अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्ते अबतक के सबसे तल्ख दौर में पहुंच गए है और दोनों राष्ट्रों के बीच आई इस तल्खी का सबसे बड़ा कारण बना है 12000 प्रशिक्षित लड़ाके वाला आतंकवादी संगठन 'हक्कानी नेटवर्क'।अमेरिका ने हाल ही में आरोप लगाया है कि हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) का संरक्षण प्राप्त है। इतना ही नहीं अमेरिका ने यहां तक कह दिया कि अगर पाकिस्तान इस आतंकवादी संगठन के खिलाफ कार्रवाई नहीं करता है तो वह एकतरफा कार्रवाई को बाध्य हो जाएगा।
पाकिस्तान ने भी अमेरिका को जवाब देने में देरी नहीं की और अमेरिकी रुख का उसने कड़ा विरोध किया। पाकिस्तान ने उसके आरोपों को यह कहते हुए खारिज किया है कि हक्कानी नेटवर्क अमेरिका की केंद्रीय खुफिया एजेंसी (सीआईए) का कई सालों तक चहेता रहा था।पिछले दिनों काबुल में अमेरिकी दूतावास पर हमले के लिए जिम्मेदार माने जा रहे हक्कानी नेटवर्क को लेकर अमेरिका और पाकिस्तान के बीच जारी आरोप-प्रत्यारोप के दौर ने दोनों देशों के रिश्तों में अब तक की सबसे बड़ी कड़वाहट ला दी है। आइए जानते हैं इस कड़वाहट की सबसे बड़ी वजह बने हक्कानी नेटवर्क के बारे में कि आखिर क्या है यह, कैसे इसकी उत्पत्ति हुई, कौन इसका मुखिया है और वह कहां और कैसे काम करता है।
हक्कानी नेटवर्क की मजूबती ----पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा के दोनों ओर के कबायली इलाकों को हक्कानी नेटवर्क का गढ़ माना जाता है। उत्तरी वजीरिस्तान कभी इसका मुख्य केंद्र हुआ करता था लेकिन अमेरिका और उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के लगातार हो रहे ड्रोन हमलों के कारण इस आतंकवादी संगठन ने अन्य कबायली इलाकों को अपना पनाहगाह बना लिया है।इस आतंकवादी संगठन का जनक मौलवी जलालुद्दीन हक्कानी है और उसी के नाम पर संगठन का नाम हक्कानी नेटवर्क रखा गया है। जलालुद्दीन हक्कानी कबायली जनजाति 'जदरान' से आता है। उसका जन्म अफगानिस्तान के पाकतिया प्रांत के गर्दा त्सेरे जिले के श्रानी में हुआ था। कहा जाता है उसकी दो पत्नियां हैं। पहली पत्नी खोस्त की जदरान कबायली है जबकि दूसरी अरब की है। इस वजह से उसका अरब और पश्तून के आंतकवादियों में अच्छी पैठ है। पश्तून में उसे लोगों का समर्थन मिलता है तो अरब से धन।सोवियत रूस द्वारा अफगानिस्तान पर कब्जा जमाने के दौर में हक्कानी जिहाद से जुड़ा और 90 के दशक में वह अलकायदा के बेहद करीब आ गया। 1990 में मुल्ला उमर के नेतृत्व वाला तालिबान जब उभरा तो हक्कानी ने पहले तो उससे दूरी बनाई लेकिन बाद में उसने उसका दामन थाम लिया।वर्ष 2001 में अमेरिकी हमले के बाद जब मुल्ला उमर की सरकार का पतन हो गया तब हक्कानी फिर से उत्तरी वजीरिस्तान पहुंचा और उसने फिर से अपने लोगों को साथ जोड़ा और नाटो के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।नाटो के खिलाफ जंग में हक्कानी ने अपने परिवार के कई सदस्यों के जान गंवाए। उसने अपने दो बेटों, एक पत्नी, कम से कम आठ पोतों, एक बहन और बहनोई को ड्रोन हमलों में खोया है।
हक्कानी पर 50 लाख डॉलर का इनाम ------हक्कानी अब अपने नेटवर्क का आध्यात्मिक नेता की भूमिका में आ गया है। वह लोगों को जिहाद के लिए संगठन से जुड़ने के लिए प्रेरित करता है जबकि हक्कानी नेटवर्क की कमान उसके बेटे सिराजुद्दीन हक्कानी ने सम्भाल ली है। वह अपने लोगों के बीच खलीफा के नाम से मशहूर है। सिराजुद्दीन अब अमेरिका के मोस्ट वांटेड सूची में शीर्ष पर है। अमेरिका ने उसके ऊपर 50 लाख डॉलर का इनाम रखा है।संगठन की आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने की कमान सिराजुद्दीन के भाई बदरूद्दीन ने सम्भाली हुई है। अमेरिकी विदेश विभाग ने उसे वैश्विक आतंकवादियों की सूची में डाल रखा है। जलालुद्दीन हक्कानी का छोटा भई खलील हक्कानी इस आतंकवादी संगठन के वित्तीय विभाग का मुखिया है।पाकिस्तान के कबायली इलाकों के सभी आतंकवादी संगठन हक्कानी नेटवर्क के प्रति वफादारी निभाते हैं। पाकिस्तान तालिबान के विभिन्न धड़े जब जिहाद के नाम पर अफगानिस्तान पहुंचते हैं तो वे हक्कानी नेटवर्क के अधीन होकर अपने मंसूबों का सफल बनाने का प्रयास करते हैं।
हक्कानी नेटवर्क में 12 हजार प्रशिक्षित लड़ाके ----कहा जाता है कि हक्कानी नेटवर्क में कम से कम 12000 ऐसे लड़ाके हैं जो पूरी तरह प्रशिक्षित हैं। इनमें कुछ गुरिल्ला युद्ध में माहिर हैं तो कुछ विस्फोटक बनाने वाले हैं। कुछ आत्मघाती हमलावर भी हैं और कुछ शिक्षक जो लोगों को जिहाद के नाम पर खुद से जोड़ते हैं।अमेरिका के एक प्रभावशाली वैचारिक एवं नीतिगत संस्थान का कहना है कि पिछले दिनों काबुल में अमेरिकी दूतावास पर हुए हमले के लिए जिम्मेदारी आतंकी गुट हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का संरक्षण मिलता है।जार्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय में होमलैंड सिक्योरिटी पालिसी इंस्टीट्यूट के निदेशक जे किलुफो ने अमेरिकी काग्रेस के सदस्यों के समक्ष हाल ही में कहा कि हक्कानी नेटवर्क के आतंकवादियों को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के लोगों की मदद मिलती है।उन्होंने कहा कि हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तानी सरकार के हिस्से के रूप में देखा जाता है, इसीलिए वहां की सरकार ने वजीरिस्तान के कबायली इलाकों में कार्रवाई करने से इंकार किया था।वजीरिस्तान सिर्फ हक्कानी नेटवर्क का ही नहीं, बल्कि अलकायदा से जुड़े समूहों के लिए एक सुरक्षित पनाहगार साबित हुआ है।इस थिक टैंक का मानना है कि हक्कानी नेटवर्क का एक ताकतवर धड़ा अफगानिस्तान में सक्रिय है। इन लोगों का निशाना गठबंधन सेना होती है।
पाकिस्तान ने भी अमेरिका को जवाब देने में देरी नहीं की और अमेरिकी रुख का उसने कड़ा विरोध किया। पाकिस्तान ने उसके आरोपों को यह कहते हुए खारिज किया है कि हक्कानी नेटवर्क अमेरिका की केंद्रीय खुफिया एजेंसी (सीआईए) का कई सालों तक चहेता रहा था।पिछले दिनों काबुल में अमेरिकी दूतावास पर हमले के लिए जिम्मेदार माने जा रहे हक्कानी नेटवर्क को लेकर अमेरिका और पाकिस्तान के बीच जारी आरोप-प्रत्यारोप के दौर ने दोनों देशों के रिश्तों में अब तक की सबसे बड़ी कड़वाहट ला दी है। आइए जानते हैं इस कड़वाहट की सबसे बड़ी वजह बने हक्कानी नेटवर्क के बारे में कि आखिर क्या है यह, कैसे इसकी उत्पत्ति हुई, कौन इसका मुखिया है और वह कहां और कैसे काम करता है।
हक्कानी नेटवर्क की मजूबती ----पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा के दोनों ओर के कबायली इलाकों को हक्कानी नेटवर्क का गढ़ माना जाता है। उत्तरी वजीरिस्तान कभी इसका मुख्य केंद्र हुआ करता था लेकिन अमेरिका और उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के लगातार हो रहे ड्रोन हमलों के कारण इस आतंकवादी संगठन ने अन्य कबायली इलाकों को अपना पनाहगाह बना लिया है।इस आतंकवादी संगठन का जनक मौलवी जलालुद्दीन हक्कानी है और उसी के नाम पर संगठन का नाम हक्कानी नेटवर्क रखा गया है। जलालुद्दीन हक्कानी कबायली जनजाति 'जदरान' से आता है। उसका जन्म अफगानिस्तान के पाकतिया प्रांत के गर्दा त्सेरे जिले के श्रानी में हुआ था। कहा जाता है उसकी दो पत्नियां हैं। पहली पत्नी खोस्त की जदरान कबायली है जबकि दूसरी अरब की है। इस वजह से उसका अरब और पश्तून के आंतकवादियों में अच्छी पैठ है। पश्तून में उसे लोगों का समर्थन मिलता है तो अरब से धन।सोवियत रूस द्वारा अफगानिस्तान पर कब्जा जमाने के दौर में हक्कानी जिहाद से जुड़ा और 90 के दशक में वह अलकायदा के बेहद करीब आ गया। 1990 में मुल्ला उमर के नेतृत्व वाला तालिबान जब उभरा तो हक्कानी ने पहले तो उससे दूरी बनाई लेकिन बाद में उसने उसका दामन थाम लिया।वर्ष 2001 में अमेरिकी हमले के बाद जब मुल्ला उमर की सरकार का पतन हो गया तब हक्कानी फिर से उत्तरी वजीरिस्तान पहुंचा और उसने फिर से अपने लोगों को साथ जोड़ा और नाटो के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।नाटो के खिलाफ जंग में हक्कानी ने अपने परिवार के कई सदस्यों के जान गंवाए। उसने अपने दो बेटों, एक पत्नी, कम से कम आठ पोतों, एक बहन और बहनोई को ड्रोन हमलों में खोया है।
हक्कानी पर 50 लाख डॉलर का इनाम ------हक्कानी अब अपने नेटवर्क का आध्यात्मिक नेता की भूमिका में आ गया है। वह लोगों को जिहाद के लिए संगठन से जुड़ने के लिए प्रेरित करता है जबकि हक्कानी नेटवर्क की कमान उसके बेटे सिराजुद्दीन हक्कानी ने सम्भाल ली है। वह अपने लोगों के बीच खलीफा के नाम से मशहूर है। सिराजुद्दीन अब अमेरिका के मोस्ट वांटेड सूची में शीर्ष पर है। अमेरिका ने उसके ऊपर 50 लाख डॉलर का इनाम रखा है।संगठन की आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने की कमान सिराजुद्दीन के भाई बदरूद्दीन ने सम्भाली हुई है। अमेरिकी विदेश विभाग ने उसे वैश्विक आतंकवादियों की सूची में डाल रखा है। जलालुद्दीन हक्कानी का छोटा भई खलील हक्कानी इस आतंकवादी संगठन के वित्तीय विभाग का मुखिया है।पाकिस्तान के कबायली इलाकों के सभी आतंकवादी संगठन हक्कानी नेटवर्क के प्रति वफादारी निभाते हैं। पाकिस्तान तालिबान के विभिन्न धड़े जब जिहाद के नाम पर अफगानिस्तान पहुंचते हैं तो वे हक्कानी नेटवर्क के अधीन होकर अपने मंसूबों का सफल बनाने का प्रयास करते हैं।
हक्कानी नेटवर्क में 12 हजार प्रशिक्षित लड़ाके ----कहा जाता है कि हक्कानी नेटवर्क में कम से कम 12000 ऐसे लड़ाके हैं जो पूरी तरह प्रशिक्षित हैं। इनमें कुछ गुरिल्ला युद्ध में माहिर हैं तो कुछ विस्फोटक बनाने वाले हैं। कुछ आत्मघाती हमलावर भी हैं और कुछ शिक्षक जो लोगों को जिहाद के नाम पर खुद से जोड़ते हैं।अमेरिका के एक प्रभावशाली वैचारिक एवं नीतिगत संस्थान का कहना है कि पिछले दिनों काबुल में अमेरिकी दूतावास पर हुए हमले के लिए जिम्मेदारी आतंकी गुट हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का संरक्षण मिलता है।जार्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय में होमलैंड सिक्योरिटी पालिसी इंस्टीट्यूट के निदेशक जे किलुफो ने अमेरिकी काग्रेस के सदस्यों के समक्ष हाल ही में कहा कि हक्कानी नेटवर्क के आतंकवादियों को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के लोगों की मदद मिलती है।उन्होंने कहा कि हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तानी सरकार के हिस्से के रूप में देखा जाता है, इसीलिए वहां की सरकार ने वजीरिस्तान के कबायली इलाकों में कार्रवाई करने से इंकार किया था।वजीरिस्तान सिर्फ हक्कानी नेटवर्क का ही नहीं, बल्कि अलकायदा से जुड़े समूहों के लिए एक सुरक्षित पनाहगार साबित हुआ है।इस थिक टैंक का मानना है कि हक्कानी नेटवर्क का एक ताकतवर धड़ा अफगानिस्तान में सक्रिय है। इन लोगों का निशाना गठबंधन सेना होती है।
No comments:
Post a Comment