Saturday, October 1, 2011

भगत सिंह जन्म और परिवेश--------

भगत सिंह का जन्म २८ सितंबर, १९०७,शनिवार सुबह ९ बजे लायलपुर ज़िले के बंगा गाँव (चक नम्बर १०५ जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था। हालांकि उनका पैतृक निवास आज भी भारतीय पंजाब के नवाँशहर ज़िले के खटकड़कलाँ गाँव में स्थित है। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। यह एक सिख परिवार था जिसने आर्य समाज के विचार को अपना लिया था। अमृतसर में १३ अप्रैल, १९१९ को हुए जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन नाम के एक क्रान्तिकारी संगठन से जुड़ गए थे। भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी। इस संगठन का उद्देश्य ‘सेवा,त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले’ नवयुवक तैयार करना था। भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर १७ दिसम्बर १९२८ को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अधिकारी जे०पी० सांडर्स को मारा था। इस कार्रवाई में क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद ने भी उनकी सहायता की थी। क्रान्तिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने अलीपुर रोड पर स्थित दिल्ली की तत्कालीन सेण्ट्रल एसेम्बली के सभागार में ८ अप्रैल १९२९ को 'अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिये' बम और पर्चे फेंके थे। बम फेंकने के बाद वहीं पर दोनों ने अपनी गिरफ्तारी भी दी।
                                                                                     
इन्क़लाब से ताल्लुक------------- भगतसिंह का यह प्रसिद्ध हुलिया उनके २१वें वर्ष की वास्तविक तस्वीर से कहीं अलग था। फेल्ट हैट व क्लीन शेव वाला रूप उन्होंने गिरफ्तारी से बचने के लिए अपनाया था ।उस समय भगत सिंह करीब १२ वर्ष के थे जब जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड हुआ था। इसकी सूचना मिलते ही भगत सिंह अपने स्कूल से १२ मील पैदल चलकर जलियाँवाला बाग पहुँच गए। इस उम्र में भगत सिंह अपने चाचाओं की क्रान्तिकारी किताबें पढ़ कर सोचते थे कि इनका रास्ता सही है कि नहीं ? गान्धीजी के असहयोग आन्दोलन छिड़ने के बाद वे गान्धीजी के तरीकों और हिंसक आन्दोलन में से अपने लिए रास्ता चुनने लगे। गान्धीजी के असहयोग आन्दोलन को रद्द कर देने कि वजह से उनमें एक रोष (क्रोध) ने जन्म लिया और अन्ततः उन्होंने 'इंकलाब और देश की स्वतन्त्रता के लिए हिंसा' अपनाना अनुचित नहीं समझा। उन्होंने जुलूसों में भाग लेना शुरू किया तथा कई क्रान्तिकारी दलों के सदस्य बने। बाद मे वे अपने दल के प्रमुख क्रान्तिकारियों के प्रतिनिधि बने। उनके दल के प्रमुख क्रान्तिकारियों में चन्द्रशेखर आजाद, भगवतीचरण व्होरा, सुखदेव, राजगुरु इत्यादि थे।

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