Saturday, October 1, 2011

क्या भगत सिंह को फांसी से बचाया जा सकता था..........?

23 मार्च 1931 को 23 वर्षीय क्रांतिकारी भगत सिंह को उनके दो मित्रों सुखदेव व राजगुरु के साथ फांसी पर लटका दिया गया था. उनपर जनरल वांडर्स की हत्या का आरोप था. इतिहासकार आज भी इस सवाल का जवाब खोज रहे हैं कि क्या भगत सिंह को बचाया जा सकता था? क्या गांधीजी ने भगत सिंह को बचाने की सिफारिश नहीं की थी? यदि नहीं तो क्यों?
                                                                               
क्या वे भगत सिंह के तेवरों से दुखी थे, अथवा डर गए थे? ये ऐसे कठीन सवाल हैं जिनका जवाब मिलना मुश्किल है. यह ऐसा विवाद है जिसे कभी सुलझाया नही जा सकता.
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने अपनी किताब "इंडियन स्ट्रगल" मे लिखा कि भगत सिंह को बचाने के लिए गांधीजी पर बहुत दबाव था. और उन्होने इसके लिए प्रयत्न भी किया.
गांधीजी ने 17 फरवरी 1931 से लेकर 4 मार्च 1931 तक वाइसरॉय से कई मुलाकातें की थी और भगत सिंह का मुद्दा भी उठाया था.
पूर्व राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन के प्रेस सचीव आर.के. भटनागर लिखते हैं कि कांग्रेस के कराची अधिवेशन के दौरान भी गांधीजी को कई बार यह सवाल पूछा गया था कि वे भगत सिंह को बचाने के लिए क्या कर रहे हैं?
वे कहते - मैं अपनी पूरी कोशिश कर रहा हुँ. मैने 23 मार्च को एक पत्र भी लिखा है. मैने अपनी पूरी जान इसमें लगा दी लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.
लाहौर षड्यंत्र केस में जब भगत सिंह और राजगुरू तथा सुखदेव को फांसी दी गई तो समूचा भारत सकते में आ गया था. देश विदेश के अखबारों ने इसे सुर्खी बनाया था.
भगत सिंह और उनके साथियों को 24 मार्च को फांसी दी जानी थी पर उससे एक दिन पहले ही उन्हें फांसी दे दी गई. ......सरदार पटेल ने बाद में इस कृत्य की भ्रत्सना करते हुए कहा था कि, "अंग्रेजी कानून के अनुसार भगत सिंह को सांडर्स हत्याकांड में दोषी नहीं ठहराया जा सकता था. फिर भी उसे फांसी दे दी गई.
भगत सिंह एक किवंदती बन चुके थे, और आज भी हैं. उन्होनें कभी कहा था कि शहीदों की मजार पर हर साल मेले लगेंगे....................
दुख की बात है कि अब ऐसा नहीं है.

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