि महेश योगी का हेडक्वार्टर हालैंड में था तथा लगभग साठ देशों में उनके विश्वविद्यालय थे. भारत में उनके शिष्यों में रामनाथ गोयनका से लेकर मंत्रियों की बड़ी फौज़ थी, पर यह सपना तो वे भी नहीं देख पाए. बाबा रामदेव 2014 में लोकसभा का चुनाव पूरी तैयारी के साथ लड़ना चाहते हैं. वह दो हज़ार ग्यारह में छह लाख लोगों से व्यक्तिगत रूप से मिलना चाहते हैं. देश भर में फैले इन छह लाख लोगों की चयन समिति संसदीय चुनावों के लिए उम्मीदवार चुनेगी, जिनकी घोषणा भी 2011 के अंतिम दिनों में कर दी जाएगी. भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के पचास करोड़ सदस्य बनाने का लक्ष्य भी बाबा दो हज़ार ग्यारह में ही पूरा कर लेना चाहते हैं.
बाबा के पास नाम है, बाबा के पास धन है, बाबा के पास चेहरा है, बाबा के पास अधूरे ही सही, पर कुछ मुद्दे हैं, लेकिन बाबा को दु:ख है कि उन्हें लोग गंभीरता से नहीं लेते और अभी तक उन्हें योग गुरु ही मानते हैं. इसलिए बाबा ने अब अपना टेलीविज़न चैनल ख़रीद लिया है तथा कई और ख़रीदना चाहते हैं. वह एक न्यूज़ चैनल भी शुरू करने जा रहे हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि उनकी पूरी बात कोई टीवी चैनल नहीं दिखाएगा. टीवी चैनलों की रुचि उनकी राजनीति में नहीं, उनके पेट सिकोड़ने वाली कपालभाती की मुद्रा को दिखा कर अपने दर्शक बढ़ाने में है. जिस सहारा टेलीविज़न ने उन्हें सबसे पहले दिखाया था, उसी के चीफ को वह अपने न्यूज़ प्रोजेक्ट का चीफ बनाकर ले गए हैं. दूरदर्शन के लिए काम करने वाले वीरेंद्र मिश्र उनके लिए अब पूरे तौर पर कार्यक्रम बना रहे हैं. ये लोग पत्रकारों की बड़ी संख्या को अपनी ओर खींचने की योजना पर काम कर रहे हैं.
भाजपा के बड़े नेता अशोक साहू का कहना है कि बाबा आते हैं, जाते हैं, पब्लिक नोट देती है, वोट नहीं देती. लेकिन भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने बाबा को ख़त लिखा है कि यदि वह चुनाव में खड़े होंगे तो वोट बंटेगा. उधर कांग्रेस भी परेशान है और उसने अपने सभी मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को निर्देश दिया है कि वे बाबा से दूर रहें. स़िर्फ उसने संपर्क सूत्र के रूप में सुबोधकांत सहाय को बाबा से मिलने और भाजपा से दूर रखने की ज़िम्मेदारी सौंपी है.
भारत के पुराने और नए पूंजीपतियों के घरों में बाबा घुस गए हैं और बाबा को विश्वास है कि सभी उनके साथ खड़े होंगे. सुब्रत राय, रजत शर्मा, गुलाब कोठारी और सुभाष चंद्र गोयल बाबा के साथ खुले रूप में हैं. बाबा ने साधुओं की बड़ी संस्था अखाड़ा परिषद को भी अपने साथ कर लिया है.
पर बाबा ने एक घोषणा और की है कि वह न ख़ुद चुनाव लड़ेंगे और न प्रधानमंत्री बनेंगे. बाबा इस बुनियादी मर्म को जानते हैं कि अगर आप ख़ुद पद से दूर भागेंगे तो लोग आपको उस पद पर बैठा देंगे. आज बाबा रामदेव ने इस लड़ाई का मोर्चा ख़ुद संभाल लिया है. उन्हें लगता था कि रजत शर्मा, सुभाष गोयल और गुलाब कोठारी जैसे मीडिया के महारथी उनके लिए राजनीति में आने का माहौल बना देंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अब बाबा रामदेव चारों तऱफ चुनाव लड़ने की, अपने मुद्दों को उजागर करने की घोषणा स्वयं करने लगे हैं. भारतीय उद्योग जगत के बड़े पैसे वालों की बीवियां और उनकी बहनें बाबा के साथ अक्सर कार्यक्रमों में देखी जाती हैं, जिससे अंदाज़ा होता है कि यह वर्ग इस बार एक नया दांव खेलना चाहता है.
बाबा रामदेव को पहले भाजपा अपना सहयोगी मानती थी. उसे लगता था कि वह हिंदू जो उसकी कट्टरता की वज़ह से या विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल से चिढ़कर उसका साथ नहीं देगा, वह बाबा रामदेव के साथ जाएगा और चुनाव के बाद दोनों मिल जाएंगे, लेकिन अब भाजपा बाबा रामदेव से डरने लगी है. दूसरी ओर मुलायम सिंह यादव, लालू यादव और राम विलास पासवान बाबा रामदेव के क़दम को अपने लिए शुभ मानते हैं. यहां एक सवाल सभी को कांटे की तरह चुभ रहा है कि क्या बाबा रामदेव संघ का नया पत्ता तो नहीं हैं? बाबा के क़रीबी संबंध संघ के कई नेताओं से हैं. दूसरा सवाल कि क्या बाबा की राजनैतिक योजनाओं की रणनीति कहीं अमेरिकी कंपनियां तो नहीं बना रही हैं, जिन्हें इस काम में महारत हासिल है?
कुछ भी हो, कैसे भी सवाल हों, पर सत्तर हज़ार करोड़ की प्रत्यक्ष हैसियत से ज़्यादा ताक़त रखने वाला भारत का योग गुरु देश के स्वास्थ्य को सुधारने के लिए एक बड़ा दांव खेलने जा रहा है. ऐसा ही दांव पिछले लोकसभा चुनाव के समय आंध्र में वहां के सुपरस्टार चिरंजीवी ने खेला था. उनकी सभाओं में अप्रतिम भीड़ होती थी. लगता था, आंध्र की राजनीति में चिरंजीवी का एकछत्र राज होगा, पर ऐसा हुआ नहीं. सिनेमा प्रेमी जनता ने उनका उत्साह बढ़ाया, लेकिन वोट देकर सरकार नहीं बनवाई. बाबा रामदेव और चिरंजीवी में बहुत अंतर है. बाबा अपना क़दम फूंक-फूंक कर रख रहे हैं. राजनैतिक दलों के प्रति आम जनता में उपजी निराशा उनके लिए बहुत बड़ी आशा है. अपनी बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए बाबा के योग को आशा की किरण मानने वाले भारत के लोग बाबा का संसद के लिए कितना समर्थन करेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा.
.........................भारत का राजनीतिक इतिहास कमल मोरारका............................
इंदिरा गांधी सन् सतहत्तर में चुनाव हार गई थीं. चंद्रशेखर जी आपातकाल में उन्नीस महीने की जेल काटकर आए थे. जेल जाने से पहले वह कांग्रेस की सर्वोच्च संस्था, कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य थे. देश में मोरारजी देसाई की सरकार बन चुकी थी. चंद्रशेखर जी इंदिरा जी से मिलने गए. उन्होंने इंदिरा जी से कहा कि मुझे बताइए, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं. इंदिरा जी परेशान थीं. बोलीं, मैं रहने के लिए महरौली में घर तलाश रही हूं. मेरे पास तो कोई घर भी नहीं है. चंद्रशेखर जी ने उनसे कहा कि आप परेशान मत होइए, आपके लिए घर का इंतज़ाम हो जाएगा.
-----------------कमल मोरारका 39 वर्ष तक चंद्रशेखर जी के विश्वस्त रहे. यह पूरा इंटरव्यू आप www.chauthiduniya.tv पर देख सकते हैं. इतिहास की ऐसी ही कई घटनाओं का पहली बार खुलासा हो रहा है और आगे भी होता रहेगा-------
वहां से उठकर चंद्रशेखर जी मोरारजी देसाई के पास गए. उन्होंने इंदिरा जी के घर के बारे में कहा तो मोरारजी ने तत्काल मना कर दिया. चंद्रशेखर जी ने उन्हें पहले तो समझाया, फिर कहा कि मैं वायदा कर आया हूं. अब आपको घर देना है, चाहे जैसे दें. मोरारजी भाई ने सोच कर कहा कि मार्केट रेट पर दे सकते हैं. चंद्रशेखर जी ने कहा, वैसे ही दे दें. इस तरह इंदिरा गांधी के लिए घर का इंतज़ाम हुआ.
इतिहास का पहिया घूमा. इंदिरा जी की हत्या के बाद चुनाव हुए, जिसमें राजीव गांधी अपार बहुमत से जीते. चंद्रशेखर जी चुनाव हार गए. उनके लिए भी घर का सवाल खड़ा हो गया. अब्दुल गफूर शहरी विकास मंत्री बने. सेंट्रल हाल में चंद्रशेखर जी ने उनसे कहा कि गफूर मियां, मुझे जब नोटिस भेजना, तब बता देना. मैं घर का इंतज़ाम कर रहा हूं. गफूर साहब ने उनसे कहा कि चंद्रशेखर जी, मुझे राजीव गांधी ने कहा है कि चंद्रशेखर जी को औपचारिक नोटिस भी नहीं जाना चाहिए. उन्हें वही घर मिलना चाहिए. शायद राजीव गांधी को इंदिरा जी के घर वाली घटना याद रही होगी या इंदिरा जी ने उन्हें बताया होगा.
अब्दुल गफूर ने चंद्रशेखर जी को वही घर जनता पार्टी अध्यक्ष के नाते एलॉट कर दिया, जो किसी श्रेणी में आता ही नहीं था. पांच साल वह रहे, बाद में वह पुनः चुन कर लोकसभा में आ गए.
चंद्रशेखर जी प्रधानमंत्री थे, तब भारत की आर्थिक हालत ख़राब थी. यह पिछले दस सालों की ग़लत आर्थिक नीति का परिणाम था. उन्हें फैसला लेना पड़ा कि सोना गिरवी रख पैसा लिया जाए. देश में माहौल बना दिया गया कि सारा सोना लंदन में गिरवी रख दिया गया. जबकि हक़ीक़त थी कि वही सोना गया था, जो स्मगलरों से ज़ब्त किया गया था. भारत का अपना सोना रिज़र्व बैंक के पास ही रखा था.
कश्मीर को लेकर चंद्रशेखर जी ने नवाज़ शरीफ से काफी गंभीर बात की, जिससे प्रभावित होकर नवाज़ शरीफ ने हॉटलाइन लगवा कर उनसे लगातार बातचीत की.
आमतौर पर धारणा है कि चंद्रशेखर जी की सरकार इसलिए गिरी, क्योंकि उनके घर के सामने हरियाणा पुलिस के दो सिपाही खड़े थे, जिन पर जासूसी का शक़ था. दरअसल सरकार इसलिए गिरी, क्योंकि चंद्रशेखर जी दो दिनों बाद बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद का सर्वसम्मत हल घोषित करने वाले थे. शरद पवार ने इसकी जानकारी राजीव गांधी को दे दी, जिस पर राजीव गांधी के सलाहकारों ने उनसे कहा कि सबसे बड़ी समस्या तो यही है. अगर इसे चंद्रशेखर जी ने हल कर दिया तो आपके लिए कुछ बचेगा ही नहीं. राजीव गांधी ने चंद्रशेखर जी से कहा कि आप दो दिनों तक कुछ न बोलें. और, इन्हीं दोनों दिनों में चंद्रशेखर जी की सरकार से कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया. सरकार शरद पवार और राजीव गांधी की बातचीत के बाद गिरी.
बाबा रामदेव भारत की राजनीति बदल देना चाहते हैं. वह सभी संसदीय सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं. पिछले बीस सालों में यह काम भाजपा भी नहीं कर पाई. उसके पास सभी संसदीय सीटों पर लड़ने वाले उम्मीदवार ही नहीं उपलब्ध हो पाए. बाबा रामदेव की पतंजलि योग पीठ में एक भी मंदिर नहीं है और न ही वह आज हिंदू धर्म को अपना ध्वज वाहक बना रहे हैं. उनका कहना है कि वह इंसानियत को मज़हब मानते हैं.
अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव हर चार साल में होता है और वहां की प्रचार एजेंसियां और रणनीति बनाने वाली एजेंसियां एक चुनाव ख़त्म होते ही अगले चार साल बाद होने वाले चुनाव की तैयारियों में जुट जाती हैं. अब तक भारत में ऐसा नहीं हुआ, पर लगता है कि दिमाग़ रखने वाले कई समूहों ने मिलकर बाबा रामदेव की रणनीति बनाई है तथा 2014 में होने वाले आम चुनावों में उन्हें प्रधानमंत्री बनाने की आख़िरी बाज़ी चल दी है. ये समूह हो सकता है देसी हों, लेकिन हो सकता है विदेशी भी हों. लंदन के पास का आइलैंड और ह्यूस्टन की ज़मीन कुछ तो इशारे कर ही रही है.
बाबा ने देश में योग सिखाने की शुरुआत की. बाबा से पहले योग देश में कम, विदेश में योगा के नाम से ज़्यादा जाना जाता था. हमारे यहां से योग जानने वाले विदेशों में बड़े धनवान स्वामी बन गए, वहां संपत्तियां भी ख़रीद लीं. बाबा ने देश में योगा को योग के रूप में पुन:स्थापित किया तथा योग को लेकर एक नई चेतना पैदा की. नरसिंहराव की उदारीकरण की नीति के बाद देश में पैसे का तीव्र आगमन हुआ, जिसने मध्यम वर्ग व उच्च वर्ग की जीवनशैली पर ख़ासा असर डाला. शरीर बेडौल हुआ, बीमारियां बढ़ीं. मधुमेह और हृदय रोग ने तो सर्दी-जुकाम की जगह ले ली. बाबा के योग की मार्केटिंग ने लोगों को आकर्षित किया.
इन्हीं दिनों टेलीविज़न आया, सहारा ग्रुप के मालिक सुब्रत राय ने संभवतः सबसे पहले बाबा को अपने टेलीविज़न पर उतारा. बड़े मैदान में योग के सार्वजनिक प्रदर्शन को टेलीविज़न के ज़रिए दिखाया. इसमें सबसे बड़ा योगदान बाबा के पेट खींचने की यौगिक मुद्रा ने किया. पेट निकलने के कॉम्प्लेक्स के शिकार लोगों ने इसे एक स्वर्णिम अवसर के रूप में लिया. पैसे वालों में यह बीमारी आम है, ख़ासकर उनकी पत्नियों को लगा कि बाबा का योग उन्हें छरहरा और आकर्षक बना देगा. उनका सोचना ग़लत नहीं था. लगातार योग करने से यह संभव हो सकता था. कई लोगों को इसका फायदा भी हुआ. सुब्रत राय के सबसे विश्वस्त साथी ओ पी श्रीवास्तव और उनकी पत्नी को भी इसका लाभ मिला. उनकी पत्नी ने बाबा रामदेव को अपना भाई बना लिया. सुब्रत राय का साम्राज्य ओ पी श्रीवास्तव ही चलाते हैं. बाबा रामदेव के देशव्यापी भ्रमण और उनके व्यक्तित्व को विराट बनाने की योजना कार्यरूप में परिणित होने लगी.
बाबा रामदेव की यौगिक क्रियाओं की सीडी तैयार की गई और उन्हें लगभग हर टेलीविज़न चैनल पर सुबह और शाम चलवाया जाने लगा. देश की जनता हतप्रभ थी तथा उसने बाबा रामदेव के बारे में जानना और पूछना शुरू कर दिया. बाबा के बड़े मैदानों में योग शिविर की सीडी और वीडियो कैसेट बनाकर बेचे जाने लगे. जिन बीमारियों से पैसे वाले पीड़ित हैं, उन्हीं से राजनेता भी पीड़ित हैं. मंत्रियों, सांसदों, मुख्यमंत्रियों ने भी बाबा से संपर्क करना शुरू कर दिया. और, यहीं से बाबा रामदेव सत्ता प्रतिष्ठान के ड्राइंगरूम, किचन रूम और बेडरूम में घुस गए.
बाबा ने योग सिखाने का मूलमंत्र बनाया. आप ख़ैरियत से हैं तो सारा देश ख़ैरियत से है. बाबा ने हिंदुस्तान के हर हिस्से में घूमने का कार्यक्रम बनाया तथा लोगों से संपर्क का प्रमुख ज़रिया योग को बनाया. बाबा विदेशों में भी गए, क्योंकि उनकी योजना बनाने वालों को मालूम था कि बिना विदेश में पैठ बनाए हिंदुस्तान में सर्वशक्तिशाली नहीं बना जा सकता, क्योंकि दुनिया ग्लोबल हो गई है. इसी क्रम में बाबा रामदेव ने योग के लिए पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट बनाया तथा भारत स्वाभिमान के नाम से आंदोलन का सूत्रपात किया.
बाबा रामदेव हरिद्वार में गुरु शंकर देव के शिष्य थे तथा साइकिल पर चलते थे. उन्हें साइकिल पर चलते देखने वालों की बड़ी संख्या है. अब गुरु शंकर देव का कुछ पता नहीं है कि वह कहां हैं. न देखे जाने से पहले वह बहुत दुखी थे, ऐसा हरिद्वार में बहुत से लोगों का कहना है. कहां हैं गुरुशंकर देव, इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है और बाबा रामदेव तो इस पर बिल्कुल ख़ामोश हैं. गुरुकी पूजा भगवान से पहले की जाती है, गुरु-गोविंद दोउ खड़े, काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपने, जिन्ह गोविंद दियो बताय. पर बाबा रामदेव ने कभी अपने गुरुका नाम कहीं, किसी भी परिस्थिति में नहीं लिया.
बाबा रामदेव के सबसे विश्वस्त साथी बालकिशन महाराज हैं. बाबा जिन्हें भी लाते हैं या जिन्हें खींचते या आकर्षित करते हैं, उन्हें कंसोलिडेट करने का काम बालकिशन महाराज करते हैं. बाबा के पीछे रहने वाले बालकिशन महाराज ने बाबा के आयुर्वेद का साम्राज्य खड़ा किया है. पहले आयुर्वेद को भारत में ग्लैमर मेडिसिन के रूप में नहीं देखा जाता था. जड़ी-बूटियों को इज़्ज़त दिलाने में, ग्लैमरस बनाने में बालकिशन महाराज का बड़ा योगदान है. आज बाबा रामदेव को एक ब्रांड बनाने में सबसे बड़ा योगदान बालकिशन महाराज का है. आज बाबा सब कुछ बेचना चाहते हैं. आटा, आंवला, फलों का रस, दवाएं, यहां तक कि अब वह पानी भी बेचने जा रहे हैं. और, सबके पीछे हैं बाबा के परम विश्वस्त बालकिशन महाराज.
अब तक बाबा रामदेव को भाजपा के लोग हिंदुत्व का अलमबरदार मान रहे थे और कांग्रेस उन्हें आरएसएस का ख़ु़फिया एजेंट मान रही थी. मुसलमानों के एक हिस्से को उनमें धर्मनिरपेक्षता दिखाई दे रही थी. सबसे पहले बाबा के मुस्लिम नेताओं से रिश्तों के बारे में जानें. बाबा ने एक मर्म समझ लिया कि यदि हिंदुस्तान में सियासी तौर पर कुछ करना है तो बिना मुसलमानों के संभव नहीं है, क्योंकि उनकी आबादी अट्ठारह प्रतिशत के आसपास है. इस तथ्य को जानते हुए भी भाजपा इस ओर क़दम आज तक नहीं उठा पाई. बाबा ने सबसे पहले मुस्लिम उलेमाओं से संपर्क साधा. काफी परखने के बाद उन्होंने धर्मगुरु कल्बे रुशैद रिज़वी से संपर्क किया.
महीनों की बातचीत के बाद बाबा ने उन्हें अपने कार्यक्रमों में आने का न्यौता दिया. मौलाना कल्बे रुशैद रिज़वी के भाषणों से प्रभावित हो, बाबा उन्हें अपने पास बैठाने लगे और उनके द्वारा मुस्लिम समाज से संपर्क साधना शुरू किया. बाबा की इस कोशिश का नतीजा जल्दी ही सामने आ गया, जब जमैतुल उलेमा ए हिंद के मौलाना महमूद मदनी ने एक बड़े जलसे में उन्हें देवबंद आने की दावत दी.
देवबंद मुसलमानों में काफी इ़ज़्ज़त की नज़र से देखा जाता है, बल्कि यहां से जारी की गई सलाहें फतवे का असर रखती हैं. बाबा रामदेव देवबंद गए और उन्होंने लाखों मुसलमानों की भीड़ को संबोधित किया. संबोधन उन्होंने कुरान शरीफ की आयत से शुरू किया. इस बीच देवबंद से कहा जा चुका था कि वंदे मातरम गाना ग़ैर इस्लामी है. बाबा ने वहां जमा लाखों की भीड़ के साथ प्रमुख मौलानाओं से कहा कि जब मैं कुरान की आयत पढ़कर मुसलमान नहीं बन सकता, तब आप वंदे मातरम पढ़कर हिंदू कैसे बन सकते हैं? उन्होंने वहां उपस्थित उलेमाओं से योग करने के लिए कहा, क्योंकि सभी के पेट निकल गए हैं. मुस्लिम समाज को बाबा रामदेव में ऐसा साधु नज़र आया, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या विश्व हिंदू परिषद से बिल्कुल अलग क़िस्म का साधु है. मौलाना मदनी ने बाबा की देश को बनाने की कोशिश में साथ देने का वायदा किया. बाबा का बड़ा मक़सद पूरा हो गया और उन्हें मुस्लिम समाज एक अलग नज़र से देखने लगा.
विश्व हिंदू परिषद या भाजपा से अलग बाबा रामदेव ने धर्म की जगह संस्कृति का सहारा लिया. बाबा को पता है कि गुजरात में नवरात्रि में मुसलमान डांडिया खेलते हैं और सत्ताइसवां रोज़ा शबे कदर का हिंदू औरतें रखती हैं. बाबा इस बात को कहते भी हैं और समझाते भी हैं. इसलिए उनकी स्वीकार्यता हिंदू धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं से बहुत ज़्यादा है. एक मुस्लिम धर्मगुरु ने कहा कि पता नहीं चोली के पीछे क्या है, पर दिखने में चोली अच्छी दिखाई देती है.
मौलाबा कल्बे रुशैद रिज़वी का ज़िक्र एक बार फिर करना चाहेंगे. बाबा के साथ सभाओं के अलावा बाबा उन्हें अपने टीवी चैनल पर भी लाते हैं. हरिद्वार में पतंजलि दो के उद्घाटन के अवसर पर उन्होंने मौलाना से कहा, आपसे दिल मिलता है, बाक़ी से आंखें मिलती हैं. उन्होंने इस अवसर पर आयोजित सभा में कहा कि वह अट्ठारह करोड़ मुसलमानों में से हीरा चुनकर लाए हैं. मज़हब वालों का तो मकान रहता है, पर सेक्युलरिज़्म का पूरा मुल्क रहता है. कहना चाहिए कि बाबा ने अपने साथ मुसलमानों, सिखों, जैनियों और ईसाइयों के ऐसे धर्मगुरुओं को लिया है, जिनकी गुणवत्ता और छाप अच्छी है. बाबा ने 2009 से 2010 अप्रैल तक हर राज्य से लोगों को हरिद्वार में बुलाया तथा पतंजलि योगपीठ में बड़े-बड़े शिविर लगाए. अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वालों जैसे डॉक्टर, बुद्धिजीवी, चार्टर्ड एकाउंटेंट, शिक्षक, सीनियर प्रोफेसर तथा उनके अनुसार देश से प्यार करने वाले ईमानदार लोगों के आठ-आठ दिनों के शिविर लगाए गए. इन शिविरों के अंत में सभी को सेहत की ह़िफाज़त, योग की तालीम तथा देश में शरी़फों को जीने का हक़ दिलाने के लिए लड़ने का संकल्प दिलाया जाता है.
बाबा ने अपना आख़िरी विदेशी दौरा अभी-अभी समाप्त किया है. वह नेपाल गए थे और वहां उन्होंने माओवादी नेता प्रचंड से राजनैतिक बात की और उन्हें भी अपने अभियान में शामिल करने के लिए तैयार कर लिया. अब बाबा विदेश नहीं जाएंगे, बल्कि देश के हर हिस्से में घूमेंगे. अप्रैल के बाद यानी इसी महीने के बाद बाबा एक देशव्यापी आंदोलन की योजना बना रहे हैं. उन्होंने भारत स्वाभिमान ट्रस्ट बनाया है और उसकी राजनैतिक शाखा भारत स्वाभिमान जवान बनाई है. यह भारत स्वाभिमान जवान ही इस वर्ष राजनैतिक दल के रूप में बदल जाएगी, जो लोकसभा का चुनाव लड़ेगी. बिना जाति को आधार बनाए राष्ट्र के बारे में सोचने वाले जीतें, ऐसा बाबा का कहना है. बाबा ने एक और बात कही है कि हिंदू मुसलमान को जिताएं और मुसलमान हिंदू को. बाबा की योजना है कि 2014 तक भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के सदस्यों की संख्या पचास करोड़ हो जाए.
बाबा रामदेव चुनावी घोषणापत्र का पूर्वाभ्यास अभी से कर रहे हैं, जिसे वह अग्निपत्र कहते हैं. अग्निपत्र कहता है कि सत्ता आने पर स्वदेशी चिकित्सा व्यवस्था 2. स्वदेशी शिक्षा व्यवस्था 3. स्वदेशी अर्थव्यवस्था 4. स्वदेशी क़ानून व कर व्यवस्था 5. भारतीय संस्कृति की रक्षा 6. भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, ग़रीबी, महंगाई व भूख मुक्त वैभवशाली भारत का निर्माण 7. ग्रामीण स्वावलंबन 8. पर्यावरण की रक्षा 9. नियंत्रित जनसंख्या लक्ष्य हासिल किए जाएंगे. बाबा ने अपने लोगों से कहा है कि वे देश की व्यवस्था चलाने वालों से सवाल पूछें. इसके लिए उन्होंने एक प्रश्नावली भी तैयार कर अपने समर्थकों को दी है.
बाबा ने नौ सवाल पूछने के लिए कहा है और स्वयं नौ सूत्री घोषणापत्र बनाने की योजना बना ली है. उन्होंने देशभक्त पत्रकारों, लेखकों एवं बुद्धिजीवियों का भी आह्वान किया है कि वे आएं और उनके साथ जुड़ें. बाबा ने स्विस बैंकों से कालाधन वापस लाने की मुहिम पिछले लोकसभा चुनाव में चलाई थी. यही मांग भाजपा के मनोनीत प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने भी उठाई थी. 14 अप्रैल 2009 को बाबा से एक पत्रकार ने पूछा कि आप स्विस बैंक का मुद्दा, बीजेपी का मुद्दा उठा रहे हैं तो क्या आप भारतीय जनता पार्टी के एजेंट हैं? बाबा रामदेव ने जवाब दिया था कि मैं भारतीय जनता का एजेंट हूं, पार्टी का नहीं.
-------------बाबा रामदेव भारत की राजनीति बदल देना चाहते हैं. वह सभी संसदीय सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं. पिछले बीस सालों में यह काम भाजपा भी नहीं कर पाई. उसके पास सभी संसदीय सीटों पर लड़ने वाले उम्मीदवार ही नहीं उपलब्ध हो पाए. बाबा रामदेव की पतंजलि योग पीठ में एक भी मंदिर नहीं है और न ही वह आज हिंदू धर्म को अपना ध्वज वाहक बना रहे हैं. उनका कहना है कि वह इंसानियत को मज़हब मानते हैं.-----------
ओशो रजनीश के पास धर्म और धन का बड़ा साम्राज्य था, उन्होंने अपने को भगवान कहलवाना प्रारंभ कर दिया था. महर्षि महेश योगी का हेडक्वार्टर हालैंड में था तथा लगभग साठ देशों में उनके विश्वविद्यालय थे. भारत में उनके शिष्यों में रामनाथ गोयनका से लेकर मंत्रियों की बड़ी फौज़ थी, पर यह सपना तो वे भी नहीं देख पाए. बाबा रामदेव 2014 में लोकसभा का चुनाव पूरी तैयारी के साथ लड़ना चाहते हैं. वह दो हज़ार ग्यारह में छह लाख लोगों से व्यक्तिगत रूप से मिलना चाहते हैं. देश भर में फैले इन छह लाख लोगों की चयन समिति संसदीय चुनावों के लिए उम्मीदवार चुनेगी, जिनकी घोषणा भी 2011 के अंतिम दिनों में कर दी जाएगी. भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के पचास करोड़ सदस्य बनाने का लक्ष्य भी बाबा दो हज़ार ग्यारह में ही पूरा कर लेना चाहते हैं.
बाबा के पास नाम है, बाबा के पास धन है, बाबा के पास चेहरा है, बाबा के पास अधूरे ही सही, पर कुछ मुद्दे हैं, लेकिन बाबा को दु:ख है कि उन्हें लोग गंभीरता से नहीं लेते और अभी तक उन्हें योग गुरु ही मानते हैं. इसलिए बाबा ने अब अपना टेलीविज़न चैनल ख़रीद लिया है तथा कई और ख़रीदना चाहते हैं. वह एक न्यूज़ चैनल भी शुरू करने जा रहे हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि उनकी पूरी बात कोई टीवी चैनल नहीं दिखाएगा. टीवी चैनलों की रुचि उनकी राजनीति में नहीं, उनके पेट सिकोड़ने वाली कपालभाती की मुद्रा को दिखा कर अपने दर्शक बढ़ाने में है. जिस सहारा टेलीविज़न ने उन्हें सबसे पहले दिखाया था, उसी के चीफ को वह अपने न्यूज़ प्रोजेक्ट का चीफ बनाकर ले गए हैं. दूरदर्शन के लिए काम करने वाले वीरेंद्र मिश्र उनके लिए अब पूरे तौर पर कार्यक्रम बना रहे हैं. ये लोग पत्रकारों की बड़ी संख्या को अपनी ओर खींचने की योजना पर काम कर रहे हैं.
भाजपा के बड़े नेता अशोक साहू का कहना है कि बाबा आते हैं, जाते हैं, पब्लिक नोट देती है, वोट नहीं देती. लेकिन भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने बाबा को ख़त लिखा है कि यदि वह चुनाव में खड़े होंगे तो वोट बंटेगा. उधर कांग्रेस भी परेशान है और उसने अपने सभी मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को निर्देश दिया है कि वे बाबा से दूर रहें. स़िर्फ उसने संपर्क सूत्र के रूप में सुबोधकांत सहाय को बाबा से मिलने और भाजपा से दूर रखने की ज़िम्मेदारी सौंपी है.
भारत के पुराने और नए पूंजीपतियों के घरों में बाबा घुस गए हैं और बाबा को विश्वास है कि सभी उनके साथ खड़े होंगे. सुब्रत राय, रजत शर्मा, गुलाब कोठारी और सुभाष चंद्र गोयल बाबा के साथ खुले रूप में हैं. बाबा ने साधुओं की बड़ी संस्था अखाड़ा परिषद को भी अपने साथ कर लिया है.
पर बाबा ने एक घोषणा और की है कि वह न ख़ुद चुनाव लड़ेंगे और न प्रधानमंत्री बनेंगे. बाबा इस बुनियादी मर्म को जानते हैं कि अगर आप ख़ुद पद से दूर भागेंगे तो लोग आपको उस पद पर बैठा देंगे. आज बाबा रामदेव ने इस लड़ाई का मोर्चा ख़ुद संभाल लिया है. उन्हें लगता था कि रजत शर्मा, सुभाष गोयल और गुलाब कोठारी जैसे मीडिया के महारथी उनके लिए राजनीति में आने का माहौल बना देंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अब बाबा रामदेव चारों तऱफ चुनाव लड़ने की, अपने मुद्दों को उजागर करने की घोषणा स्वयं करने लगे हैं. भारतीय उद्योग जगत के बड़े पैसे वालों की बीवियां और उनकी बहनें बाबा के साथ अक्सर कार्यक्रमों में देखी जाती हैं, जिससे अंदाज़ा होता है कि यह वर्ग इस बार एक नया दांव खेलना चाहता है.
बाबा रामदेव को पहले भाजपा अपना सहयोगी मानती थी. उसे लगता था कि वह हिंदू जो उसकी कट्टरता की वज़ह से या विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल से चिढ़कर उसका साथ नहीं देगा, वह बाबा रामदेव के साथ जाएगा और चुनाव के बाद दोनों मिल जाएंगे, लेकिन अब भाजपा बाबा रामदेव से डरने लगी है. दूसरी ओर मुलायम सिंह यादव, लालू यादव और राम विलास पासवान बाबा रामदेव के क़दम को अपने लिए शुभ मानते हैं. यहां एक सवाल सभी को कांटे की तरह चुभ रहा है कि क्या बाबा रामदेव संघ का नया पत्ता तो नहीं हैं? बाबा के क़रीबी संबंध संघ के कई नेताओं से हैं. दूसरा सवाल कि क्या बाबा की राजनैतिक योजनाओं की रणनीति कहीं अमेरिकी कंपनियां तो नहीं बना रही हैं, जिन्हें इस काम में महारत हासिल है?
कुछ भी हो, कैसे भी सवाल हों, पर सत्तर हज़ार करोड़ की प्रत्यक्ष हैसियत से ज़्यादा ताक़त रखने वाला भारत का योग गुरु देश के स्वास्थ्य को सुधारने के लिए एक बड़ा दांव खेलने जा रहा है. ऐसा ही दांव पिछले लोकसभा चुनाव के समय आंध्र में वहां के सुपरस्टार चिरंजीवी ने खेला था. उनकी सभाओं में अप्रतिम भीड़ होती थी. लगता था, आंध्र की राजनीति में चिरंजीवी का एकछत्र राज होगा, पर ऐसा हुआ नहीं. सिनेमा प्रेमी जनता ने उनका उत्साह बढ़ाया, लेकिन वोट देकर सरकार नहीं बनवाई. बाबा रामदेव और चिरंजीवी में बहुत अंतर है. बाबा अपना क़दम फूंक-फूंक कर रख रहे हैं. राजनैतिक दलों के प्रति आम जनता में उपजी निराशा उनके लिए बहुत बड़ी आशा है. अपनी बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए बाबा के योग को आशा की किरण मानने वाले भारत के लोग बाबा का संसद के लिए कितना समर्थन करेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा.
.........................भारत का राजनीतिक इतिहास कमल मोरारका............................
इंदिरा गांधी सन् सतहत्तर में चुनाव हार गई थीं. चंद्रशेखर जी आपातकाल में उन्नीस महीने की जेल काटकर आए थे. जेल जाने से पहले वह कांग्रेस की सर्वोच्च संस्था, कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य थे. देश में मोरारजी देसाई की सरकार बन चुकी थी. चंद्रशेखर जी इंदिरा जी से मिलने गए. उन्होंने इंदिरा जी से कहा कि मुझे बताइए, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं. इंदिरा जी परेशान थीं. बोलीं, मैं रहने के लिए महरौली में घर तलाश रही हूं. मेरे पास तो कोई घर भी नहीं है. चंद्रशेखर जी ने उनसे कहा कि आप परेशान मत होइए, आपके लिए घर का इंतज़ाम हो जाएगा.
-----------------कमल मोरारका 39 वर्ष तक चंद्रशेखर जी के विश्वस्त रहे. यह पूरा इंटरव्यू आप www.chauthiduniya.tv पर देख सकते हैं. इतिहास की ऐसी ही कई घटनाओं का पहली बार खुलासा हो रहा है और आगे भी होता रहेगा-------
वहां से उठकर चंद्रशेखर जी मोरारजी देसाई के पास गए. उन्होंने इंदिरा जी के घर के बारे में कहा तो मोरारजी ने तत्काल मना कर दिया. चंद्रशेखर जी ने उन्हें पहले तो समझाया, फिर कहा कि मैं वायदा कर आया हूं. अब आपको घर देना है, चाहे जैसे दें. मोरारजी भाई ने सोच कर कहा कि मार्केट रेट पर दे सकते हैं. चंद्रशेखर जी ने कहा, वैसे ही दे दें. इस तरह इंदिरा गांधी के लिए घर का इंतज़ाम हुआ.
इतिहास का पहिया घूमा. इंदिरा जी की हत्या के बाद चुनाव हुए, जिसमें राजीव गांधी अपार बहुमत से जीते. चंद्रशेखर जी चुनाव हार गए. उनके लिए भी घर का सवाल खड़ा हो गया. अब्दुल गफूर शहरी विकास मंत्री बने. सेंट्रल हाल में चंद्रशेखर जी ने उनसे कहा कि गफूर मियां, मुझे जब नोटिस भेजना, तब बता देना. मैं घर का इंतज़ाम कर रहा हूं. गफूर साहब ने उनसे कहा कि चंद्रशेखर जी, मुझे राजीव गांधी ने कहा है कि चंद्रशेखर जी को औपचारिक नोटिस भी नहीं जाना चाहिए. उन्हें वही घर मिलना चाहिए. शायद राजीव गांधी को इंदिरा जी के घर वाली घटना याद रही होगी या इंदिरा जी ने उन्हें बताया होगा.
अब्दुल गफूर ने चंद्रशेखर जी को वही घर जनता पार्टी अध्यक्ष के नाते एलॉट कर दिया, जो किसी श्रेणी में आता ही नहीं था. पांच साल वह रहे, बाद में वह पुनः चुन कर लोकसभा में आ गए.
चंद्रशेखर जी प्रधानमंत्री थे, तब भारत की आर्थिक हालत ख़राब थी. यह पिछले दस सालों की ग़लत आर्थिक नीति का परिणाम था. उन्हें फैसला लेना पड़ा कि सोना गिरवी रख पैसा लिया जाए. देश में माहौल बना दिया गया कि सारा सोना लंदन में गिरवी रख दिया गया. जबकि हक़ीक़त थी कि वही सोना गया था, जो स्मगलरों से ज़ब्त किया गया था. भारत का अपना सोना रिज़र्व बैंक के पास ही रखा था.
कश्मीर को लेकर चंद्रशेखर जी ने नवाज़ शरीफ से काफी गंभीर बात की, जिससे प्रभावित होकर नवाज़ शरीफ ने हॉटलाइन लगवा कर उनसे लगातार बातचीत की.
आमतौर पर धारणा है कि चंद्रशेखर जी की सरकार इसलिए गिरी, क्योंकि उनके घर के सामने हरियाणा पुलिस के दो सिपाही खड़े थे, जिन पर जासूसी का शक़ था. दरअसल सरकार इसलिए गिरी, क्योंकि चंद्रशेखर जी दो दिनों बाद बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद का सर्वसम्मत हल घोषित करने वाले थे. शरद पवार ने इसकी जानकारी राजीव गांधी को दे दी, जिस पर राजीव गांधी के सलाहकारों ने उनसे कहा कि सबसे बड़ी समस्या तो यही है. अगर इसे चंद्रशेखर जी ने हल कर दिया तो आपके लिए कुछ बचेगा ही नहीं. राजीव गांधी ने चंद्रशेखर जी से कहा कि आप दो दिनों तक कुछ न बोलें. और, इन्हीं दोनों दिनों में चंद्रशेखर जी की सरकार से कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया. सरकार शरद पवार और राजीव गांधी की बातचीत के बाद गिरी.
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