रसूखदार से रिश्तेदारी प्रकट करने के अर्थ में हिन्दी की प्रसिद्ध लोकोक्ति है-सैयां भये कोतवाल तो डर काहे का!!!! कोतवाल यानी एक रौबदार पुलिस अधिकारी। प्राचीनकाल से ही कोतवाल प्रशासनिक व्यवस्था का एक प्रमुख पद रहा है। मुगलों के ज़माने में कोतवाल की व्यवस्था काफी मज़बूत थी। ब्रिटिशकाल में इसका रुतबा कुछ और बढ़ा क्योंकि नियम-कायदों पर अमल कराने में अंग्रेज हाकिम बहुत सख्त थे। आज कोतवाल जैसा कोई पद तो सरकारी तौर पर नहीं होता है मगर आमतौर पर पुलिस अधीक्षक के रूप में इसका अर्थ लगाया जाता है। हर शहर के प्रमुख पुलिस स्टेशन को कोतवाली कहने का चलन आज भी है। फिरंगी दौर में कोतवाल, कोतवाली शब्दों का प्रयोग होता अंग्रेजी में भी होता रहा था। कोतवाल शब्द आज तो विजय तेंडुलकर लिखित बहुचर्चित नाटक घासीराम कोतवाल की वजह से भी जाना जाता है।
कोतवाल शब्द का प्रचलन मुगल दौर और ब्रिटिश काल में उर्दू-फारसी-अंग्रेजी में काफी होता रहा। यह शब्द भारोपीय यानी इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार का है और इसकी व्युत्पत्ति कोष्ठपाल या कोटपाल से मानी जाती है। कोष्ठ शब्द का संस्कृत में अर्थ होता है कक्ष, कमरा या बड़ा हॉल। संस्कृत की पा धातु में भरण-पोषण, संरक्षण और देखरेख का भाव है। पा से बना है पाल शब्द जिसका अर्थ होता है प्रभावशाली व्यक्ति। जाहिर है जिस पर लोगों का पोषण करने अथवा देखरेख का जिम्मा होगा वह निश्चित ही प्रभावशाली व्यक्ति ही होगा जो राजा भी हो सकता है और प्रमुख अधिकारी भी। प्राचीनकाल में राजाओं के नाम के साथ पाल शब्द भी जुड़ा रहता था। अभिभावक, माता-पिता के लिए हिन्दी में पालक, पालनकर्ता शब्द प्रचलित है जो इसी मूल के हैं। पालित का अर्थ हुआ जिसका भरण-पोषण किया जाए। कोष्ठ शब्द यूं तो समुच्चयवाची है और कुष् धातु से बना है मगर इसके मूल में कमरा या कक्ष का ही भाव है। व्यापक अर्थ में देखें तो विशाल घिरे हुए स्थान के तौर पर भी इस शब्द का प्रयोग किया जा सकता है। इस अर्थ में ही कोष्ठ+पाल अर्थात कोतवाल शब्द की व्युत्पत्ति बतौर क्षेत्राधिकारी कोष्ठपाल के रूप में स्वीकार की जा सकती है।
मेरे विचार में कोष्ठपाल से कोतवाल शब्द की व्युत्पत्ति भाषाविज्ञान के नज़रिये से तो सही है मगर तर्कसंगत दृष्टि से ठीक नहीं है। कोतवाल शब्द बना है कोटपाल से। संस्कृत में कोट का अर्थ होता है दुर्ग, किला या फोर्ट। प्राचीनकाल में किसी भी राज्य का प्रमुख सामरिक-प्रशासनिक केंद्र पहाडी टीले पर ऊंची दीवारों से घिरे स्थान पर होता था। अमूमन यह स्थान राजधानी के भीतर या बाहर होता था। मुख्य आबादी की बसाहट इसके आसपास होती थी। इस किले के प्रभारी अधिकारी के लिए कोटपाल शब्द प्रचिलित हुआ फारसी में इसके समकक्ष किलेदार शब्द है। कोटपाल के जिम्मे किले की रक्षा के साथ-साथ वहां रहनेवाले सरकारी अमले और अन्य लोगों देखरेख का काम भी होता था। संस्कृत का कोट शब्द बना है कुट् धातु से जिसमें छप्पर, घिरा हुआ स्थान जैसे भाव हैं। कुट् धातु का विकास ही कुटिया, कुटीर, कुटीरम्, कोट जैसे प्रचलित आश्रयस्थलों के रूप में सामने आया। कुट् में निहित घिरे हुए स्थान का भाव ही कोट में स्पष्ट हो रहा है। आमतौर पर किला शब्द में ऊंचाई का भाव निहित है पर पहाडियों की तुलना में समतल स्थानों पर किले ज्यादा हैं। इसलिए कोट विशेषता ऊंचाई नहीं बल्कि स्थान का घिरा होना प्रमुख है। चहारदीवारी के लिए परकोटा शब्द भी इसी मूल का है जो कोट में परि उपसर्ग लगाने से बना है। परि का अर्थ होता है चारों ओर से। इस तरह अर्थ भी घिरा हुआ या सुरक्षित स्थान हुआ।
सर राल्फ एल टर्नर के शब्दकोश में भी कोटपाल (कोतवाल) शब्द का अर्थ किलेदार यानी commander of a fort ही बताया गया है। कोटपाल का प्राकृत रूप कोट्टवाल हुआ जिससे कोटवार और कोतवाल जैसे रूप बने। बदलते वक्त में जब किलों की आबादी घटती गई और प्रशासनिक केंद्र के तौर पर किले की बस्ती का विस्तार परकोटे से बाहर तक फैलने लगा तब कोतवाल शब्द से किलेदार की अर्थवत्ता का लोप हो गया और इस पद के प्रभामंडल में भी अभिवृद्धि हुई। किसी ज़माने में कोतवाल के पास पुलिस के साथ साथ मजिस्ट्रेट के अधिकार भी होते थे। दिलचस्प बात यह है कि एक ही मूल से बने कोतवाल और कोटवार जैसे शब्दों में कोटपाल से कोतवाल बनने के बावजूद इस नाम के साथ रसूख बना रहा जबकि कोटवार की इतनी अवनति हुई कि यह पुलिस-प्रशासनिक व्यवस्था के सबसे निचले पायदान का कर्मचारी बनकर रह गया। मध्यभारत में आज भी कोटवार व्यवस्था लागू है। मध्यप्रदेश पुलिस रेगुलेशन एक्ट के मुताबिक कोटवार दरअसल गांव के चौकीदार की भूमिका में है। बमुश्किल-तमाम दो हजार रुपए मासिक वेतन पानेवाला कर्मचारी अलबत्ता यह ग्रामीण क्षेत्र में पुलिस के सूचनातंत्र की अहमतरीन कड़ी है।
ग्रामीण क्षेत्र में वनवासी क्षत्रिय जातियों में पुश्तैनी रूप से ग्रामरक्षा की जिम्मेदारी संभालने के चलते कोटवार पद अब कोटवार जाति में तब्दील हो गया है। उधर कोतवाल की जगह कोतवाली का अस्तित्व तो अब भी कायम है मगर कोतवाल पद, पुलिस अधीक्षक के भारीभरकम ओहदे में बदल गया है। महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में भी ब्राह्मण वर्ग में कोतवाल उपनाम होता है। पहले यह शासकों द्वारा दी जानेवाली उपाधि थी जो बाद में उनकी पहचान बन गई। कोतवाल शब्द अपने संस्कृत मूल से उठ कर फारसी में भी दाखिल हुआ। हॉब्सन-जॉब्सन कोश के मुताबिक बुखारा के अमीर (शासक) की तमाम इमारतों का प्रभारी या अधीक्षक कोतवाल कहलाता था। तुर्की भाषा में भी यह शब्द गया जिसका अर्थ था सुरक्षा प्रभारी (chef de la garnison). अलायड चैम्बर्स के ट्रान्सलिट्रेटेड हिन्दी-इंग्लिश कोश के एंग्लों-इंडियन ग्लासरी में कोतवाल(cotwal) के दुर्गाधिपति, दुर्गपाल जैसे अर्थ ही दिए हैं। इसके साथ ही उसे पुलिस अधीक्षक, नगर दंडाधिकारी और किलेदार भी बताया गया है।
कोतवाल शब्द का प्रचलन मुगल दौर और ब्रिटिश काल में उर्दू-फारसी-अंग्रेजी में काफी होता रहा। यह शब्द भारोपीय यानी इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार का है और इसकी व्युत्पत्ति कोष्ठपाल या कोटपाल से मानी जाती है। कोष्ठ शब्द का संस्कृत में अर्थ होता है कक्ष, कमरा या बड़ा हॉल। संस्कृत की पा धातु में भरण-पोषण, संरक्षण और देखरेख का भाव है। पा से बना है पाल शब्द जिसका अर्थ होता है प्रभावशाली व्यक्ति। जाहिर है जिस पर लोगों का पोषण करने अथवा देखरेख का जिम्मा होगा वह निश्चित ही प्रभावशाली व्यक्ति ही होगा जो राजा भी हो सकता है और प्रमुख अधिकारी भी। प्राचीनकाल में राजाओं के नाम के साथ पाल शब्द भी जुड़ा रहता था। अभिभावक, माता-पिता के लिए हिन्दी में पालक, पालनकर्ता शब्द प्रचलित है जो इसी मूल के हैं। पालित का अर्थ हुआ जिसका भरण-पोषण किया जाए। कोष्ठ शब्द यूं तो समुच्चयवाची है और कुष् धातु से बना है मगर इसके मूल में कमरा या कक्ष का ही भाव है। व्यापक अर्थ में देखें तो विशाल घिरे हुए स्थान के तौर पर भी इस शब्द का प्रयोग किया जा सकता है। इस अर्थ में ही कोष्ठ+पाल अर्थात कोतवाल शब्द की व्युत्पत्ति बतौर क्षेत्राधिकारी कोष्ठपाल के रूप में स्वीकार की जा सकती है।
मेरे विचार में कोष्ठपाल से कोतवाल शब्द की व्युत्पत्ति भाषाविज्ञान के नज़रिये से तो सही है मगर तर्कसंगत दृष्टि से ठीक नहीं है। कोतवाल शब्द बना है कोटपाल से। संस्कृत में कोट का अर्थ होता है दुर्ग, किला या फोर्ट। प्राचीनकाल में किसी भी राज्य का प्रमुख सामरिक-प्रशासनिक केंद्र पहाडी टीले पर ऊंची दीवारों से घिरे स्थान पर होता था। अमूमन यह स्थान राजधानी के भीतर या बाहर होता था। मुख्य आबादी की बसाहट इसके आसपास होती थी। इस किले के प्रभारी अधिकारी के लिए कोटपाल शब्द प्रचिलित हुआ फारसी में इसके समकक्ष किलेदार शब्द है। कोटपाल के जिम्मे किले की रक्षा के साथ-साथ वहां रहनेवाले सरकारी अमले और अन्य लोगों देखरेख का काम भी होता था। संस्कृत का कोट शब्द बना है कुट् धातु से जिसमें छप्पर, घिरा हुआ स्थान जैसे भाव हैं। कुट् धातु का विकास ही कुटिया, कुटीर, कुटीरम्, कोट जैसे प्रचलित आश्रयस्थलों के रूप में सामने आया। कुट् में निहित घिरे हुए स्थान का भाव ही कोट में स्पष्ट हो रहा है। आमतौर पर किला शब्द में ऊंचाई का भाव निहित है पर पहाडियों की तुलना में समतल स्थानों पर किले ज्यादा हैं। इसलिए कोट विशेषता ऊंचाई नहीं बल्कि स्थान का घिरा होना प्रमुख है। चहारदीवारी के लिए परकोटा शब्द भी इसी मूल का है जो कोट में परि उपसर्ग लगाने से बना है। परि का अर्थ होता है चारों ओर से। इस तरह अर्थ भी घिरा हुआ या सुरक्षित स्थान हुआ।
सर राल्फ एल टर्नर के शब्दकोश में भी कोटपाल (कोतवाल) शब्द का अर्थ किलेदार यानी commander of a fort ही बताया गया है। कोटपाल का प्राकृत रूप कोट्टवाल हुआ जिससे कोटवार और कोतवाल जैसे रूप बने। बदलते वक्त में जब किलों की आबादी घटती गई और प्रशासनिक केंद्र के तौर पर किले की बस्ती का विस्तार परकोटे से बाहर तक फैलने लगा तब कोतवाल शब्द से किलेदार की अर्थवत्ता का लोप हो गया और इस पद के प्रभामंडल में भी अभिवृद्धि हुई। किसी ज़माने में कोतवाल के पास पुलिस के साथ साथ मजिस्ट्रेट के अधिकार भी होते थे। दिलचस्प बात यह है कि एक ही मूल से बने कोतवाल और कोटवार जैसे शब्दों में कोटपाल से कोतवाल बनने के बावजूद इस नाम के साथ रसूख बना रहा जबकि कोटवार की इतनी अवनति हुई कि यह पुलिस-प्रशासनिक व्यवस्था के सबसे निचले पायदान का कर्मचारी बनकर रह गया। मध्यभारत में आज भी कोटवार व्यवस्था लागू है। मध्यप्रदेश पुलिस रेगुलेशन एक्ट के मुताबिक कोटवार दरअसल गांव के चौकीदार की भूमिका में है। बमुश्किल-तमाम दो हजार रुपए मासिक वेतन पानेवाला कर्मचारी अलबत्ता यह ग्रामीण क्षेत्र में पुलिस के सूचनातंत्र की अहमतरीन कड़ी है।
ग्रामीण क्षेत्र में वनवासी क्षत्रिय जातियों में पुश्तैनी रूप से ग्रामरक्षा की जिम्मेदारी संभालने के चलते कोटवार पद अब कोटवार जाति में तब्दील हो गया है। उधर कोतवाल की जगह कोतवाली का अस्तित्व तो अब भी कायम है मगर कोतवाल पद, पुलिस अधीक्षक के भारीभरकम ओहदे में बदल गया है। महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में भी ब्राह्मण वर्ग में कोतवाल उपनाम होता है। पहले यह शासकों द्वारा दी जानेवाली उपाधि थी जो बाद में उनकी पहचान बन गई। कोतवाल शब्द अपने संस्कृत मूल से उठ कर फारसी में भी दाखिल हुआ। हॉब्सन-जॉब्सन कोश के मुताबिक बुखारा के अमीर (शासक) की तमाम इमारतों का प्रभारी या अधीक्षक कोतवाल कहलाता था। तुर्की भाषा में भी यह शब्द गया जिसका अर्थ था सुरक्षा प्रभारी (chef de la garnison). अलायड चैम्बर्स के ट्रान्सलिट्रेटेड हिन्दी-इंग्लिश कोश के एंग्लों-इंडियन ग्लासरी में कोतवाल(cotwal) के दुर्गाधिपति, दुर्गपाल जैसे अर्थ ही दिए हैं। इसके साथ ही उसे पुलिस अधीक्षक, नगर दंडाधिकारी और किलेदार भी बताया गया है।
बन्धु जहाँ से सामग्री ली गई है कृपया वहाँ का सन्दर्भ रेफरेंस भी देना चाहिए वरना लोग समझेंगे कि ये आपने लिखा है।
ReplyDeletehttp://shabdavali.blogspot.in/