विदेश मंत्रालय ने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत को लेकर मास्को स्थित भारतीय दूतावास के साथ पिछले 47 साल के दौरान हुए पत्र व्यवहार का यह कहते हुए खुलासा करने से इनकार कर दिया है कि इससे देश की संप्रभुता और अखंडता तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
पूर्व में विदेश मंत्रालय ने कहा था कि उसके पास ताशकंद में 1966 को हुई शास्त्री की मत्यु के संबंध में केवल एक मेडिकल रिपोर्ट को छोड़ कर कोई दस्तावेज नहीं है। यह मेडिकल रिपोर्ट उस डॉक्टर की है जिसने उनकी जांच की थी। इसके बाद विदेश मंत्रालय ने भारत और पूर्ववर्ती सोवियत संघ के बीच शास्त्री की मौत को लेकर हुए पत्र व्यवहार के बारे में चुप्पी साध ली थी।
एक पारदर्शिता संबंधी वेबसाइट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट एंडदसीक्रेसी डॉट कॉम के संचालक अनुज धर ने सूचना का अधिकार के अंतर्गत दिए गए अपने आवेदन में शास्त्री की मौत के बाद विदेश मंत्रालय और मास्को स्थित भारतीय दूतावास तथा दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों के बीच हुए पत्र व्यवहार का ब्यौरा मांगा था।
उन्होंने यह भी कहा था कि अगर कोई पत्र व्यवहार नहीं हुआ है तो इसकी भी जानकारी दी जाए। धर ने दिवंगत प्रधानमंत्री की जांच करने वाले डॉक्टर आरएन चुग की मेडिकल रिपोर्ट भी मांगी थी जो शास्त्री के पोते और भाजपा प्रवक्ता सिद्धार्थ नाथ सिंह के अनुसार, सार्वजनिक संपत्ति है।
मंत्रालय ने यह नहीं कहा कि कोई पत्र व्यवहार हुआ या नहीं। उसने जवाब दिया कि जो सूचनाएं मांगी गई हैं उन्हें सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8 (एक) (ए) के तहत जाहिर नहीं किया जा सकता। इस धारा के तहत ऐसी सूचना के खुलासे पर रोक है जिससे देश की संप्रभुता और अखंडता पर तथा विदेश से संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो।
मंत्रालय ने इस धारा के तहत छूट मांगने का कारण नहीं बताया जबकि केंद्रीय सूचना आयोग के आदेशों के अनुसार, कारण बताना आवश्यक है। वर्ष 1965 में हुए भारत पाक युद्ध के बाद शास्त्री जनवरी 1966 में पूर्ववर्ती सोवियत संघ में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान के साथ एक बैठक के लिए ताशकंद गए थे। संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने के कुछ ही घंटे के बाद शास्त्री की रहस्यमय परिस्थितियों में मत्यु हो गई थी।
सिंह ने बताया कि डाक्टर की रिपोर्ट सार्वजनिक की जा चुकी है। मेरे पास इसकी एक प्रति है। इसमें डाक्टर ने अंत में लिखा है -हो सकता है -इससे ऐसा लगता है कि उनकी मौत का कारण जैसे कुछ शब्दों का इस्तेमाल किया गया है जिसका मतलब दिल का दौरा हो सकता है। प्रधानमंत्री की मौत को आप इस तरह नहीं बता सकते-इसके लिए आपको 100 फीसदी निश्चित होना होगा। धर का कहना है कि विदेश में प्रधानमंत्री की मौत से खासी हलचल हुई होगी और मास्को स्थित भारतीय दूतावास में भी गतिविधियां कम नहीं हुई होंगी। उन्होंने कहा इस घटना को लेकर कई फोन और टेलीग्राम आए होंगे लेकिन विदेश मंत्रालय इनमें से किसी का भी खुलासा करने को तैयार नहीं है।
धर के अनुसार, पूर्व में उन्होंने कहा कि मास्को स्थित भारतीय दूतावास में डा चुग की रिपोर्ट के अलावा कोई दस्तावेज नहीं है। अब वे कहते हैं कि वे फोन कॉल्स और टेलीग्राम का ब्यौरा जाहिर नहीं कर सकते। इसका मतलब यह है कि ये रिकॉर्डस हैं लेकिन पहले कह दिया गया कि रिकार्डस नहीं हैं।
सिंह ने कहा कि इनके खुलासे से अगर देश को सच पता चल जाएगा तो कुछ राजनीतिक दलों में उथलपुथल हो जाएगी क्योंकि शास्त्री नेहरू से अधिक लोकप्रिय थे। धर ने यह मामला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के समक्ष एक बार फिर उठाने की योजना बनाई है।
पूर्व में विदेश मंत्रालय ने कहा था कि उसके पास ताशकंद में 1966 को हुई शास्त्री की मत्यु के संबंध में केवल एक मेडिकल रिपोर्ट को छोड़ कर कोई दस्तावेज नहीं है। यह मेडिकल रिपोर्ट उस डॉक्टर की है जिसने उनकी जांच की थी। इसके बाद विदेश मंत्रालय ने भारत और पूर्ववर्ती सोवियत संघ के बीच शास्त्री की मौत को लेकर हुए पत्र व्यवहार के बारे में चुप्पी साध ली थी।
एक पारदर्शिता संबंधी वेबसाइट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट एंडदसीक्रेसी डॉट कॉम के संचालक अनुज धर ने सूचना का अधिकार के अंतर्गत दिए गए अपने आवेदन में शास्त्री की मौत के बाद विदेश मंत्रालय और मास्को स्थित भारतीय दूतावास तथा दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों के बीच हुए पत्र व्यवहार का ब्यौरा मांगा था।
उन्होंने यह भी कहा था कि अगर कोई पत्र व्यवहार नहीं हुआ है तो इसकी भी जानकारी दी जाए। धर ने दिवंगत प्रधानमंत्री की जांच करने वाले डॉक्टर आरएन चुग की मेडिकल रिपोर्ट भी मांगी थी जो शास्त्री के पोते और भाजपा प्रवक्ता सिद्धार्थ नाथ सिंह के अनुसार, सार्वजनिक संपत्ति है।
मंत्रालय ने यह नहीं कहा कि कोई पत्र व्यवहार हुआ या नहीं। उसने जवाब दिया कि जो सूचनाएं मांगी गई हैं उन्हें सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8 (एक) (ए) के तहत जाहिर नहीं किया जा सकता। इस धारा के तहत ऐसी सूचना के खुलासे पर रोक है जिससे देश की संप्रभुता और अखंडता पर तथा विदेश से संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो।
मंत्रालय ने इस धारा के तहत छूट मांगने का कारण नहीं बताया जबकि केंद्रीय सूचना आयोग के आदेशों के अनुसार, कारण बताना आवश्यक है। वर्ष 1965 में हुए भारत पाक युद्ध के बाद शास्त्री जनवरी 1966 में पूर्ववर्ती सोवियत संघ में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान के साथ एक बैठक के लिए ताशकंद गए थे। संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने के कुछ ही घंटे के बाद शास्त्री की रहस्यमय परिस्थितियों में मत्यु हो गई थी।
सिंह ने बताया कि डाक्टर की रिपोर्ट सार्वजनिक की जा चुकी है। मेरे पास इसकी एक प्रति है। इसमें डाक्टर ने अंत में लिखा है -हो सकता है -इससे ऐसा लगता है कि उनकी मौत का कारण जैसे कुछ शब्दों का इस्तेमाल किया गया है जिसका मतलब दिल का दौरा हो सकता है। प्रधानमंत्री की मौत को आप इस तरह नहीं बता सकते-इसके लिए आपको 100 फीसदी निश्चित होना होगा। धर का कहना है कि विदेश में प्रधानमंत्री की मौत से खासी हलचल हुई होगी और मास्को स्थित भारतीय दूतावास में भी गतिविधियां कम नहीं हुई होंगी। उन्होंने कहा इस घटना को लेकर कई फोन और टेलीग्राम आए होंगे लेकिन विदेश मंत्रालय इनमें से किसी का भी खुलासा करने को तैयार नहीं है।
धर के अनुसार, पूर्व में उन्होंने कहा कि मास्को स्थित भारतीय दूतावास में डा चुग की रिपोर्ट के अलावा कोई दस्तावेज नहीं है। अब वे कहते हैं कि वे फोन कॉल्स और टेलीग्राम का ब्यौरा जाहिर नहीं कर सकते। इसका मतलब यह है कि ये रिकॉर्डस हैं लेकिन पहले कह दिया गया कि रिकार्डस नहीं हैं।
सिंह ने कहा कि इनके खुलासे से अगर देश को सच पता चल जाएगा तो कुछ राजनीतिक दलों में उथलपुथल हो जाएगी क्योंकि शास्त्री नेहरू से अधिक लोकप्रिय थे। धर ने यह मामला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के समक्ष एक बार फिर उठाने की योजना बनाई है।
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