Friday, August 5, 2011

'१५ अगस्त का ऐतिहासिक महत्व'----------


१५ अगस्त कैलंडर(२०११) ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का २२७वॉ (लीप वर्ष मे २२८ वॉ) दिन है। साल मे अभी और १३८ दिन बाकी है।
१५ अगस्त का ऐतिहासिक महत्व को प्रदर्शित करने वाली कुछ प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं---
(१) सन् १९४५- जापान का आत्म समर्पण, मित्र राष्ट्रों में खुशी की लहर
(२) सन् १९४७-भारतीय स्वतंत्रता दिवस। सन् १९४७ ईसवी को वर्षो तक ब्रिटिश साम्राज्यवाद के पिरुद्ध संघर्ष करने के पश्चात भारत की जनता इस देश को स्वतंत्र कराने में सफल हुई। १६वीं शताब्दी में अंग्रेज़ों ने भारत में अपना प्रभाव बनाना आरंभ कर दिया था। और १७वीं शताब्दी में ब्रिटेन ने भारत में अपने योरोपीय प्रतिद्वन्द्वी फ़्रांस और इसी प्रकार तैमूरी मुग़लों को पराजित करके इस देश पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। भारतीय जनता ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध कई बार आंदोलन छेड़ा किंतु अंग्रेज़ों ने उसे कुचल दिया। सन् १८९५ में भारतीय नेशनल कॉग्रेस का गठन हुआ और फिर जनता के आंदोलन संगठित होने लगे। स्वतंत्रता आंदोलन से महात्मा गांधी के जुड़ने और उनके नेतृत्व में सत्याग्रह और असहयोग आंदोलनों के कारण ब्रिटेन को सन् १९४७ में अपने सबसे बड़े उपनिवेश से हाथ धोना पड़ा।
(३) सन् १९४७- बलुचिस्तान पाकिस्तान में मिल गया।
(४) सन् १९४७- हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय से इनकार कर स्वतंत्र रहने की घोषणा की।
(५) सन् १९४८- कोरिया प्रायद्वीप के विभाजन के पश्चात दक्षिणी केरिया नामक एक स्वाधीन देश अस्त्तिव में आया। बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में कोरिया प्रायद्वीप को चीन व जापान जैसे क्षेत्र के बड़े देशों के अतिक्रमण और अतिग्रहण का सामना करना पड़ा। सन् १९०५ में जापान ने कोरिया पर अधिकार कर लिया। परंतु द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की पराजय के बाद सोवियत संघ ने इसके उत्तरी भाग पर और अमरीका ने दक्षिणी भाग पर अधिकार कर लिया। चूंकि उत्तरी कोरिया में सोवियत संघ और कम्यूनिज्म की और दक्षिण में पश्चिमी देशों की पक्षधर की पक्षधर सरकार थी इस लिए कोरिया प्रायद्वीप दो अलग देशैं में विभाजित हो गया।
(६) सन् १९६०- कॉगो गणराज्य में फ़्रांस से स्वतंत्रता मिली। अतीत में कॉगो पश्चिमी अफ़्रीक़ा का एक भाग था जिसमें वर्तमान अंगोला और कॉगों डेमोक्रेटिक भी शामिल थे। पुर्तग़ालियों ने १५वीं शताब्दी में इसक्षेत्र की खोज की परंतु यह देश वर्षों तक फ़्रांस का उपनिवेश रहा।
(७) सन् १९७५- बंग्लादेश के तत्कालीन राष्ट्रपति शेख मुजिबुर रहमान, बांगलादेश के राष्ट्राध्यक्ष की एक सैनिक विद्रोह में हत्या कर दी गयी। वे बंग्लादेश की स्वाधीनता के संस्थापकों में थे ।
(८) सन् १९९०- रुस के तत्कालीन राष्ट्रपति मीखाईल गोरबाचोफ ने इस देश के नोबल पुरुस्कार विजेता लेखक एलैग्ज़न्डर सोलहेनित्सिन को दोबारा रुस की नाग़रिकता दी। उन्हें सन् १९७४ में भयावह उपन्यास लिखने के कारण देश से निकाल दिया गया था।
१५ अगस्त को निम्नलिखित कुछ प्रसिद्द व्यक्तियों के जन्मदिन हैं:-
(१) सन् १००१ - डंकन पहिला, स्कॉटलैण्ड का राजा.
(२) सन् १७६९ - नेपोलियन बोनापार्ट, फ्रांस का सम्राट.
(३) सन् १८१३ - जुल्स ग्रेव्ही, फ्रांस के राष्ट्राध्यक्ष
(४) सन् १८७२ - श्री अरविंद, भारतीय तत्त्वज्ञानी
(५) सन् १८८६ - बिल व्हिटली, ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट खिळाडी
(६) सन् १९२२- लुकज़ फ़ॉस, जर्मन संगीतकार (निधन-सन् 2009)
(७) सन् १९२७ - एडी लेडबीटर, अँग्रेज क्रिकेट खिळाडी
(८) सन् १९४५ - बेगम खालिदा जिया, बांगलादेश की प्रधानमंत्री
(९) सन् १९४७ - राखी गुलझार, भारतीय अभिनेत्री.
(१०) सन् १९५१ - जॉन चाइल्ड्स, अँग्रेज़ क्रिकेट खिळाडी
(११) सन् १९५१ - रंजन गुणतिलके, श्रीलंकाई क्रिकेट खिळाडी
(१२) सन् १९६३ - जॅक रसेल, अँग्रेज क्रिकेट खिळाडी
(१३) सन् १९६८ - डेब्रा मेसिंग, अमेरिकन अभिनेत्री.
(१४) सन् १९७२ - बेन ऍफ्लेक, अमेरिकन अभिनेता.
(१५) सन् १९७५ - विजय भारद्वाज, भारतीय क्रिकेट खिळाडी
१५ अगस्त को निम्नलिखित कुछ प्रसिद्द व्यक्तियों का निधन हुआ:-
(१) सन् १०३८ - स्टीवन पहिला, हंगरी का राजा.
(२) सन् १०४० - डंकन पहिला, स्कॉटलंड का राजा.
(३) सन् १०५७ - मॅकबेथ, स्कॉटलंड का राजा
(४) सन् १११८ - ऍलेक्सियस पहिला कॉम्नेनस, बायझेन्टाई सम्राट.
(५) सन् १९३५ - विल रॉजर्स, अमेरिकी अभिनेता.
(६) सन् १९७५ - शेख मुजिबुर रहमान, बांगलादेश के राष्ट्राध्यक्ष
(७) सन् २००४ - अमरसिंह चौधरी, गुजरात के मुख्यमंत्री
इतिहास की संपूर्णता असाध्य सी है, फिर भी यदि हमारा अनुभव और ज्ञान प्रचुर हो, ऐतिहासिक सामग्री की जाँच-पड़ताल को हमारी कला तर्कप्रतिष्ठत हो तथा कल्पना संयत और विकसित हो तो अतीत का हमारा चित्र अधिक मानवीय और प्रामाणिक हो सकता है। सारांश यह है कि इतिहास की रचना में पर्याप्त सामग्री, वैज्ञानिक ढंग से उसकी जाँच, उससे प्राप्त ज्ञान का महत्व समझने के विवेक के साथ ही साथ ऐतिहासक कल्पना की शक्ति तथा सजीव चित्रण की क्षमता की आवश्यकता है । स्मरण रखना चाहिए कि इतिहास न तो साधारण परिभाषा के अनुसार विज्ञान है और न केवल काल्पनिक दर्शन अथवा साहित्यिक रचना है । इन सबके यथोचित संमिश्रण से इतिहास का स्वरूप रचा जाता है ।

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