Thursday, September 29, 2011

जिस के संगीत से डरती थी एफबीआई ..........

                            एफबीआई यानी दुनिया की सबसे ताक़तवर जांच एजेंसी. दुनियाभर के अपराधी इससे ख़ौफ खाते हैं. यह राजनीतिक उलटफेरों और जीत-हार के खेल में माहिर है. हालांकि एक ऐसा व़क्त भी था, जब एफबीआई को एक शख्स के संगीत से डर लगने लगा था. इतना डर कि वह उसकी हर हरक़त पर नज़र रखने लगी, आख़िर कौन था वह शख्स और क्यों डरती थी उससे एफबीआई........

                                                                           तारीख- जनवरी 10, 1971जगह- मिशिगन, अमेरिकामौका था एक विशाल रैली का, एक सोशल एक्टिविस्ट जॉन सिनक्लेयर की गिरफ़्तारी के विरोध में आयोजित इस रैली में कई बड़े नाम शामिल होने वाले थे. ड्रग ले जाने के आरोप में पकड़े गए जॉन सिनक्लेयर दरअसल एक जाने-माने उदारवादी कार्यकर्ता थे और कहा जा रहा था कि उन्हें ग़लत आरोप लगा कर गिरफ़्तार किया गया था. संगीत, राजनीति और सामाजिक अधिकारों से जुड़ी कई बड़ी हस्तियां इस रैली में मौज़ूद थीं.
हालांकि यह रैली केवल जॉन सिनक्लेयर या इसमें भाग लेने वालों के लिए ही अहम नहीं थी. इस रैली की हर गतिविधि पर नज़रें गड़ाई हुए थी, अमेरिकी संघीय जांच एजेंसी यानी एफबीआई, रैली में आए हर शख्स पर नज़र रखी जा रही थी लेकिन इन सारे मेहमानों में भी एक ख़ास व्यक्ति था…इतना ख़ास कि इसपर नज़र रखने के लिए स्पेशल एजेंट लगाया गया था. रैली ख़त्म होने पर इस ख़ास टारगेट पर नज़र रख रहे स्पेशल एजेंट ने अपनी रिपोर्ट दायर की. रिपोर्ट में कहा गया था कि अपनी पत्नी के साथ रैली में आए इस शख्स ने कई गीत गाए, इसका आख़िरी गाना जॉन सिन्क्लेयर ख़ास इसी मौैके के लिए लिखा गया था. रिपोर्ट में इस शख्स को विषय(सब्जेक्ट) कहा गया था. इसी रिपोर्ट में इस विषय की पहचान दी गई थी- जॉन लेनन, जो पहले बीटल्स नाम के एक ग्रुप के साथ जुड़ा रहा.
                                                                                             
                       जॉन लेनन का यह परिचय किसी आम आदमी के सामने रखा जाता तो शायद उसकी हंसी छूट जाती. इतिहास के सबसे ख्यात संगीतकारों में एक जॉन लेनन की पहचान महज़ गाना गाने वाले एक ऐसे विषय के तौर पर की गई थी जो किसी बीटल्स नाम के ग्रुप से जुड़ा था. जॉन लेनन और बीटल्स विश्व इतिहास संगीत के ऐसे नाम थे जिनका परिचय देने की ज़रूरत ही नहीं थी. हां, इतना बताना ज़रूरी था कि उस रैली के तीन दिन बाद ही सिनक्लेयर रिहा हो गए.सवाल यह है कि आख़िर इतने प्रसिद्ध संगीतकार और गायक के ऊपर क्यों नज़र रखी जा रही थी. क्यों एफबीआई की नज़रों में सबसे ख़तरनाक थे -जॉन लेनन.दरअसल जॉन लेनन की लोकप्रियता ही उनपर नज़र रखे जाने की वजह थी.जॉन का संगीत पूरी दुनिया में सुना जाता था और इसी वजह से एफबीआई को उनसे डर लगता था.दरअसल वह व़क्त अमेरिकी राजनीति में बहुत अहम था. वियतनाम के साथ युद्ध ज़ोर पकड़ चुका था और उसी के साथ युद्ध का विरोध करने वालों की संख्या भी बढ़ गई थी. राष्ट्रपति जॉनसन द्वारा शुरू किए गए युद्ध को नए राष्ट्रपति निक्सन ने भी जारी रखा था. अमेरिकी सैनिकों की भारी संख्या में मौत की ख़बरों के बीच उदारवादियों और समाजवादियों द्वारा विरोध भी बढ़ता जा रहा था. एफबीआई की सबसे ऊंची कुर्सी पर एडगर जे हूवर 40 से भी अधिक सालों से क़ाबिज़ थे. अमेरिका में पूंजीवाद का दबदबा था. उसे सबसे अधिक ख़तरा था-कम्यूनिज़्म से. जहां वियतनाम में भी इसी कम्यूनिज़्म से उसका मुक़ाबला चल रहा था, वहीं देश के अंदर भी पूंजीवाद और हिंसा के ख़िला़फ माहौल तैयार हो रहा था. हूवर को लगता था कि यह कम्यूनिज़्म को जन्म देगा और उसने इस नव-कम्यूनिज़्म से निपटने की तैयारी शुरू कर दी थी. ऐसे हर शख्स पर नज़र रखी जा रही थी जिस पर ज़रा सा भी शक़ हो. युद्ध के ख़िला़फ और उदारवाद के समर्थन में बोलने वाला हर आदमी इस घेरे में आ जाता था. तब के अधिकतर कलाकार और संगीतकार युद्ध का विरोध कर रहे थे.जॉन लेनन ने भी दो साल पहले युद्ध के ख़िला़फ एक गीत रिकार्ड किया था. यह गीत दूसरे वियतनाम मेमोरियल के दौरान लाखों लोगों ने गाया था. उनके गीत युद्ध विरोधी संघर्ष के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा थे. सरकार और एफबीआई को लगा कि जॉन लेनन उनके लिए ख़तरनाक साबित हो सकते हैं. दरअसल निक्सन को लगता था कि लेनन द्वारा उनका विरोध और उनके विरोधी मैकगवर्न का समर्थन उनके दोबारा जीतने में रोड़ा बन सकता है. तभी से उन पर नज़र रखी जाने लगी. ऐसी बातें ढूंढी जाने लगीं जिससे उनपर सवाल खड़े किए जा सके. उन्हें फंसाया जा सके.
                        सिनक्लेयर की रैली तो बस एक उदाहरण थी. उनकी ज़िंदगी की हर एक बात पर नज़र रखी जा रही थी. आख़िरकार एफबीआई को मौका मिला. 1968 में लेनन मादक पदार्थ कैनाबिस के साथ पकड़े गए. अब निक्सन को सुझाया गया कि लेनन को देश से निकाला जा सकता है. दरअसल लेनन ब्रिटिश थे और उन्हें क़ानून तोड़ने के नाम पर बाहर किया जा सकता था. लेनन को बाहर निकालने के लिए कोशिशें शुरू हो गईं.

23 मार्च 1973 को उन्हें 60 दिन के भीतर देश छोड़ने को कह दिया, हालांकि उनकी पत्नी को रियायत मिल गई. इसके जवाब में लेनन ने एक नए देश न्यूटोपिया की स्थापना का दावा किया, जिसकी न तो कोई सीमा थी, न तो कोई क़ानून. ख़ुद को न्यूटोपिया का नागरिक बता उसका झंडा (दो सफेद रुमाल) लहराते हुए, उन्होंने अमेरिका से राजनीतिक शरण की मांग कर दी. हालांकि इस बीच निक्सन ख़ुद वाटरगेट कांड में फंस चुके थे और हूवर का निधन हो चुका था. 1975 में लेनन का देश निकाला ख़ारिज़ कर दिया गया.
लेनन की मौत के बाद उनकी बायोग्राफी लिखने वाले इतिहासकार जो सायनर ने सूचना के अधिकार के तहत एफबीआई से जॉन लेनन से जुड़ीं फाइलें मांगी. एफबीआई ने यह तो मान लिया कि उसके पास लेनन से जुड़ी 281 पन्नों की एक फाइल है, लेकिन उसने इसे सामने लाने से इस बिना पर इंकार कर दिया कि उसमें सुरक्षा से जुड़ीं कुछ बातें हैं. हालांकि बाद में एक लंबी क़ानूनी लड़ाई और बिल क्लिंटन के समय क़ानून बदलने से फाइलें आख़िरकार सामने आईं. इन फाइलों के आधार पर जो सायनर ने एक किताब-गिम्मी सम ट्रूथःद जॉन लेनन एफबीआई फाइल्स-लिखी. फाइलों को पढ़ने से यह साफ हो गया कि दुनिया की सबसे शक्तिशाली सरकार और उसकी ताक़तवर जांच एजेंसी-एफबीआई  इंग्लैंड के लीवरपूल में जन्मे एक शख्स जो किसी बीटल्स नाम के ग्रुप से जुड़ा हुआ था, से किस तरह डरती थी और किस तरह जॉन लेनन पर हर व़क्त से नज़र रखी गई थी.

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