पश्चिमी देशों के विद्वानों का मत है कि लेटिन भाषा के शब्द पोलिटिया से पुलिस शब्द की उत्पत्ति हुई है। पोलिटिया का अर्थ है नागरिक शासन। पुलिस नागरिक शासन का एक महत्वपूर्ण अंग है। इस तरह लेटिन भाषा के इस शब्द से पुलिस की उत्पत्ति मानने वालों का विचार भी तर्कपूर्ण है किन्तु भारत के प्राचीन सम्राट अशोक ने पुन्निस शब्द का प्रयोग किया है। पालि भाषा में नगर रक्षक को पुन्निस कहते थे। पुर का अर्थ होता है नगर, पुर के निवासियों को पोर कहते थे। पुरूष शब्द का उपयोग अधिकारी के रूप् में किया गया है। इस प्रकार ईसा पूर्व तीसरी सदी में पुन्निस और पुलिस उपयोग अधिकारी के रूप में किया गया है। इस प्रकार ईसा पूर्व तीसरी सदी में पुन्निस और पुलिस शब्दों का प्रयोग पालि भाषा में मिलता है। इस आधार पर श्री परिपूर्णानन्द वर्मा जी का मत है कि पुलिस शब्द का प्रादुर्भाव भार में ही हुआ। यह विचार उन्होंने अपने ग्रन्थ भारतीय पुलिस में व्यक्त किया है। इसबसे स्पष्ट है कि भारत में पुलिस व्यवस्था अति प्राचीन है।
पुलिस का प्राचीन इतिहास
सम्राट अशोक के कार्यकाल में पुन्निस का कार्य था कि वह जनता को पाप करने से रोके। आज भी पुलिस का कार्य विधि (कानून) के प्राविधानों को लागू कराना है।
इस प्रकार भारतीय पुलिस की परम्परा अति प्राचीन है। समाज में पुलिस की आवश्यकता अपराध रोकने के लिए होती है। अर्थवेदन में भी अपराध शब्द आया है जिसका अर्थ है अपने लक्ष्य से च्युत होना अथवा गलत कार्य करना। उस समय भी अपराध की रोकथाम की व्यवस्था थी और इस कार्य में प्रयुक्त दल को पौरूस कहते थे जो बाद में पुलिस बना। अशोक के काल तक पौरूस आजकल के सचिव का कार्य करने लगा था और पुलिस अपराधों की रोकथाम का कार्य करती थी।
विश्व के अन्य प्राचीन देशों में भी प्राचीन काल में पुलिस व्यवस्था थी। ईरानी साम्राज्य में अलग एक पुलिस बल भी था। प्राचीन यूनानी नगर राज्य में भी ईसा पूर्व दूसरी सदी में पुलिस व्यवस्था होने का प्रमाण मिलता है। रोमन साम्राज्य में ईसा पूर्व पहली सदी में सम्राट आंगस्टन ने पुलिस व्यवस्था की थी। यूरोप के महान सम्राट शार्लमा ने 800 ई. में पवित्र रोमन साम्राज्य की स्थापना की। उसी ने फ्रांस में जेडामों की स्थापना की। आज भी फ्रांस में यह संगठन मौजूद है और वहां की पुलिस का महत्वपूर्ण अंग है।
भारत मौर्य काल में पुलिस की सम्यक व्यवस्था थी। उस समय गुप्तचर पुलिस भी थी। प्राचीन भार में भी ग्रामीण तथा नगर पुलिस अलग-अलग थी।सम्राट अशोक ने विकेन्द्रीकरण की नीति अपनाई थी। इस प्रकार ग्राम तथा नगरों को बहुत से अधिकार प्राप्त हो गये थे लेकिन ई. सन् 300 से 650 के बीच गुप्त वंश के राज्य में केन्द्र को सुदृढ़ बनाया गया । प्रथम बार गुप्त काल में केन्द्रीय पुलिस की स्थापना भारत में हुई । भारत की पुलिस को वेतन मिलता था।
ग्यारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में भारत पर मुसलमानों के आक्रमण शुरू हो गए। इसके बाद ग्रामीण तथा नगरीय पुलिस व्यवस्था जो सदियों से उत्तर भारत में प्रचलित थी, समाप्त हो गई और सेना की राज्य प्रधान अंग बन गई। लम्बे अरसे तक पुलिस का काम सेना के जिम्मे रहा।अलाउद्दीन खिलजी (1286-1316 ई.) ने पहली बार नियमित पुलिस व्यवस्था की। बाद में हर नगर में पुलिस कोतवाल नियुक्त किए गए। कोतवाल को जो वेतन मिलता था उसी में से उसे अधीनस्थ पुलिस की व्यवस्था करनी पड़ती थी।
शेरशाह सूरी ने पुलिस की बडी अच्छी व्यवस्था की । उसने प्राचीन भारतीय प्रणाली की स्थानीय पुलिस नियुक्त कर दी। हर गॉव में उसे मुकदम नियुक्त कर दिया। अगर गांव में चोरी हो जाए और माल की बरामदगी न हो सके तो माल की कीमत उस गांव के मुकदम को देनी पडती थी। हत्या के मामलें में यदि हत्यारा लापता रहा तो मुकदम को फॉसी पर चढा दिया जाता था।अकबर के समय भी प्राचीन पुलिस प्रणाली थोड़े परिवर्तन के साथ चलती रही। गांव वाले अपने चौकीदार, पहरेदार स्वयं रखते थे। शहर कोतवाल का पद शेरशाह सूरी के समय से चलता रहा। यह पद बाद में मराठों के द्वारा खत्म किया गया।
अंग्रेजी शासन काल में पुलिस की औपचारिक स्थापना लार्ड कार्नवालिस ने की। प्रति 400 मील पर एक थाना खोलने का आदेश हुआ वहॉ पर वैतनिक थानेदार नियुक्त किए गए जो जिला जज के नियंत्रण में रखें गए। किन्तु यह व्यवस्था सफल नहीं हुई जिला हुई। जिला जज ने थाने के काम पर ध्यान नहीं दिया तथा पुलिस कलेक्टर के अधीन कर दी गई। कलेक्टर को भी समय नहीं था कि वह अपराध रोकने का काम देखें। अन्त में बंगाल में कलकत्ता, ढाका, मुर्शिदाबाद और चौबीस परगना में पुलिस सुपरिंटेन्डेन्ट की नियुक्ति 1809 ई. में की गई। इनके अधिकार आज के पुलिस महानिदेशक के अधिकारों जैसे थे। बम्बई प्रान्त के कई इलाके में 1810 ई. में ही पुलिस सुपरिंटेन्डेन्ट नियुक्त किए गए। 1810 ई में ही पटना और बनारस में भी इन्हें नियुक्त किया गया। ये सभी यूरोपियन थे। लेकिन 1829 ई. में पुलिस सुपरिंटेन्डेन्ट के पद खर्च में कटौती करने के उद्देश्य से तोड दिया गया और पुलिस मजिस्ट्रेट के अधीन कर दी गई । यह व्यवस्था भी नहीं चल सकी। अन्त में 1859 में मद्रास प्रान्त में और 1870 में बम्बई प्रान्त में नियमित पुलिस सुपरिंटेन्डेन्ट की नियुक्ति की जा सकी।
सन 1859 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद 1860 ई. में पुलिस कमीशन बैठा जिसकी संस्तुति पर 1861 ई को पुलिस अधिनियम तैयार किया गया, जिसका मुख्य उद्देश्य जनता को दबाकर रखना था। खर्च कम हो इस उद्देश्य से हर थाने का प्रभारी अधिकारी हेड-कॉन्सटेबल को बदा दिया गया। इस समय कॉन्सटेबल की तीन श्रेणियां थीं और उनका वेतन 6, 7, 8 रू० प्रति माह था।कलकत्ते में काम कर रहे 1860 के पुलिस आयोग की संस्तुतियां प्राप्त होने के पूर्व 1860 ई में ही उत्तर प्रदेश की पुलिस का गठन कर दिया गया था। उत्तर प्रदेश का नाम उत्तरी पश्चिमी प्रान्त था। सातों मडंलों में एक-एक पुलिस अधीक्षक व जिले में सहायक पुलिस अधीक्षक नियुक्त किए गए। नवम्बर 1860 ई. में प्रान्त में पुलिस महानिरीक्षक की नियुक्ति की गई तथा छः उप महानिरीक्षक के पद सृजित हुए। उस समय 39 जिले थे। प्रत्येक 6 मील पर थाना खुलने का आदेश हुआ और एक हेड कॉन्सटेबल तथा छः कॉन्सटेबलों की नियुक्ति प्रत्येक थाने पर हो। उसके बाद पुलिस आयोग फिर गठित हुए। स्वतंत्रता की लडाई प्रारम्भ हो गई। लडाई के दौरान जनता में पुलिस की छवि गिर गई क्योंकि पुलिस का प्रयोग स्वतंत्रता सेनानियों के विरूद्ध किया गया ।
थोड़े-बहुत परिवर्तनों के साथ भारतीय पुलिस का शासन चलता रहा। सन् 1949 में स्वराज्य के बाद वास्तविक परिवर्तन का सूत्रपात हुआ और आज तक पुलिस प्रशासन में सुधार का क्रम जारी है।
पुलिस का प्राचीन इतिहास
सम्राट अशोक के कार्यकाल में पुन्निस का कार्य था कि वह जनता को पाप करने से रोके। आज भी पुलिस का कार्य विधि (कानून) के प्राविधानों को लागू कराना है।
इस प्रकार भारतीय पुलिस की परम्परा अति प्राचीन है। समाज में पुलिस की आवश्यकता अपराध रोकने के लिए होती है। अर्थवेदन में भी अपराध शब्द आया है जिसका अर्थ है अपने लक्ष्य से च्युत होना अथवा गलत कार्य करना। उस समय भी अपराध की रोकथाम की व्यवस्था थी और इस कार्य में प्रयुक्त दल को पौरूस कहते थे जो बाद में पुलिस बना। अशोक के काल तक पौरूस आजकल के सचिव का कार्य करने लगा था और पुलिस अपराधों की रोकथाम का कार्य करती थी।
विश्व के अन्य प्राचीन देशों में भी प्राचीन काल में पुलिस व्यवस्था थी। ईरानी साम्राज्य में अलग एक पुलिस बल भी था। प्राचीन यूनानी नगर राज्य में भी ईसा पूर्व दूसरी सदी में पुलिस व्यवस्था होने का प्रमाण मिलता है। रोमन साम्राज्य में ईसा पूर्व पहली सदी में सम्राट आंगस्टन ने पुलिस व्यवस्था की थी। यूरोप के महान सम्राट शार्लमा ने 800 ई. में पवित्र रोमन साम्राज्य की स्थापना की। उसी ने फ्रांस में जेडामों की स्थापना की। आज भी फ्रांस में यह संगठन मौजूद है और वहां की पुलिस का महत्वपूर्ण अंग है।
भारत मौर्य काल में पुलिस की सम्यक व्यवस्था थी। उस समय गुप्तचर पुलिस भी थी। प्राचीन भार में भी ग्रामीण तथा नगर पुलिस अलग-अलग थी।सम्राट अशोक ने विकेन्द्रीकरण की नीति अपनाई थी। इस प्रकार ग्राम तथा नगरों को बहुत से अधिकार प्राप्त हो गये थे लेकिन ई. सन् 300 से 650 के बीच गुप्त वंश के राज्य में केन्द्र को सुदृढ़ बनाया गया । प्रथम बार गुप्त काल में केन्द्रीय पुलिस की स्थापना भारत में हुई । भारत की पुलिस को वेतन मिलता था।
ग्यारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में भारत पर मुसलमानों के आक्रमण शुरू हो गए। इसके बाद ग्रामीण तथा नगरीय पुलिस व्यवस्था जो सदियों से उत्तर भारत में प्रचलित थी, समाप्त हो गई और सेना की राज्य प्रधान अंग बन गई। लम्बे अरसे तक पुलिस का काम सेना के जिम्मे रहा।अलाउद्दीन खिलजी (1286-1316 ई.) ने पहली बार नियमित पुलिस व्यवस्था की। बाद में हर नगर में पुलिस कोतवाल नियुक्त किए गए। कोतवाल को जो वेतन मिलता था उसी में से उसे अधीनस्थ पुलिस की व्यवस्था करनी पड़ती थी।
शेरशाह सूरी ने पुलिस की बडी अच्छी व्यवस्था की । उसने प्राचीन भारतीय प्रणाली की स्थानीय पुलिस नियुक्त कर दी। हर गॉव में उसे मुकदम नियुक्त कर दिया। अगर गांव में चोरी हो जाए और माल की बरामदगी न हो सके तो माल की कीमत उस गांव के मुकदम को देनी पडती थी। हत्या के मामलें में यदि हत्यारा लापता रहा तो मुकदम को फॉसी पर चढा दिया जाता था।अकबर के समय भी प्राचीन पुलिस प्रणाली थोड़े परिवर्तन के साथ चलती रही। गांव वाले अपने चौकीदार, पहरेदार स्वयं रखते थे। शहर कोतवाल का पद शेरशाह सूरी के समय से चलता रहा। यह पद बाद में मराठों के द्वारा खत्म किया गया।
अंग्रेजी शासन काल में पुलिस की औपचारिक स्थापना लार्ड कार्नवालिस ने की। प्रति 400 मील पर एक थाना खोलने का आदेश हुआ वहॉ पर वैतनिक थानेदार नियुक्त किए गए जो जिला जज के नियंत्रण में रखें गए। किन्तु यह व्यवस्था सफल नहीं हुई जिला हुई। जिला जज ने थाने के काम पर ध्यान नहीं दिया तथा पुलिस कलेक्टर के अधीन कर दी गई। कलेक्टर को भी समय नहीं था कि वह अपराध रोकने का काम देखें। अन्त में बंगाल में कलकत्ता, ढाका, मुर्शिदाबाद और चौबीस परगना में पुलिस सुपरिंटेन्डेन्ट की नियुक्ति 1809 ई. में की गई। इनके अधिकार आज के पुलिस महानिदेशक के अधिकारों जैसे थे। बम्बई प्रान्त के कई इलाके में 1810 ई. में ही पुलिस सुपरिंटेन्डेन्ट नियुक्त किए गए। 1810 ई में ही पटना और बनारस में भी इन्हें नियुक्त किया गया। ये सभी यूरोपियन थे। लेकिन 1829 ई. में पुलिस सुपरिंटेन्डेन्ट के पद खर्च में कटौती करने के उद्देश्य से तोड दिया गया और पुलिस मजिस्ट्रेट के अधीन कर दी गई । यह व्यवस्था भी नहीं चल सकी। अन्त में 1859 में मद्रास प्रान्त में और 1870 में बम्बई प्रान्त में नियमित पुलिस सुपरिंटेन्डेन्ट की नियुक्ति की जा सकी।
सन 1859 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद 1860 ई. में पुलिस कमीशन बैठा जिसकी संस्तुति पर 1861 ई को पुलिस अधिनियम तैयार किया गया, जिसका मुख्य उद्देश्य जनता को दबाकर रखना था। खर्च कम हो इस उद्देश्य से हर थाने का प्रभारी अधिकारी हेड-कॉन्सटेबल को बदा दिया गया। इस समय कॉन्सटेबल की तीन श्रेणियां थीं और उनका वेतन 6, 7, 8 रू० प्रति माह था।कलकत्ते में काम कर रहे 1860 के पुलिस आयोग की संस्तुतियां प्राप्त होने के पूर्व 1860 ई में ही उत्तर प्रदेश की पुलिस का गठन कर दिया गया था। उत्तर प्रदेश का नाम उत्तरी पश्चिमी प्रान्त था। सातों मडंलों में एक-एक पुलिस अधीक्षक व जिले में सहायक पुलिस अधीक्षक नियुक्त किए गए। नवम्बर 1860 ई. में प्रान्त में पुलिस महानिरीक्षक की नियुक्ति की गई तथा छः उप महानिरीक्षक के पद सृजित हुए। उस समय 39 जिले थे। प्रत्येक 6 मील पर थाना खुलने का आदेश हुआ और एक हेड कॉन्सटेबल तथा छः कॉन्सटेबलों की नियुक्ति प्रत्येक थाने पर हो। उसके बाद पुलिस आयोग फिर गठित हुए। स्वतंत्रता की लडाई प्रारम्भ हो गई। लडाई के दौरान जनता में पुलिस की छवि गिर गई क्योंकि पुलिस का प्रयोग स्वतंत्रता सेनानियों के विरूद्ध किया गया ।
थोड़े-बहुत परिवर्तनों के साथ भारतीय पुलिस का शासन चलता रहा। सन् 1949 में स्वराज्य के बाद वास्तविक परिवर्तन का सूत्रपात हुआ और आज तक पुलिस प्रशासन में सुधार का क्रम जारी है।
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