Wednesday, November 23, 2011

मत बांटिए मन और मुल्क को....................!


राजनीति को सुनिश्चित करना है कि देश में लोगों का मन न बंटे. पहले मन फटता है, तब धरती-भूगोल पर विभाजन होता है.हर कौम, हर धर्म, हर जाति का पढ़ा-लिखा इनसान 21वीं सदी की दहलीज पर ऐसी मांगों के खिलाफ वैचारिक लड़ाई लड़े. इस आधुनिक दुनिया, मजबूत देश-राज्य की अवधारणा के बीच जाति-धर्म के आधार पर राज्य की मांग हतप्रभ करनेवाली है. यह वैसी ही बात है, जैसे आज कोई सती प्रथा की बात करे. मनुष्य की उन्नति के इतिहास में, अतीत की वे सीढ़ियां जो बेड़ी बन गयी थीं, पुन उनका स्मरण, प्रतिगामी सोच है. आधुनिक राष्ट्र-राज्य में हम नया इनसान गढ़ें.
                                                                                           
यह प्रसंग पिछले सप्ताह पढ़ा. देश के सबसे बडे अंगरेजी अखबार में. एक आइएएस स्तंभकार ने छोटे राज्यों के संदर्भ में लिखा था. उसमें यह सूचना थी.‘तामब्रह्म प्रदेशम्’, अलग राज्य की मांग होनेवाली है. यह समान धर्मा-समान विचार वाले तमिलनाडु के अय्यर ब्राह्मणों (खासकर वदमा उपजाति) की मांग है. अय्यर ब्राह्मणों के लिए अलग राज्य की मांग करनेवालों ने आह्वान किया है कि हम एक अगस्त से (सरकार की अनुमति मिले या नहीं?) उपवास शुरू कर रहे हैं. दिल्ली जंतर-मंतर पर. सभी अय्यर ब्राह्मणों से एकजुटता के लिए अपील की गयी है, ताकि दक्षिण के राज्यों में सरकारें अय्यर ब्राह्मणों के साथ जो भेदभाव या पक्षपात करती रही हैं, उनका प्रतिकार हो सके. इस मांग के तहत खाका है कि उत्तरी तमिलनाडु, दक्षिणी आंध्र प्रदेश और पूर्वी कर्नाटक को मिला कर अलग राज्य ‘तामब्रह्म प्रदेशम्’ बने.नहीं पता राष्ट्रीय दल (हर पार्टी) या क्षेत्रीय पार्टियां (हर दल) ऐसी खबरों पर अब कैसे रिएक्ट (प्रतिक्रिया) करती हैं ? आमतौर से वे चुप रहती हैं, क्योंकि सत्ता की राजनीति, साफ बात नहीं करने देती. सत्ता चाहनेवालों को किसी कीमत पर सत्ता चाहिए. वह राजनीति, जो दूर की सोचे, देश की सोचे, फिलहाल नहीं है. बहुसंख्यक, अल्पसंख्यक, जाति, धर्म, समुदाय से वोट बैंक बनते हैं, तो हर हाल में वोट बैंक ही चाहिए, आज के दलों को. चाहे वे क्षेत्रीय हों या राष्ट्रीय. इस दौर में वैसे दूरदर्शी नेता या स्टेट्समैन (जो भविष्य देखें ) भी नहीं, जो अपना राजनीतिक भविष्य, दावं पर लगा कर सच बोलें. जैसे 50 और 60 के दशकों में कश्मीर के सवाल, नगालैंड के सवाल पर जेपी ने मुख्यधारा से अलग स्टैंड लिया. तब पूरे देश में कितनी आलोचना हुई उनकी.

जेपी के बाद की पीढ़ी में कांग्रेस में रहते हुए 74 आंदोलन या बाद में इंदिरा जी की हत्या के समय पंजाब पर जो स्टैंड (मुख्यधारा से हट कर) चंद्रशेखर ने लिया, वैसे नेता हैं कहां ?जाति और धर्म की राजनीति कहां पहुंचाती है ? इसी स्तंभ में लगभग एक माह पूर्व मौलाना आजाद की कही बातें छपी थीं. उन्होंने पाकिस्तान बनने के ठीक पहले एक इंटरव्यू दिया था. वह इंटरव्यू पढ़ कर लगता है कि मौलाना आजाद साफ-साफ भविष्य देख रहे थे. आज पाकिस्तान में जो कुछ हो रहा है, उसका पूरा दृश्य उन्होंने 45-46 में आंक लिया था. तब मुसलमानों के बीच उनका स्टैंड अलोकप्रिय माना गया. पर धर्म की बुनियाद पर बन रहे देश के भविष्य को उन्होंने साफ-साफ बता दिया था. तब भारत से पाकिस्तान गये मुहाजिर मुसलमानों की आज वहां क्या स्थिति है? खासतौर से बिहार, उत्तरप्रदेश से गये मुसलमान आज किस हाल में हैं, वहां? और भी अनेक संकटों से घिरे पाकिस्तान में समाज की क्या स्थिति है ?यही हालात, जाति या समुदाय आधारित राज्य बन जायें, तो वहां होंगे. आज की दुनिया में जाति-धर्म या समुदाय विशेष के लिए राज्य या देश बनें, तो वे चल नहीं सकते. विकास, बिजनेस या आर्थिक भाषा में वे ‘ वायबुल’ (व्यावहारिक नहीं) नहीं होनेवाले. फर्ज कीजिए एक जाति आधारित राज्य या जिला हो जाये, तो अंतत उसका रूप क्या होगा? उस जाति या समुदाय के जो दबंग, अपराधी या वर्चस्व वाले होंगे, उनका राज्य होगा. उसी जाति के अमन-चैन या शांति से रहनेवालों की जिदंगी ऐसी दबंग ताकतों के हाथ गिरवी होगी. फिर उस जाति में भी उपजाति, कुल, गोत्र वगैरह के आधार पर खेमेबंदी होगी. जैसे पाकिस्तान में मूल बाशिंदे, पंजाबी या भारत से गये मुसलमानों के बीच हुआ. किस हद तक बंटेगा इनसान ? ऐसे राज्यों में संस्थाओं, राज्य के आर्थिक संसाधनों, पदों पर वर्चस्ववाले काबिज होंगे, रसूखवाले. पारिवारिक हैसियत से पद मिलेंगे. व्यवस्था में चेक और बैलेंस नहीं होगा. आरंभ में ऐसी भावात्मक अपीलों से लोगों को एक छतरी में ला सकते हैं, पर जब जाति का उन्माद उतरेगा, तो स्थिति साफ होगी. पाकिस्तान में क्या हुआ ? पाकिस्तान बना लेने के बाद, जिन्ना के अंतिम दिनों की बातें पढ़ें. उनके सपने क्या थे? पर हकीकत क्या हुई ? वह कैसा पाकिस्तान चाहते थे, पर पाकिस्तान बना कैसा ? आज जब लोकतंत्र है, तब तो नेता अपने नालायक बेटों को उत्तराधिकारी बनाने से मान नहीं रहे, जब एक ही धर्म, जाति, समुदाय के आधार पर जिला, राज्य या देश बनेंगे, तो क्या होगा? ताकतवर परिवारों की राजशाही लौटेगी. केरल में कांग्रेस ने एक मुसलिम बहुल क्षेत्र को जिला बना दिया, पता कीजिए क्या हालात हैं, वहां के ?अलग झारखंड बना. आज दुमका इलाके के लोगों से बात करिए, वे कहते हैं हमारी उपेक्षा हो रही है, हमें अलग पहचान चाहिए. यही हाल चाईबासा इलाके का है. पलामू के एक सज्जन ने तो केंद्र शासित क्षेत्र बनाने की मांग से एक मसविदा तैयार किया था. झारखंड के सबसे पुराने बाशिंदे होने का दावा करनेवाले (बिरजिया, पहाड़िया, असुर, बिरहोर आदि) अलग राज्य बनने से भी असंतुष्ट हैं. उनका तर्क है कि अधिक संख्यावाले समुदाय हावी हैं. हमें न्याय नहीं मिल रहा. तेलंगाना, विदर्भ , पूर्वाचल, मिथिलांचल, गोरखालैंड समेत न जाने कितने राज्यों की मांग उठ रही है. सत्ताधारी दल अपनी कुरसी-गद्दी बचाते हुए सब समझौते कर रहे हैं. ऐसे नाजुक सवालों पर कोई साफ-साफ नहीं बोलता है ? क्या मुल्क ऐसे चलता है ? याद रखिए इस देश में सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे लोग हुए, जिन्होंने डेढ़ हजार वर्षो बाद हमें एक भौगोलिक आकार दिया. यह एकता भी. भविष्य के सपने भी. बड़ी कुरबानी के बाद हम यहां पहुंचे, जहां आज हैं. कोई भी बात, जो आगे चल कर हमारी एकता को कमजोर करे, वे असह्य होनी चाहिए, राजनीति के लिए.पर असह्य होने से पहले राजनीति को उदार होना चाहिए.

1935 से 1937 के दौर में उत्तरप्रदेश में मुसलिम लीग ने कांग्रेस से अंतरिम सरकार में हिस्सा मांगा. कांग्रेस ने बिना सोचे खारिज कर दी, वह मांग. वह बात सुलगी, तो फिर आग में बदल गयी. इसलिए राजनीति करनेवालों का दायित्व है कि वे सुनिश्चित करें कि कोई भी तबका उपेक्षित महसूस न करे. चाहे उसकी संख्या कम हो या अधिक. दक्षिण के अय्यर ब्राह्मण यह कहते हैं कि राज्य उनके साथ भेदभाव कर रहा है या उनके बच्चों का 98-99 फीसदी अंक पाने पर भी श्रेष्ठ कॉलेजों- संस्थानों में एडमिशन नहीं होता, तो यह दूर होना चाहिए. कोई वर्ग या समुदाय मामूली चीजों के लिए घर में उपेक्षित महसूस न करे. वरना यह मामूली असंतोष विस्फ़ोटक हो सकता है. यह राजनीति का दायित्व है. राजनीति को सुनिश्चित करना है कि देश में लोगों का मन न बंटे. पहले मन फटता है, तब धरती-भूगोल पर विभाजन होता है.हर कौम, हर धर्म, हर जाति का पढ़ा-लिखा इनसान 21वीं सदी की दहलीज पर ऐसी मांगों के खिलाफ वैचारिक लड़ाई लड़े. इस आधुनिक दुनिया, मजबूत देश-राज्य की अवधारणा के बीच जाति-धर्म के आधार पर राज्य की मांग हतप्रभ करनेवाली है. यह वैसी ही बात है, जैसे आज कोई सती प्रथा की बात करे. मनुष्य की उन्नति के इतिहास में, अतीत की वे सीढ़ियां जो बेड़ी बन गयी थीं, पुन उनका स्मरण, प्रतिगामी सोच है. आधुनिक राष्ट्र-राज्य में हम नया इनसान गढ़ें. एक विश्व का सपना देखें, तो गांधी-नेहरू-पटेल-मौलाना आजाद या इस देश को आकार देनेवाली महान पीढ़ी के ऋण से उऋण होंगे.

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