राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आज न सिर्फ भारत, बल्कि पूरे विश्व के आदर्श हैं। साबरमती के संत के अहिंसा और विश्व शांति के संदेशों को पूरी दुनिया अपना रही है। गांधी जयंती के मौके पर हम बता रहे हैं आपको एक ऐसी चीज के बारे में, जिसे आप शायद ही जानते होंगे। बापू की हत्या से जुड़ी एफआईआर आज भी दिल्ली पुलिस संग्रहालय में मौजूद है :--------- साबरमती के संत महात्मा गांधी ने अपने अहिंसा के मंत्र से 1947 में देश को आजादी दिलाई। हालांकि गांधी आजाद भारत में ज्यादा वक्त नहीं रह सके और नाथूराम गोडसे की गोलियों ने 1948 में उन्हें हमसे हमेशा के लिए छीन लिया। क्या आप जानते हैं कि राष्ट्रपिता की हत्या किस वक्त की गई या फिर किस थाने से नाथू राम गोडसे पर बापू की हत्या का मुकदमा चला? शायद ज्यादातर लोगों का जवाब ना होगा, लेकिन इन सभी कड़वे साक्ष्यों के प्रमाण आज भी दिल्ली पुलिस संग्रहालय में मौजूद हैं। गांधी जी की हत्या के बाद भी लिखी गई एफआईआर दिल्ली पुलिस मुख्यालय स्थित पुलिस संग्रहालय में सुरक्षित है।
उसके मुताबिक बापू की हत्या 30 जनवरी 1948 को शाम पांच बजकर दस मिनट पर की गई। उस दिन बापू प्रार्थना सभा में जाने के लिए बिड़ला हाउस की सीढ़ियों पर निकले थे। तभी करीब दो या तीन फुट की दूरी से उन पर पिस्तौल से तीन फायर किए गए। गोलियां बापू के पेट और छाती में लगीं और वे राम राम कहते हुए बेहोश हो गए। पहले एफआईआर में हत्यारे का नाम नारायण विनायक गोडसे लिखा गया, लेकिन जांच में पता चला कि वह शख्स पुणे का रहने वाला नाथूराम गोडसे था। बापू के जीवन से जुड़े इस अंतिम साक्ष्य को मौके पर मौजूद नंद लाल मेहता ने थाना तुगलकाबाद में लिखवाया। एफआईआर शाम पांच बजकर पैंतालीस मिनट पर लिखी गई। दिलचस्प बात यह है कि यह एफआईआर उर्दू में लिखी गई, क्योंकि सन सत्तर तक एफआईआर उर्दू में ही लिखी जाती थी और लिखने के लिए हार्ड पेंसिल का इस्तेमाल किया जाता था। बापू की हत्या की एफआईआर थाना तुगलकाबाद में दर्ज कर इस केस की जिम्मेदारी डीएसपी जसवंत सिंह को सौंपी गई। लाहौरी गेट थाने में बतौर इंस्पेक्टर तैनात जसवंत सिंह ने देश में चल रहे साम्प्रदायिक दंगों के बावजूद अपने क्षेत्र में शांति को बनाए रखी थी। इस वजह से खुश होकर प्रधानमंत्री ने उन्हें डीएसपी बना दिया। उन्होंने बापू के हत्यारे नाथू राम गोडसे को मौके पर पकड़कर अपनी गिरफ्त में ले लिया। गोडसे से तुगलकाबाद थाना में ही पूछताछ की गई। उसके बाद डीएसपी जसवंत सिंह की अगुवाई में गोडसे पर मुकदमा चला। उन्होंने मुकदमे से जुडे़ सबूतों को इकट्ठा करने के लिए दिन रात मेहनत की और अंत में कोर्ट द्वारा गोडसे को सजा सुना दी गई।
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