पानी पीने के लिए यहाँ चालीस हैंडपम्प और दो कुएँ हैं। मजबूरी में गाँव वाले फ्लोराइड युक्त पानी पी रहे हैं। नतीजतन आज की तारीख में इस गाँव के सभी व्यस्क विकलांग या अपंग हैं। कोई रेंग रहा है तो कोई लाठी के सहारे अपने शरीर का भार ढो रहा है। हालत इतने खराब होते जा रहे हैं कि अब बच्चे भी विकलांग पैदा होने लगे हैं। गाँव का हर आदमी तिल-तिल कर मर रहा है।
उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार की नई इबारत लिखने वाले राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ मिशन (एनआरएचएम) के तहत फ्लोरोसिस के रोकथाम के लिए अप्रैल, 2010 में इस गाँव के लिए विशेष राशि का आबंटन किया गया था। पर उसे भ्रष्टाचार ने लील लिया। राशि गाँव आने से पहले ही खत्म हो गई। काला को सफेद बनाने की कागजी कारवाई लखनऊ में पूरा कर ली गई। गाँव के प्रधान श्री विंदेश शर्मा कहते हैं कि उनकी माँ को फ्लोरोसिस की वजह से अपनी जिंदगी के अंतिम दिन बिस्तर पर गुजारने पड़े थे। वे चलने-फिरने से लाचार थीं। उनके दोनों पैरों ने काम करना बंद कर दिया था। उनके पिता भी इसी बीमारी के कारण चल-फिर नहीं पाते हैं। समर्थ होने के कारण श्री शर्मा अपने पिता का इलाज कानपुर में करवा रहे हैं। श्री शर्मा को अपने पुत्र का इलाज भी लखनऊ में करवाना पड़ा था। परन्तु गाँव के सभी लोग श्री शर्मा की तरह आर्थिक रुप से समर्थ एवं खुश किस्मत नहीं हैं।
रायबरेली में फ्लोरोसिस के रोकथाम से जुड़े डॉ. ओपी वर्मा का मानना है कि अभी भी राज्य सरकार का स्वास्थ महकमा फ्लोरोसिस से लड़ने के लिए तैयार नहीं है। सभी को प्रशिक्षण की आवश्यकता है। साथ ही मेडिकल उपकरणों की भी। इसी बरक्स में डॉ. वर्मा पुनष्चः कहते हैं, 'भ्रष्टाचार और संसाधनों के अभाव के कारण ही हम फ्लोरोसिस से नहीं लड़ पा रहे हैं।' जाहिर है राज्य की समस्याओं से निपटने का कर्त्तव्य राज्य सरकार का है। बावजूद इसके उत्तर प्रदेश की बसपा सरकार राज्य की जनता की समस्याओं का हल ढूंढने में नाकाम रही है। जिस तथाकथित दलित और दबे-कुचले वर्ग का यह सरकार प्रतिनिधित्व कर रही है, वह भी अपने को सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रहा है।
यहाँ सवाल यह उठता है कि यदि राज्य सरकार कन्हामऊ गाँव के वाशिंदे की सुध नहीं ले रही है तो क्या केन्द्र सरकार या उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाली सासंद सोनिया गाँधी की यह जिम्मेदारी नहीं बनती है कि वे अपनी अगुआई में फ्लोरोसिस बीमारी के खात्मे के लिए कोई ठोस कार्रवाई करें। गौरतलब है कि कन्हामऊ गाँव के लोगों ने 2009 के लोकसभा चुनाव का इसी मुद्दे पर बहिष्कार किया था। राहुल गाँधी भी विगत दिनों पश्चिमी और पूर्वी उत्तर प्रदेश की पैदल यात्रा पर थे। उद्देश्य था सिर्फ मायावती सरकार की आलोचना और कांग्रेस के लिए आगामी विधानसभा में जीत के लिए जमीन तैयार करना। सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी आज सत्ता के केन्द्र में हैं। अगर वे चाहें तो कन्हामऊ गाँव के रहवासियों का पुनर्वास या इलाज करवा सकते हैं। महज अपने को किसानों का हितैषी बताने और भूमि अधिग्रहण पर राजनीति करने से उनका वोट बैंक उत्तर प्रदेश में मजबूत नहीं हो सकता है।
स्पष्ट है कन्हामऊ गाँव में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ मिशन योजना पूरी तरह से असफल हो चुकी है और इसके लिए राज्य सरकार इस गाँव के वाशिंदों की नजरों में पूरी तरह से दोषी हैं। लगता है मायावती सरकार पूरी तरह से कुंभकर्णी नींद में गाफिल है। शायद सत्ता गंवाने के बाद मायावती को अपनी गलतियों का अहसास हो। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। हमारे संविधान में लोक कल्याण की संकल्पना को समाहित किया गया है। केवल योजना बनाने से किसी समस्या का हल नहीं हो सकता है। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ मिशन योजना और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना जैसी कल्याणकारी योजनाएँ भ्रष्टाचार के कारण असफल चुकी हैं। जबकि इन योजनाओं का लाभ लाभार्थी तक पहुँचाने का काम भी सरकार का ही है। कन्हामऊ गाँव के लोग जिस तरह से रोज खून के आँसू पीते हुए अपनी अपनी मौत का इंतजार कर रहे हैं, वह निश्चित रूप से पूरे समाज और देश के माथे पर लगे कलंक के समान है।
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